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गोरखपुर: हथियारों की कमी से जूझते वन विभाग के लिए माफियाओं से निपटना मुश्किल - difficult for the forest department

जिले के कुल भू-भाग का 2.38 प्रतिशत एरिया वन क्षेत्र है. आंकड़ों की बात करें तो यह करीब 79 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल होता है. इतनी बड़ी एरिया में वन तस्करों और माफियाओं पर शिकंजा कसने के लिए विभाग के पास जो संसाधन वर्तमान में मौजूद हैं, उसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे.

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Published : Mar 14, 2022, 1:18 PM IST

गोरखपुर: जिले के कुल भू-भाग का 2.38 प्रतिशत एरिया वन क्षेत्र है. आंकड़ों की बात करें तो यह करीब 79 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल होता है. इतनी बड़ी एरिया में वन तस्करों और माफियाओं पर शिकंजा कसने के लिए विभाग के पास जो संसाधन वर्तमान में मौजूद हैं, उसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे. वहीं, विभाग तो परेशान है ही, लेकिन उसकी सुनवाई नहीं हो रही है. वन विभाग के पास कुल 60 बंदूकें हैं, जिनमें मात्र 15 सही है और 60 कारतूस हैं. जिनमें से अधिकांश कारतूस खराब होने की श्रेणी में है. विभाग को कई वर्षों से न तो नए कारतूस मिले हैं और न ही असलहे ही हैं. ऐसे में वन की सुरक्षा को लेकर सवाल उठना जायज है. लेकिन सुनवाई भी नहीं हो रही. जबकि 2018 में इस क्षेत्र में तस्करी हावी हो गई थी और कई तस्करों से मुकाबला करने में वन कर्मी और अधिकारी घायल हो गए थे.

कुल साठ बंदूकों में 31 राइफल और 31 डबल बैरल बंदूकें हैं. लेकिन इनमें से मात्र पंद्रह बंदूकें(राइफल और बंदूक मिलाकर) सही हैं. खास बात यह है कि आधुनिक दौर के हथियारों और माफियाओं की सक्रियता के आगे यह भी अब अनुपयोगी है. लेकिन शासन स्तर से इस को दुरुस्त करने का उपाय नहीं हो रहा. जबकि वनों की कटाई, माफिया की सक्रियता बनी रहती है. संसाधनों की कमी सुरक्षा की चौकसी में बड़ा सवाल बनता है. नतीजा यह है कि वनों में कांबिंग के लिए सुरक्षाकर्मी बिना हथियार के भी निकल पड़ते हैं. तस्करी को बढ़ावा देने और रिकॉर्ड में ऐसे मामलों के न आने के पीछे भी संसाधन की कमी बड़ी वजह है.

वन विभाग के लिए माफियाओं से निपटना मुश्किल
वन विभाग के लिए माफियाओं से निपटना मुश्किल

इसे भी पढ़ें - एक ही इलाके में चोरी की दर्जन भर से ज्यादा घटनाएं, पुलिस की उदासीनता देख समाजसेवी संगठन पहुंचे थाने

बात करें तो गोरखपुर जिले में वन विभाग के रेंजर और वन रक्षकों की तैनाती के बाद पिछले माह तक हथियार चलाने का प्रशिक्षण नहीं दिया जा सका है. ऐसे में जो असलहे हैं, वह जरूरत पड़ने पर चलेंगे या नहीं और वनकर्मी भी उसे चला पाएंगे कि नहीं खुद में बड़ा सवाल बना हुआ है. बिना हथियार के यह सुरक्षाकर्मी वन में जाना सही नहीं समझते. उन्हें अपने हथियारों पर भरोसा भी नहीं है ऐसा विभागीय सूत्र बताते हैं. वहीं, गोरखपुर वन प्रभाग में कुल 5 रेंज हैं. जिसमें कैंपियरगंज,फरेंदा, तिनकोनिया, पनियारा और गोरखपुर रेंज शामिल हैं. इन रेंज में आवंटित असलहे अभी भी माल खाने में बंद हैं.

राइफल के मात्र कुल 20 कारतूस है. जबकि बंदूक के 40 कारतूस है. सूत्र बताते हैं कि बंदूक वाले बहुत से कारतूस खराब हो चुके हैं. वर्षों पहले इन्हें मालखाने से रेंज और बीट में भेजा गया था, जो अनुपयोगी है. जबकि तस्करों की सक्रियता की बात करें तो 15 जुलाई 2018 को खोराबार के रामलखना जंगल में अवैध कटाई कर रहे तस्करों पर सूचना मिलने पर वन विभाग ने छापा मारा था. इस दौरान डिप्टी रेंजर डीएन पांडेय को तस्करों ने गोली मार दी थी. गंभीर रूप से घायल रेंजर को मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था.

इस घटना के संदर्भ में सूत्र बताते हैं कि अधिकारी के पास जो असलहा था वह मुठभेड़ के दौरान चल नहीं पाया था. फिर भी सुधार की गुंजाइश नहीं हो रही. गोरखपुर के डीएफओ विकास यादव कहते हैं कि सीमित संसाधनों के बीच लगातार टीम जंगलों का निरीक्षण करती है. सुरक्षा के लिए अपने पास जो संसाधनों है उसके सहारे तस्करी को रोकने का प्रयास करती है. लेकिन माफियाओं की प्रवृत्ति और वन क्षेत्र को देखते हुए और जरूरी संसाधन का होना आवश्यक है.

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गोरखपुर: जिले के कुल भू-भाग का 2.38 प्रतिशत एरिया वन क्षेत्र है. आंकड़ों की बात करें तो यह करीब 79 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल होता है. इतनी बड़ी एरिया में वन तस्करों और माफियाओं पर शिकंजा कसने के लिए विभाग के पास जो संसाधन वर्तमान में मौजूद हैं, उसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे. वहीं, विभाग तो परेशान है ही, लेकिन उसकी सुनवाई नहीं हो रही है. वन विभाग के पास कुल 60 बंदूकें हैं, जिनमें मात्र 15 सही है और 60 कारतूस हैं. जिनमें से अधिकांश कारतूस खराब होने की श्रेणी में है. विभाग को कई वर्षों से न तो नए कारतूस मिले हैं और न ही असलहे ही हैं. ऐसे में वन की सुरक्षा को लेकर सवाल उठना जायज है. लेकिन सुनवाई भी नहीं हो रही. जबकि 2018 में इस क्षेत्र में तस्करी हावी हो गई थी और कई तस्करों से मुकाबला करने में वन कर्मी और अधिकारी घायल हो गए थे.

कुल साठ बंदूकों में 31 राइफल और 31 डबल बैरल बंदूकें हैं. लेकिन इनमें से मात्र पंद्रह बंदूकें(राइफल और बंदूक मिलाकर) सही हैं. खास बात यह है कि आधुनिक दौर के हथियारों और माफियाओं की सक्रियता के आगे यह भी अब अनुपयोगी है. लेकिन शासन स्तर से इस को दुरुस्त करने का उपाय नहीं हो रहा. जबकि वनों की कटाई, माफिया की सक्रियता बनी रहती है. संसाधनों की कमी सुरक्षा की चौकसी में बड़ा सवाल बनता है. नतीजा यह है कि वनों में कांबिंग के लिए सुरक्षाकर्मी बिना हथियार के भी निकल पड़ते हैं. तस्करी को बढ़ावा देने और रिकॉर्ड में ऐसे मामलों के न आने के पीछे भी संसाधन की कमी बड़ी वजह है.

वन विभाग के लिए माफियाओं से निपटना मुश्किल
वन विभाग के लिए माफियाओं से निपटना मुश्किल

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बात करें तो गोरखपुर जिले में वन विभाग के रेंजर और वन रक्षकों की तैनाती के बाद पिछले माह तक हथियार चलाने का प्रशिक्षण नहीं दिया जा सका है. ऐसे में जो असलहे हैं, वह जरूरत पड़ने पर चलेंगे या नहीं और वनकर्मी भी उसे चला पाएंगे कि नहीं खुद में बड़ा सवाल बना हुआ है. बिना हथियार के यह सुरक्षाकर्मी वन में जाना सही नहीं समझते. उन्हें अपने हथियारों पर भरोसा भी नहीं है ऐसा विभागीय सूत्र बताते हैं. वहीं, गोरखपुर वन प्रभाग में कुल 5 रेंज हैं. जिसमें कैंपियरगंज,फरेंदा, तिनकोनिया, पनियारा और गोरखपुर रेंज शामिल हैं. इन रेंज में आवंटित असलहे अभी भी माल खाने में बंद हैं.

राइफल के मात्र कुल 20 कारतूस है. जबकि बंदूक के 40 कारतूस है. सूत्र बताते हैं कि बंदूक वाले बहुत से कारतूस खराब हो चुके हैं. वर्षों पहले इन्हें मालखाने से रेंज और बीट में भेजा गया था, जो अनुपयोगी है. जबकि तस्करों की सक्रियता की बात करें तो 15 जुलाई 2018 को खोराबार के रामलखना जंगल में अवैध कटाई कर रहे तस्करों पर सूचना मिलने पर वन विभाग ने छापा मारा था. इस दौरान डिप्टी रेंजर डीएन पांडेय को तस्करों ने गोली मार दी थी. गंभीर रूप से घायल रेंजर को मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था.

इस घटना के संदर्भ में सूत्र बताते हैं कि अधिकारी के पास जो असलहा था वह मुठभेड़ के दौरान चल नहीं पाया था. फिर भी सुधार की गुंजाइश नहीं हो रही. गोरखपुर के डीएफओ विकास यादव कहते हैं कि सीमित संसाधनों के बीच लगातार टीम जंगलों का निरीक्षण करती है. सुरक्षा के लिए अपने पास जो संसाधनों है उसके सहारे तस्करी को रोकने का प्रयास करती है. लेकिन माफियाओं की प्रवृत्ति और वन क्षेत्र को देखते हुए और जरूरी संसाधन का होना आवश्यक है.

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