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बाल मित्र थाने से बाल अपराध रोकने की पहल ने पकड़ी रफ्तार

गोरखपुर जिले में बाल कल्याण पुलिस अधिकारी की नियुक्त कर दी गई है. बाल अपराधों में रोकथाम के लिए और बच्चों द्वारा किए गए अपराधों के दौरान उनकी काउंसलिंग कैसे करें, इसके लिए समय-समय पर वर्कशॉप के माध्यम से पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित किया गया है.

बाल मित्र थाने से बाल अपराध रोकने की पहल
बाल मित्र थाने से बाल अपराध रोकने की पहल
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Published : Nov 10, 2021, 9:53 AM IST

गोरखपुर: जाने-अनजाने अपराध की डगर पर बढ़ रहे बच्चों को समय रहते सुधारने के लिए प्रदेश के सभी थानों में बाल कल्याण पुलिस अधिकारी नियुक्त कर दिए गए हैं. बच्चों से जुड़े मामलों की हर जिले पर नियमित मासिक समीक्षा भी होनी है. किशोर न्याय अधिनियम-2015 (जेजे एक्ट) यूं तो पूरे देश में लागू है, लेकिन बीते साढ़े चार सालों में उत्तर प्रदेश में इसके प्रावधानों को बेहद गंभीरता से क्रियान्वित किया गया है. पूर्व में जब किसी बच्चे पर छिटपुट अपराध के आरोप लगते थे तो उसके साथ होने वाला वर्ताव काफी हद तक अपराधियों जैसा ही होता था.

बच्चों द्वारा किए गए अपराध के मामलों में उन्हें कैसे 'हैंडल' किया जाए, इसके लिए प्रदेश पुलिस ने समय-समय पर वर्कशॉप के माध्यम से पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित किया है. राज्य के सभी थानों में बाल कल्याण पुलिस अधिकारी को इसी उद्देश्य से नियुक्त किया गया है कि वह बच्चों से जुड़े मामलों को अलग से और पुलिस की पुरानी इमेज से इतर होकर संभालेंगे. थानों पर बच्चों से जुड़े मामलों को कैसे संभाला गया, इसकी समीक्षा के लिए हर जिले में विशेष किशोर पुलिस इकाई भी गठित है. जिलों के अपर पुलिस अधीक्षक या एसपी क्राइम इसके नोडल अधिकारी होते हैं. यह इकाई प्रतिमाह मामलों की समीक्षा करती है.

पहले जहां छोटे से छोटे मामले, चोरी या मारपीट में बच्चों-किशोरों को थाने पर बैठा लिया जाता था, वहीं अब उन्हें चाइल्ड फ्रेंडली माहौल देकर अपने अंतर्मन की बात कहने के लिए प्रेरित किया जाता है. सामाजिक कार्यकर्ता और विशेष किशोर पुलिस इकाई से जुड़े राजेश मणि त्रिपाठी बताते हैं कि सरकार के प्रयास से शिकायती बच्चों के प्रति पुलिस थानों में पूरा नजारा ही बदल गया है. बच्चों के मामलों में पुलिस की संवेदनशीलता बढ़ी है. अब उनसे दोस्ताना अंदाज में बातचीत कर यह जानने की कोशिश की जाती है कि हाल फिलहाल उनसे यह नादानी क्यों हुई.

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ ही उनके पारिवारिक और सामाजिक परिवेश का भी विश्लेषण किया जाता है. बच्चे या किशोर के खिलाफ शिकायत करने वाले को भी पुलिस यह समझाती है कि मामले को तूल देने की बजाय बच्चे को एक बार सुधरने का मौका दें. कई थान परिसरों में अलग से एक क्षेत्र 'बच्चों का अपना बाल मित्र पुलिस थाना' विकसित किया गया है.

महराजगंज जिले के सोनौली थाना परिसर में बना बाल मित्र पुलिस थाना बच्चों को यह एहसास ही नहीं होता कि यह कोई थाना है. दीवारों पर कार्टून पेंटिंग्स और खेल के समान के बीच में सादे वेश वाले पुलिसकर्मियों के कुछ ही देर में दोस्त बन जाते हैं. कुल मिलाकर सरकार ऐसे प्रयास कर रही है जिससे बालपन में छोटी-मोटी गलतियां करने वाले मानसिक रूप से अपराध की राह से दूर रहें.

गोरखपुर: जाने-अनजाने अपराध की डगर पर बढ़ रहे बच्चों को समय रहते सुधारने के लिए प्रदेश के सभी थानों में बाल कल्याण पुलिस अधिकारी नियुक्त कर दिए गए हैं. बच्चों से जुड़े मामलों की हर जिले पर नियमित मासिक समीक्षा भी होनी है. किशोर न्याय अधिनियम-2015 (जेजे एक्ट) यूं तो पूरे देश में लागू है, लेकिन बीते साढ़े चार सालों में उत्तर प्रदेश में इसके प्रावधानों को बेहद गंभीरता से क्रियान्वित किया गया है. पूर्व में जब किसी बच्चे पर छिटपुट अपराध के आरोप लगते थे तो उसके साथ होने वाला वर्ताव काफी हद तक अपराधियों जैसा ही होता था.

बच्चों द्वारा किए गए अपराध के मामलों में उन्हें कैसे 'हैंडल' किया जाए, इसके लिए प्रदेश पुलिस ने समय-समय पर वर्कशॉप के माध्यम से पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित किया है. राज्य के सभी थानों में बाल कल्याण पुलिस अधिकारी को इसी उद्देश्य से नियुक्त किया गया है कि वह बच्चों से जुड़े मामलों को अलग से और पुलिस की पुरानी इमेज से इतर होकर संभालेंगे. थानों पर बच्चों से जुड़े मामलों को कैसे संभाला गया, इसकी समीक्षा के लिए हर जिले में विशेष किशोर पुलिस इकाई भी गठित है. जिलों के अपर पुलिस अधीक्षक या एसपी क्राइम इसके नोडल अधिकारी होते हैं. यह इकाई प्रतिमाह मामलों की समीक्षा करती है.

पहले जहां छोटे से छोटे मामले, चोरी या मारपीट में बच्चों-किशोरों को थाने पर बैठा लिया जाता था, वहीं अब उन्हें चाइल्ड फ्रेंडली माहौल देकर अपने अंतर्मन की बात कहने के लिए प्रेरित किया जाता है. सामाजिक कार्यकर्ता और विशेष किशोर पुलिस इकाई से जुड़े राजेश मणि त्रिपाठी बताते हैं कि सरकार के प्रयास से शिकायती बच्चों के प्रति पुलिस थानों में पूरा नजारा ही बदल गया है. बच्चों के मामलों में पुलिस की संवेदनशीलता बढ़ी है. अब उनसे दोस्ताना अंदाज में बातचीत कर यह जानने की कोशिश की जाती है कि हाल फिलहाल उनसे यह नादानी क्यों हुई.

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ ही उनके पारिवारिक और सामाजिक परिवेश का भी विश्लेषण किया जाता है. बच्चे या किशोर के खिलाफ शिकायत करने वाले को भी पुलिस यह समझाती है कि मामले को तूल देने की बजाय बच्चे को एक बार सुधरने का मौका दें. कई थान परिसरों में अलग से एक क्षेत्र 'बच्चों का अपना बाल मित्र पुलिस थाना' विकसित किया गया है.

महराजगंज जिले के सोनौली थाना परिसर में बना बाल मित्र पुलिस थाना बच्चों को यह एहसास ही नहीं होता कि यह कोई थाना है. दीवारों पर कार्टून पेंटिंग्स और खेल के समान के बीच में सादे वेश वाले पुलिसकर्मियों के कुछ ही देर में दोस्त बन जाते हैं. कुल मिलाकर सरकार ऐसे प्रयास कर रही है जिससे बालपन में छोटी-मोटी गलतियां करने वाले मानसिक रूप से अपराध की राह से दूर रहें.

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