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'आसरा' के लाभार्थियों को चाहिए सहारा, बंदरबाट से तीन साल से रुकी परियोजना - construction and design services news

गोरखपुर शहर में आसरा आवास योजना के तहत चयनित लाभार्थियों को तीन साल बाद भी छत नहीं मिल पाई है. जबकि 85 लाभार्थियों के लिए बिल्डिंग पूरी बनकर तैयार है. आइए जानते हैं योजना और लाभार्थियों के बीच में क्या रोड़ा अटका हुआ है?

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आसरा आवास योजना
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Published : Jun 15, 2022, 7:14 PM IST

Updated : Jun 15, 2022, 10:47 PM IST

गोरखपुरः कुदरत और किस्मत की मार से परेशान, छत विहीन लोग जहां अपने सिर पर छत होने के लिए सरकार की योजनाओं का लाभ पाने के लिए प्रयास करते हैं. वहीं शहर में 'आसरा आवास योजना' के तहत तीन साल से चयन के बाद भी लाभार्थियों को छत नहीं मिल रही है. जबकि तीन मंजिला बिल्डिंग इस आवास योजना के तहत महानगर के महेसरा ताल के पास बनकर तैयार है. लेकिन योजना के निर्माण में कुछ कमियों और बंदरबांट की वजह से यह अभी भी आधी अधूरी पड़ी है. इसके लाभार्थी जैसी स्थिति है वैसी स्थिति में ही आवास को पाने के लिए शपथ पत्र और अंगूठा लगाकर इसमें रहने की अपनी सहमति दे रहे हैं.

परियोजना अधिकारी विकास कुमार सिंह

बता दें, कि अधिकारी पिछले 3 सालों से न तो इस योजना को पूर्ण करने में गंभीर हो पाए हैं और न ही मौजूदा दौर में इस पर कोई विशेष गंभीरता नजर आ रही है. यही वजह है कि इसके लाभार्थी इस तपती गर्मी में जहां परेशान हैं, वहीं आने वाली बारिश में इनके लिए सिर छुपाना मुश्किल होने वाला है. बता दें कि 'आसरा आवास योजना' अखिलेश यादव सरकार की योजना थी. गोरखपुर के महेसरा ताल के पास जिन चयनित 85 लाभार्थियों के लिए तीन मंजिला बिल्डिंग बनाई जानी थी, उसके लिए पूरा बजट साढ़े पांच करोड़ आवंटित भी हो गया था. 2017 में अखिलेश यादव की सरकार चली गई और प्राप्त बजट से इस बिल्डिंग का निर्माण पूरा किया गया. इसकी कार्यदाई संस्था कंस्ट्रक्शन एंड डिजाइन सर्विसेज (सीएनडीएस) थी, जब इसमें लाभार्थियों को कब्जा देने की बात आई तो सीएनडीएस ने यह कहते हुए हाथ खड़े कर दिए कि अभी बिल्डिंग में कई इंफ्रास्ट्रक्चर के कार्य करने बाकी हैं. इसके लिए अतिरिक्त बजट की जरूरत है. बिना उसके बिल्डिंग को हैंडोवर ने किया जा सकता. इस तरह की डिमांड पिछले करीब 3 साल से है, जो पूरा नहीं हों रहा है.

पढ़ेंः आशियाने का सपना होने लगा साकार, आवंटियों की रजिस्ट्री शुरू

जिसकी वजह से लाभार्थियों के सपनों को उनका छत नहीं मिल रहा और मामला सिर्फ पत्राचार में ही घूम रहा हैं. जिला नगरीय विकास अभिकरण (डूडा) के तहत संचालित होने वाली इस योजना के संबंध में परियोजना अधिकारी विकास कुमार सिंह ने कहा कि वह शासन से लेकर जिलाधिकारी और कार्यदाई संस्था को भी कई बार पत्र लिख चुके हैं. लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकल सका है.

लाभार्थी आशा गौड और ललिता के मुताबिक उनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही. पास-पड़ोस के घरों में चौका बर्तन करके अपना भरण-पोषण करते हैं. उनकी अगुवाई करने वाला भी कोई नहीं है. अगर कोई रास्ता भी दिखाता है, तो सरकारी प्रक्रिया इतनी लंबी इसलिए यह निराश होकर बैठ जाते हैं. उन्होंने जिलाधिकारी से लेकर मुख्यमंत्री तक को पत्र लिखे, उनसे मिलने की सारी कोशिशें कर डाली, लेकिन आसरा योजना है कि इनका सहारा ही नहीं बन रही. सीएनडीएस के अवर अभियंता संदीप कुमार गुप्ता ने भी बजट का हवाला दिया और कहा कि उन्हें जो बजट प्राप्त था उसमें जीएसटी का पैसा शामिल नहीं था. वह पैसा मिल जाए तो मूलभूत निर्माण पूरा करा दिया जाएगा. जिसमें सड़क, सीवर, नाली, बिजली, ड्रेनेज जैसी जरूरतें शामिल हैं.

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गोरखपुरः कुदरत और किस्मत की मार से परेशान, छत विहीन लोग जहां अपने सिर पर छत होने के लिए सरकार की योजनाओं का लाभ पाने के लिए प्रयास करते हैं. वहीं शहर में 'आसरा आवास योजना' के तहत तीन साल से चयन के बाद भी लाभार्थियों को छत नहीं मिल रही है. जबकि तीन मंजिला बिल्डिंग इस आवास योजना के तहत महानगर के महेसरा ताल के पास बनकर तैयार है. लेकिन योजना के निर्माण में कुछ कमियों और बंदरबांट की वजह से यह अभी भी आधी अधूरी पड़ी है. इसके लाभार्थी जैसी स्थिति है वैसी स्थिति में ही आवास को पाने के लिए शपथ पत्र और अंगूठा लगाकर इसमें रहने की अपनी सहमति दे रहे हैं.

परियोजना अधिकारी विकास कुमार सिंह

बता दें, कि अधिकारी पिछले 3 सालों से न तो इस योजना को पूर्ण करने में गंभीर हो पाए हैं और न ही मौजूदा दौर में इस पर कोई विशेष गंभीरता नजर आ रही है. यही वजह है कि इसके लाभार्थी इस तपती गर्मी में जहां परेशान हैं, वहीं आने वाली बारिश में इनके लिए सिर छुपाना मुश्किल होने वाला है. बता दें कि 'आसरा आवास योजना' अखिलेश यादव सरकार की योजना थी. गोरखपुर के महेसरा ताल के पास जिन चयनित 85 लाभार्थियों के लिए तीन मंजिला बिल्डिंग बनाई जानी थी, उसके लिए पूरा बजट साढ़े पांच करोड़ आवंटित भी हो गया था. 2017 में अखिलेश यादव की सरकार चली गई और प्राप्त बजट से इस बिल्डिंग का निर्माण पूरा किया गया. इसकी कार्यदाई संस्था कंस्ट्रक्शन एंड डिजाइन सर्विसेज (सीएनडीएस) थी, जब इसमें लाभार्थियों को कब्जा देने की बात आई तो सीएनडीएस ने यह कहते हुए हाथ खड़े कर दिए कि अभी बिल्डिंग में कई इंफ्रास्ट्रक्चर के कार्य करने बाकी हैं. इसके लिए अतिरिक्त बजट की जरूरत है. बिना उसके बिल्डिंग को हैंडोवर ने किया जा सकता. इस तरह की डिमांड पिछले करीब 3 साल से है, जो पूरा नहीं हों रहा है.

पढ़ेंः आशियाने का सपना होने लगा साकार, आवंटियों की रजिस्ट्री शुरू

जिसकी वजह से लाभार्थियों के सपनों को उनका छत नहीं मिल रहा और मामला सिर्फ पत्राचार में ही घूम रहा हैं. जिला नगरीय विकास अभिकरण (डूडा) के तहत संचालित होने वाली इस योजना के संबंध में परियोजना अधिकारी विकास कुमार सिंह ने कहा कि वह शासन से लेकर जिलाधिकारी और कार्यदाई संस्था को भी कई बार पत्र लिख चुके हैं. लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकल सका है.

लाभार्थी आशा गौड और ललिता के मुताबिक उनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही. पास-पड़ोस के घरों में चौका बर्तन करके अपना भरण-पोषण करते हैं. उनकी अगुवाई करने वाला भी कोई नहीं है. अगर कोई रास्ता भी दिखाता है, तो सरकारी प्रक्रिया इतनी लंबी इसलिए यह निराश होकर बैठ जाते हैं. उन्होंने जिलाधिकारी से लेकर मुख्यमंत्री तक को पत्र लिखे, उनसे मिलने की सारी कोशिशें कर डाली, लेकिन आसरा योजना है कि इनका सहारा ही नहीं बन रही. सीएनडीएस के अवर अभियंता संदीप कुमार गुप्ता ने भी बजट का हवाला दिया और कहा कि उन्हें जो बजट प्राप्त था उसमें जीएसटी का पैसा शामिल नहीं था. वह पैसा मिल जाए तो मूलभूत निर्माण पूरा करा दिया जाएगा. जिसमें सड़क, सीवर, नाली, बिजली, ड्रेनेज जैसी जरूरतें शामिल हैं.

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Last Updated : Jun 15, 2022, 10:47 PM IST
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