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गोरखपुर की आबोहवा में प्रदूषण का साया, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता - गोरखपुर में प्रदूषण पर वैज्ञानिकों ने जताई चिंता

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक पर्यावरणीय शोध के चलते बड़ा खुलासा हुआ है. शोध में यह बात सामने आई है कि शहर में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ता दिख रहा है.

आब-ओ-हवा में प्रदूषण का साया.
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Published : Oct 12, 2019, 7:44 PM IST

गोरखपुर: शहर की आबोहवा दिन प्रतिदिन जहरीली होती जा रही है. बच्चों, बुजुर्गों और मरीजों को ध्यान में रखकर अगर इसका मूल्यांकन करें तो यह खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है. यह खुलासा उन पर्यावरणीय वैज्ञानिकों के शोध में हुआ है, जो गोरखपुर की हवा और जल संबंधी प्रदूषण पर साल 2011 से अनवरत कार्य कर रहे हैं. रिपोर्ट में शहर का वायु प्रदूषण लगातार बढ़ने की बात सामने आई है. शहर में तेजी से बढ़ते वाहनों की तादाद और निर्माण कार्यों का कछुए की चाल से होते रहना वायु प्रदूषण का बड़ा कारण बनकर उभरा है.

आब-ओ-हवा में प्रदूषण का साया.

वायु गुणवत्ता परखने के लिए लगाई गईं मशीनें
वायु प्रदूषण की स्थिति को जानने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुश्रवण कार्यक्रम के तहत वायु गुणवत्ता परखने के लिए शहर के तीन अलग-अलग क्षेत्रों में मशीन लगाई गई हैं, जिनसे हर तीन माह पर आंकड़े एकत्र किए जाते हैं.

इसकी पूरी निगरानी मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और पर्यावरण विशेषज्ञ प्रोफेसर गोविंद पांडेय के नेतृत्व में की जाती है. जिन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण की माप में आरएसपीएम (रेस्परेबल सस्पेंडेड पर्टिकुलेट मैटर) होता है, जिसे पीएम-10 भी कहते हैं.

इसे भी पढ़ें- 30 रुपये दो, धुआं उगलने वाला वाहन भी हो जाएगा 'प्रदूषण मुक्त'

प्रदूषण की वजह से होता है सफोकेशन
हवा में मौजूद दिखाई न देने वाले यह कण जीरो से 10 माइक्रोन साइज के होते हैं. 50 माइक्रोन से ऊपर के कण ही आंख से देखे जा सकते हैं और ऐसे कण सांस के रास्ते फेफड़े में पहुंचकर स्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं. शहर के लोग भी प्रदूषण की वजह से सफोकेशन महसूस करते हैं, लेकिन इससे बचने का उनके पास कोई उपाय नहीं सूझता.

इसे भी पढ़ें- प्रदूषण नियंत्रण में फेल अस्पतालों पर लगा 24 लाख का जुर्माना

प्रदूषित वायु में शामिल होते हैं ये तत्व
वायु प्रदूषण में जो तत्व शामिल होते हैं. उसमें पीएम-10, एसओ- 2,एनओ-2 और एक्यूआई शामिल होता है. एसओ-2, स्वश्न तंत्र को प्रभावित करता है. यह प्रदूषित हो चुके वायुमंडल में ऑक्सीजन के साथ सल्फर डाइऑक्साइड की भी पर्याप्त मात्रा में मौजूदगी रखता है.

इसे भी पढ़ें- वाहन का प्रदूषण प्रमाण पत्र लेना होगा ऑनलाइन

सांस और दिल के रोगियों की बढ़ रही परेशानी
एनओ-2, की वातावरण में मौजूदगी सांस और दिल के रोगियों की बीमारी को बढ़ाने में सहायक होती है. वहीं एक्यूआई का मतलब एयर क्वालिटी इंडेक्स होता है, जिसके जरिए वायुमंडल और वातावरण में मौजूद हवा की गुणवत्ता की जानकारी मिलती है. इन तीनों कैटेगरी के वायु प्रदूषण मापक सिस्टम में जो मानक निकलकर आया है, वह गोरखपुर में बढ़ते वायु प्रदूषण को दर्शा रहा है.

गोरखपुर: शहर की आबोहवा दिन प्रतिदिन जहरीली होती जा रही है. बच्चों, बुजुर्गों और मरीजों को ध्यान में रखकर अगर इसका मूल्यांकन करें तो यह खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है. यह खुलासा उन पर्यावरणीय वैज्ञानिकों के शोध में हुआ है, जो गोरखपुर की हवा और जल संबंधी प्रदूषण पर साल 2011 से अनवरत कार्य कर रहे हैं. रिपोर्ट में शहर का वायु प्रदूषण लगातार बढ़ने की बात सामने आई है. शहर में तेजी से बढ़ते वाहनों की तादाद और निर्माण कार्यों का कछुए की चाल से होते रहना वायु प्रदूषण का बड़ा कारण बनकर उभरा है.

आब-ओ-हवा में प्रदूषण का साया.

वायु गुणवत्ता परखने के लिए लगाई गईं मशीनें
वायु प्रदूषण की स्थिति को जानने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुश्रवण कार्यक्रम के तहत वायु गुणवत्ता परखने के लिए शहर के तीन अलग-अलग क्षेत्रों में मशीन लगाई गई हैं, जिनसे हर तीन माह पर आंकड़े एकत्र किए जाते हैं.

इसकी पूरी निगरानी मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और पर्यावरण विशेषज्ञ प्रोफेसर गोविंद पांडेय के नेतृत्व में की जाती है. जिन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण की माप में आरएसपीएम (रेस्परेबल सस्पेंडेड पर्टिकुलेट मैटर) होता है, जिसे पीएम-10 भी कहते हैं.

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प्रदूषण की वजह से होता है सफोकेशन
हवा में मौजूद दिखाई न देने वाले यह कण जीरो से 10 माइक्रोन साइज के होते हैं. 50 माइक्रोन से ऊपर के कण ही आंख से देखे जा सकते हैं और ऐसे कण सांस के रास्ते फेफड़े में पहुंचकर स्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं. शहर के लोग भी प्रदूषण की वजह से सफोकेशन महसूस करते हैं, लेकिन इससे बचने का उनके पास कोई उपाय नहीं सूझता.

इसे भी पढ़ें- प्रदूषण नियंत्रण में फेल अस्पतालों पर लगा 24 लाख का जुर्माना

प्रदूषित वायु में शामिल होते हैं ये तत्व
वायु प्रदूषण में जो तत्व शामिल होते हैं. उसमें पीएम-10, एसओ- 2,एनओ-2 और एक्यूआई शामिल होता है. एसओ-2, स्वश्न तंत्र को प्रभावित करता है. यह प्रदूषित हो चुके वायुमंडल में ऑक्सीजन के साथ सल्फर डाइऑक्साइड की भी पर्याप्त मात्रा में मौजूदगी रखता है.

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सांस और दिल के रोगियों की बढ़ रही परेशानी
एनओ-2, की वातावरण में मौजूदगी सांस और दिल के रोगियों की बीमारी को बढ़ाने में सहायक होती है. वहीं एक्यूआई का मतलब एयर क्वालिटी इंडेक्स होता है, जिसके जरिए वायुमंडल और वातावरण में मौजूद हवा की गुणवत्ता की जानकारी मिलती है. इन तीनों कैटेगरी के वायु प्रदूषण मापक सिस्टम में जो मानक निकलकर आया है, वह गोरखपुर में बढ़ते वायु प्रदूषण को दर्शा रहा है.

Intro:यह खबर स्पेशल कटेगरी की है जो सिर्फ अपने चैनल के पास है..

ओपनिंग पीटीसी...

गोरखपुर। गोरखपुर शहर की आब-ओ-हवा दिन प्रतिदिन जहरीली होती जा रही है। बच्चों, बुजुर्गों और बीमार व्यक्तियों को ध्यान में रखकर अगर इसका मूल्यांकन करें तो यह खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। यह खुलासा पर्यावरणीय वैज्ञानिकों के शोध से हुआ है जो गोरखपुर की हवा और जल संबंधी प्रदूषण पर साल 2011 से अनवरत कार्य कर रहे हैं। उन्होंने माना है कि शहर का वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। शहर में बढ़ते तेजी से वाहनों की तादाद और निर्माण कार्यों का कछुए की चाल से होते रहना वायु प्रदूषण के बढ़ने का बड़ा कारण निकल कर सामने आया है।

नोट--कम्प्लीट पैकेज, वॉइस ओवर अटैच है।


Body:वायु प्रदूषण की स्थिति को जानने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुश्रवण कार्यक्रम के तहत वायु गुणवत्ता परखने के लिए शहर के तीन अलग-अलग क्षेत्रों में मशीन लगाई गई है। जिनसे हर तीन माह पर आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं। इसकी पूरी निगरानी मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और पर्यावरण विशेषज्ञ प्रोफेसर गोविंद पांडे के नेतृत्व में होता है। जिन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण की माप मे आरएसपीएम(रेस्परेबल सस्पेंडेड पर्टिकुलेट मैटर) होता है। जिसे पीएम-10 कहते हैं। हवा में मौजूद दिखाई न देने वाले यह कण जीरो से 10 माइक्रोन साइज के होते हैं। 50 माइक्रोन से ऊपर के कण ही आंख से देखे जा सकते हैं और ऐसे कण सांस के रास्ते फेफड़े में पहुंचकर स्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं। शहर के लोग भी प्रदूषण की वजह से सफोकेशन महसूस करते हैं लेकिन इससे बचने का उनके पास कोई उपाय नहीं सूझता।

बाइट--संजय कुमार, शहरवासी, *सफेद टीशर्ट में
बाइट--विनोद सिंह, शहरवासी (चश्मे में)
बाइट--प्रो0गोविंद पाण्डेय, पर्यावरण विशेषज्ञ


Conclusion:वायु प्रदूषण में जो तत्व शामिल होते हैं उसमें पीएम-10, एसओ- 2,एनओ-2 और एक्यूआई शामिल होता है। एसओ-2, स्वसन तंत्र को प्रभावित करता है। यह प्रदूषित हो चुके वायुमंडल में ऑक्सीजन के साथ सल्फर डाइऑक्साइड की भी पर्याप्त मात्रा में मौजूदगी रखता है। एनओ-2, की वातावरण में मौजूदगी सांस और दिल के रोगियों की बीमारी को बढ़ाने में सहायक होती है। वहीं एक्यूआई का मतलब एयर क्वालिटी इंडेक्स होता है। जिसके जरिए वायुमंडल और वातावरण में मौजूद हवा की गुणवत्ता की जानकारी मिलती है। इन तीनों कैटेगरी के वायु प्रदूषण मापक सिस्टम में जो मानक निकल कर आया है वह गोरखपुर में बढ़ते वायु प्रदूषण को दर्शा रहा है।

क्लोजिंग पीटीसी
मुकेश पाण्डेय
Etv भारत, गोरखपुर
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