गोरखपुरः रेलवे बोर्ड की मंजूरी मिलने के बाद भी पूर्वोत्तर रेलवे की पूर्वांचल और खासकर गोरखपुर-बस्ती मंडल में शुरू की जाने वाली आधा दर्जन परियोजनाएं आज भी अधर में लटकी हुई हैं. ऐतिहासिक और पर्यटन की दृष्टि से इन परियोजनाओं को भारत सरकार और रेल मंत्रालय ने स्वीकृति प्रदान की थी लेकिन पिछले 3 वर्षों से ठंडे बस्ते में पड़ी हैं. यह परियोजनाएं जनता की जरूरतों के साथ यातायात व्यवस्था को कई माध्यम से सुगम बनाने में बहुत ही उपयोगी हैं. इसके बावजूद धरातल पर नहीं उतर पाई हैं. पिछले सवा साल से कोरोना की मार से पूरा देश प्रभावित हुआ है, लेकिन यह परियोजनाएं 2018 में स्वीकृत हुई थीं. इस संबंध में गोरखपुर मुख्यालय में बैठे अधिकारी चुप्पी साधते हुए सारा मामला रेलवे बोर्ड पर टाल देते हैं.
रेल बजट में जिन प्रमुख रेल लाइनों के लिए स्वीकृति मिली और ऊंट के मुंह में जीरा बराबर धन स्वीकृत हुआ वह परियोजना सहजनवा- दोहरीघाट रेलवे लाइन हैं, जो करीब 81 किलोमीटर की है. इसी प्रकार आनंदनगर- महाराजगंज- घुघली नई रेल लाइन करीब 50 किलोमीटर की है. कपिलवस्तु- बांसी बस्ती रेल परियोजना 91 किलोमीटर की है. गोरखपुर-पडरौना- कुशीनगर रेल परियोजना कुल 64 किलोमीटर की है. तुलसीपुर के रास्ते बहराइच-श्रावस्ती- बलरामपुर के लिए संचालित होने वाली रेल परियोजना 80 किलोमीटर की है. सिर्फ इसी परियोजना पर 20 करोड़ का बजट कार्य शुरू करने के लिए स्वीकृत भी किए गए थे.
4 योजनाओं के लिए सिर्फ एक हजार रुपये स्वीकृत
बाकी अन्य जिन 4 परियोजनाओं के लिए मात्र एक हजार रुपये ही स्वीकृत किए गए. जो परियोजना को लेकर सरकार की गंभीरता को दर्शाता है. यही वजह है कि स्थानीय अधिकारी कुछ भी नहीं बोलते. बता दें कि बहराइच-श्रावस्ती-बलरामपुर-खलीलाबाद रेल परियोजना का 2 मार्च 2019 को रेल मंत्री पीयूष गोयल ने खलीलाबाद में नींव भी रख दिया था.
धन आवंटन नहीं हुआ
पूर्वोत्तर रेलवे में प्रधान परिचालन प्रबंधक और मुख्य जनसंपर्क अधिकारी रहे रिटायर्ड IRTS अधिकारी राकेश त्रिपाठी ने ETV BHARAT से बताया कि इन परियोजनाओं को तेजी के साथ शुरू होने में सबसे ज्यादा जरूरत धन के आवंटन का ही होता है. जो कि इन परियोजनाओं की स्वीकृति के साथ नहीं किया गया. इसके बाद इन परियोजनाओं को जमीन पर उतारने के लिए स्थानीय जिला प्रशासन का मदद लेना होता है. जो जमीन के अधिग्रहण से लेकर किसानों को दिए जाने वाले मुआवजे तक में रेल प्रशासन की मदद करते हैं. बजट से लेकर टेंडरिंग तक में अपनाए जाने वाले लापरवाही पूर्ण कदम परियोजनाओं के लेटलतीफी के कारण हैं.
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ऐतिहासिक और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं यह रेल परियोजनाएं
राकेश त्रिपाठी ने कहा कि कपिलवस्तु- कुशीनगर जहां बौद्ध सर्किट के रूप में अपनी पहचान रखता है तो आनंदनगर- महाराजगंज- बहराइच -श्रावस्ती -बलरामपुर, नेपाल का सीमावर्ती क्षेत्र है. रेलवे की प्रस्तावित परियोजनाएं पूर्ण होने से यहां पर्यटन को बढ़ावा मिलता. उन्होंने कहा कि सहजनवा दोहरीघाट रेल लाइन के लिए कैबिनेट ने 17 जुलाई 2019 को स्वीकृति दी थी और निर्माण के लिए 1320 करोड़ का बजट भी स्वीकृत किया था. इसी प्रकार भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थल कुशीनगर रेल परियोजना के लिए 1345 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित है. जबकि कैबिनेट ने बहराइच-श्रावस्ती- बलरामपुर- खलीलाबाद रेल लाइन के लिए 4940 करोड़ का बजट स्वीकृत किया था. जिसके लिए मात्र 20 करोड़ जारी हुआ. उन्होंने कहा कि ये परियोजनाएं समय से शुरू होकर पूरी हो जाती तो महाराजगंज के वह लोग जो अंग्रेजों के जमाने से ट्रेनों की आवाज सुनने का इंतजार खत्म हो जाता. वहीं, कुशीनगर के लोग जो अभी भी सड़क मार्ग से यात्रा कर रहे हैं उनकी यात्रा सुलभ हो जाती.