गोण्डा: देशभर के 51 शक्तिपीठों में बाराही देवी का मंदिर 34वां शक्तिपीठ माना जाता है. ऐसे में यहां देश-विदेश से भक्त आते हैं. इस मंदिर की खास बात ये है कि यहां हजारों भक्त आते हैं, क्योंकि उनका मनोवांछित फल उन्हें यहीं प्राप्त होता है.
34वें शक्तिपीठ के रूप में प्रचलित इस पीठ को कालांतर में उत्तरी भवानी के नाम से जाना गया. आज तक उनकी पूजा की जा रही है. जगत जननी मां भगवती का यह धाम जनपद मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर बेलसर ब्लाक में स्थित है.
पुराणों में वर्णित है कि भगवान शिव की पत्नी सती के यज्ञ में आत्मदाह करने के बाद उनके शरीर को जब शंकर भगवान लेकर जा रहे थे तो श्रीहरि ने जगत कल्याण के लिये अपने चक्र से उनके पार्थिव शरीर को छिन्न-भिन्न कर दिया था. उनके शरीर के अंग ब्रह्माण्ड के 51 स्थानों पर गिरे, जो शक्तिपीठ बन गए. उन्हीं में से एक बाराही देवी का ये स्थान 34वां शक्तिपीठ है.
यहां पर मां सती के पीछे के दो दांत गिरे थे. आज भी यहां दो छिद्र मौजूद हैं, जिनकी गहराई आज तक नहीं मापी जा सकी है. किवदंतियां प्रचलित हैं कि सालों पहले किसी ने ऐसा करने का प्रसास किया था. उसने करीब 4000 मीटर धागा एक पत्थर में बांधकर डाला था, तो उनकी देखने की शक्ति चली गई थी.
मां का उल्लेख पुराणों में सभी का कल्याण करने वाली देवी मां के रूप में हुआ है. बाराही देवी उत्तरी भवानी का इतिहास बहुत पुराना है.यह भी बताया जाता है कि जब बाराह भगवान ने पृथ्वी को बचाने के लिए जब अवतार लिया था तो यहीं पर जगत कल्याण हेतु उनके आह्वान पर बाराही देवी भी अवतरित हुई थीं.
लोगों का मानना है कि इस मंदिर में मांगी गई सारी मन्नतें पूरी हो जाती हैं. यहां हर शुक्रवार और सोमवार को हजारों भक्तों द्वारा दर्शन कर प्रसाद चढ़ाया जाता है. मान्यता है कि जिनकी आंखों में कोई दिक्कत आ जाती है तो यहां पर लगा हुआ 1800 वर्ष पुराने बरगद के पेड़ का दूध और यहां से निकला काजल आंखों में लगाने से लाभ होता है.