गोण्डा: किसानों की बेहतरी के लिए सरकार कई सारी योजनाएं चला रही है. साथ ही वह कई तकनीकियों पर अनुदान भी उपलब्ध करा रही है, जिससे किसान कम संसाधन में उचित मुनाफा प्राप्त कर पाएं. हम बात कर रहे हैं स्प्रिंकलर सिंचाई की, जिसमें फव्वारों के माध्यम से खेतों को सींचा जाता है. इस तकनीक से किसान कम पानी में हर तरह की फसलों की सिंचाई कर सकता है. साथ ही इससे उत्पादन में भी बढ़त होती है. इसमें सरकार के द्वारा किसानों को 80 से 90 फीसद का अनुदान दिया जा रहा है.
इस पद्धति को बौछारी पद्धति भी कहते हैं
रेन गन या स्प्रिंकलर सिंचाई जिले में इसके लिए उद्यान विभाग की तरफ से काफी प्रयास किये जा रहे हैं. स्प्रिंकलर सिंचाई अपनाने से फसलों की लागत में 40 फीसदी की कमी एवं उत्पादन में 40 प्रतिशत का इजाफा होता है. इस पद्धति को बौछारी पद्धति भी कहते हैं. इसमें खेतों में पाइप के माध्यम से फव्वारा सीधे फसलों पर गिरता है. जिसके कारण यह फसलों के उत्पादन में बेहद लाभप्रद है, वहीं सिंचाई में पानी और समय की भी बचत होती है. इस पद्धति से सभी खेतों में एक साथ फसलों की सिंचाई सम्भव है. इस तकनीक को अपनाने पर किसानों को 1 हेक्टेयर पर 30 हजार का खर्च आएगा.
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उद्यान विभाग की वेबसाइट से भी पंजीकरण करा सकते हैं किसान
उद्यान विभाग द्वारा इस पद्धति को अपनाने के लिए सरकार द्वारा अनुदान भी दिया जा रहा है. जिसमें 2 हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसानों को 90 फीसदी का अनुदान, वहीं 2 हेक्टेयर से ज्यादा वाले किसानों को 80 फीसदी का अनुदान दिया जा रहा है. इस योजना का लाभ लेने के लिए किसान उद्यान विभाग की वेबसाइट और सीधे विभाग से भी पंजीकरण करा सकते हैं.
उद्यान निरीक्षक ने जानकारी देते हुए बताया कि
यह पद्धति इतनी कारगर इसलिए है, क्योंकि यह बारिश का एक विकल्प के तौर पर साबित होती है. उन्होंने बताया कि रेन गन के माध्यम से फसलों के पत्तियों पर पानी गिरता रहता है, जिससे वह स्वच्छ और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया अच्छी तरह से करते हैं. कई कीड़े मकोड़े भी पत्तियों को अपना ग्रास बना लेते हैं, इस अपनाने से वे पनप नहीं पाते हैं.
लेकिन रेन गन या स्प्रिंकलर सिचाई से निकलने वाले फव्वारे के कारण फसलों को खाने वाले कीड़े-मकोड़े पत्तियों से नीचे पानी में गिर जाते हैं. यह पद्धति कीटों से भी बचाव में कारगर है. साथ ही इसमें कीटनाशक इत्यदि सीधे सिंचाई के माध्यम से दी जा सकती है, जिससे समय, परिश्रम और लागत में काफी बचाव संभव है.
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