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रेन गन सिंचाई से किसानों की बढ़ेगी लागत, जानें खूबियां - गोण्डा में बौछारी पद्धति से सिंचाई

यूपी के गोण्डा में स्प्रिंकलर सिंचाई के लिए उद्यान विभाग की तरफ से काफी प्रयास किए जा रहे हैं. इस पद्धति से सभी खेतों में एक साथ फसलों की सिंचाई सम्भव है.

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स्प्रिंकलर सिचाई के लिए उद्यान विभाग की तरफ से काफी प्रयास
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Published : Dec 9, 2019, 11:57 PM IST

गोण्डा: किसानों की बेहतरी के लिए सरकार कई सारी योजनाएं चला रही है. साथ ही वह कई तकनीकियों पर अनुदान भी उपलब्ध करा रही है, जिससे किसान कम संसाधन में उचित मुनाफा प्राप्त कर पाएं. हम बात कर रहे हैं स्प्रिंकलर सिंचाई की, जिसमें फव्वारों के माध्यम से खेतों को सींचा जाता है. इस तकनीक से किसान कम पानी में हर तरह की फसलों की सिंचाई कर सकता है. साथ ही इससे उत्पादन में भी बढ़त होती है. इसमें सरकार के द्वारा किसानों को 80 से 90 फीसद का अनुदान दिया जा रहा है.

जानकारी देते उद्यान निरीक्षक अनिल शुक्ला.

इस पद्धति को बौछारी पद्धति भी कहते हैं
रेन गन या स्प्रिंकलर सिंचाई जिले में इसके लिए उद्यान विभाग की तरफ से काफी प्रयास किये जा रहे हैं. स्प्रिंकलर सिंचाई अपनाने से फसलों की लागत में 40 फीसदी की कमी एवं उत्पादन में 40 प्रतिशत का इजाफा होता है. इस पद्धति को बौछारी पद्धति भी कहते हैं. इसमें खेतों में पाइप के माध्यम से फव्वारा सीधे फसलों पर गिरता है. जिसके कारण यह फसलों के उत्पादन में बेहद लाभप्रद है, वहीं सिंचाई में पानी और समय की भी बचत होती है. इस पद्धति से सभी खेतों में एक साथ फसलों की सिंचाई सम्भव है. इस तकनीक को अपनाने पर किसानों को 1 हेक्टेयर पर 30 हजार का खर्च आएगा.

इसे भी पढ़ें- हमीरपुर: 5 खनिज उपवनों में लगाए जाएंगे 25 हजार फलदार पौधे

उद्यान विभाग की वेबसाइट से भी पंजीकरण करा सकते हैं किसान
उद्यान विभाग द्वारा इस पद्धति को अपनाने के लिए सरकार द्वारा अनुदान भी दिया जा रहा है. जिसमें 2 हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसानों को 90 फीसदी का अनुदान, वहीं 2 हेक्टेयर से ज्यादा वाले किसानों को 80 फीसदी का अनुदान दिया जा रहा है. इस योजना का लाभ लेने के लिए किसान उद्यान विभाग की वेबसाइट और सीधे विभाग से भी पंजीकरण करा सकते हैं.


उद्यान निरीक्षक ने जानकारी देते हुए बताया कि
यह पद्धति इतनी कारगर इसलिए है, क्योंकि यह बारिश का एक विकल्प के तौर पर साबित होती है. उन्होंने बताया कि रेन गन के माध्यम से फसलों के पत्तियों पर पानी गिरता रहता है, जिससे वह स्वच्छ और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया अच्छी तरह से करते हैं. कई कीड़े मकोड़े भी पत्तियों को अपना ग्रास बना लेते हैं, इस अपनाने से वे पनप नहीं पाते हैं.

लेकिन रेन गन या स्प्रिंकलर सिचाई से निकलने वाले फव्वारे के कारण फसलों को खाने वाले कीड़े-मकोड़े पत्तियों से नीचे पानी में गिर जाते हैं. यह पद्धति कीटों से भी बचाव में कारगर है. साथ ही इसमें कीटनाशक इत्यदि सीधे सिंचाई के माध्यम से दी जा सकती है, जिससे समय, परिश्रम और लागत में काफी बचाव संभव है.

इसे भी पढ़ें- बरेली: स्मार्ट सिटी मिशन के तहत गांधी उद्यान में बनेगा वर्टिकल गार्डन

गोण्डा: किसानों की बेहतरी के लिए सरकार कई सारी योजनाएं चला रही है. साथ ही वह कई तकनीकियों पर अनुदान भी उपलब्ध करा रही है, जिससे किसान कम संसाधन में उचित मुनाफा प्राप्त कर पाएं. हम बात कर रहे हैं स्प्रिंकलर सिंचाई की, जिसमें फव्वारों के माध्यम से खेतों को सींचा जाता है. इस तकनीक से किसान कम पानी में हर तरह की फसलों की सिंचाई कर सकता है. साथ ही इससे उत्पादन में भी बढ़त होती है. इसमें सरकार के द्वारा किसानों को 80 से 90 फीसद का अनुदान दिया जा रहा है.

जानकारी देते उद्यान निरीक्षक अनिल शुक्ला.

इस पद्धति को बौछारी पद्धति भी कहते हैं
रेन गन या स्प्रिंकलर सिंचाई जिले में इसके लिए उद्यान विभाग की तरफ से काफी प्रयास किये जा रहे हैं. स्प्रिंकलर सिंचाई अपनाने से फसलों की लागत में 40 फीसदी की कमी एवं उत्पादन में 40 प्रतिशत का इजाफा होता है. इस पद्धति को बौछारी पद्धति भी कहते हैं. इसमें खेतों में पाइप के माध्यम से फव्वारा सीधे फसलों पर गिरता है. जिसके कारण यह फसलों के उत्पादन में बेहद लाभप्रद है, वहीं सिंचाई में पानी और समय की भी बचत होती है. इस पद्धति से सभी खेतों में एक साथ फसलों की सिंचाई सम्भव है. इस तकनीक को अपनाने पर किसानों को 1 हेक्टेयर पर 30 हजार का खर्च आएगा.

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उद्यान विभाग की वेबसाइट से भी पंजीकरण करा सकते हैं किसान
उद्यान विभाग द्वारा इस पद्धति को अपनाने के लिए सरकार द्वारा अनुदान भी दिया जा रहा है. जिसमें 2 हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसानों को 90 फीसदी का अनुदान, वहीं 2 हेक्टेयर से ज्यादा वाले किसानों को 80 फीसदी का अनुदान दिया जा रहा है. इस योजना का लाभ लेने के लिए किसान उद्यान विभाग की वेबसाइट और सीधे विभाग से भी पंजीकरण करा सकते हैं.


उद्यान निरीक्षक ने जानकारी देते हुए बताया कि
यह पद्धति इतनी कारगर इसलिए है, क्योंकि यह बारिश का एक विकल्प के तौर पर साबित होती है. उन्होंने बताया कि रेन गन के माध्यम से फसलों के पत्तियों पर पानी गिरता रहता है, जिससे वह स्वच्छ और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया अच्छी तरह से करते हैं. कई कीड़े मकोड़े भी पत्तियों को अपना ग्रास बना लेते हैं, इस अपनाने से वे पनप नहीं पाते हैं.

लेकिन रेन गन या स्प्रिंकलर सिचाई से निकलने वाले फव्वारे के कारण फसलों को खाने वाले कीड़े-मकोड़े पत्तियों से नीचे पानी में गिर जाते हैं. यह पद्धति कीटों से भी बचाव में कारगर है. साथ ही इसमें कीटनाशक इत्यदि सीधे सिंचाई के माध्यम से दी जा सकती है, जिससे समय, परिश्रम और लागत में काफी बचाव संभव है.

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Intro:किसानों के बेहतरी के लिए सरकार कई सारी योजनाएं लेकर आई है, साथ ही वह कई तकनीकियों पर अनुदान भी उपलब्ध करा रही है। जिससे किसान कम संसाधन में उचित मुनाफा कर पाएं। हम बात कर रहे हैं स्प्रिंकलर सिचाई की इस सिचाई में फव्वारों के माध्यम से खेतों को सींचा जाता है। इस तकनीक से किसान कम पानी में हर तरह की फसलों को सींच सकता हैं। साथ ही इससे उत्पादन में भी बढ़त होती है। इसमें सरकार के द्वारा किसानो को 80 से 90 फीसद का अनुदान दिया जा रहा है। बता दें कि इस तकनीक को अपनाने पर किसानों को 1 हेक्टेयर पर 30 हजार का खर्च आएगा।

Body:रेन गन या स्प्रिंकलर सिचाई जिले में इसके लिए उद्यान विभाग की तरफ से काफी प्रयास किये जा रहे हैं। बता दें कि स्प्रिंकलर सिचाई अपनाने से फसलों की लागत में 40 फीसदी की कमी एवं उत्पादन में 40 प्रतिशत का इजाफा होता है। बता दें कि इस पद्धति को बौछारी पद्धति कहते हैं। इसमें खेतो में पाइप के माध्यम से फव्वारा सीधे फसलों पर गिरता है जिसके कारण यह फसलों के उत्पादन में बेहद लाभप्रद है। जहाँ सिचाई में पानी की बचत तो होती ही है, कम पानी के साथ ही समय की भी बचत होती है। वहीं एक साथ सभी खेतो में भी फसलों की सिचाई इस पद्धति से सम्भव है। इस बाबत उद्यान निरीक्षक अनिल शुक्ल बताते हैं कि यह पद्धति इतनी कारगर इसलिए है क्योंकि यह बारिश का एक विकल्प के तौर पर साबित होती है। उन्होंने बताया कि रेन गन के माध्यम से फसलों के पत्तियों पर पानी गिरता रहता है जिससे वह स्वच्छ होते हैं और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया अच्छे से करते हैं वह बताते हैं कि कई कीड़े मकोड़े भी पत्तियों को अपना ग्रास बना लेते हैं जिसके कारण वह पनप नहीं पाता लेकिन रेन गन या स्प्रिंकलर सिचाई के द्वारा एवं उसमें से निकलने वाले फ़व्वारे के कारण फसलों को खाने वाले कीड़े मकोड़े पत्तियों से नीचे पानी में गिर जाते हैं। जिसके कारण कीटों से भी बचाव में भी यह पद्धति कारगर है। साथ ही इसमें कीटनाशक इत्यदि भी सीधे सिचाई के माध्यम से दी जा सकती है। जिससे समय, परिश्रम व लागत में काफी बचाव संभव है। Conclusion:बता दें कि उद्यान विभाग द्वारा इस पद्धति को अपनाने के लिए सरकार द्वारा अनुदान भी दिए जा रहे है जिसमें 2 हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसानों को 90 फीसदी का अनुदान वहीं 2 हेक्टेयर से ज्यादा वाले किसानों को 80 फीसदी का अनुदान दिया जा रहा है। इस योजना का लाभ लेने के लिए किसान उद्यान विभाग की वेबसाइट व सीधे विभाग से भी पंजीकरण करा सकते हैं।

बाईट- अनिल शुक्ल(उद्यान निरीक्षक गोण्डा)
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