गोंडा: 21 जून को पूरे विश्व में योग दिवस मनाया जा रहा है. अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर मोदी सरकार ने विश्व को योग के मायने बताने की पहल तो कर दी है, लेकिन योग के जनक महर्षि पतंजलि को लोगों ने भुला दिया है. जिले के वजीरगंज थाना क्षेत्र के कोंडर गांव में योग गुरू महर्षि पतंजलि की जन्मभूमि आज भी पहचान की मोहताज है. इसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने हकीकत जानने की कोशिश की.
आखिर क्यों उपेक्षा की शिकार है महर्षि पतंजलि की जन्मभूमि
- गोण्डा जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर वजीरगंज थाना क्षेत्र में कोंडर गांव आता है.
- कोंडर का यह क्षेत्र भगवान श्रीराम की गायों के चरने के कारण अस्तित्व में आया था.
- लगभग 5,000 वर्ष पहले यह कोंडर गांव महर्षि पतंजलि की लीलाओं का केंद्र रहा था.
- भगवान का शेषावतार कहे जाने वाले महर्षि पतंजलि अयोध्या से सटे इसी गांव में मां गोंडिका के गर्भ से उत्पन्न हुए थे.
- यहीं पर रहकर उन्होंने लोगों को योग की शिक्षा दी और कालांतर में अंतर्ध्यान हो गए.
- कोंडर गांव और यहां की विशाल कोंडर झील आज भी उस विशालता को प्रदर्शित करने के लिए काफी है.
- हालांकि आज यह गांव विश्व के मानचित्र पर अपनी असल पहचान का बनाने का मोहताज हो गया है.
- गांव को पहचान दिलाने के लिए महर्षि पतंजलि जन्मभूमि के अध्यक्ष स्वामी भगवदाचार्य तमाम प्रयास कर रहे हैं.
- स्वामी भगवदाचार्य ने सरकार से मांग की है कि इस जगह को विकसित कर महर्षि पतंजलि की जन्मभूमि की पहचान दिलाई जाए.
- महर्षि पतंजलि के नाम से अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए.
- स्थानीय लोग भी मांग कर रहे हैं कि इस जगह को सरकार विकसित करे.
- देश और विदेश से लोग यहां आएं और महर्षि पतंजलि के बारे में जानें.