गोंडा: गोंडा जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर खरगूपुर कसबे के पास एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग स्थापित है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पांडवो ने अज्ञातवास के दौरान इस शिवलिंग की स्थापना की थी. धर्मनगरी अयोध्या से सटे गोंडा जिले में त्रेतायुग के प्रमाण तो आसानी से जगह-जगह मिल जाएंगे. वहीं, गोंडा के खरगूपुर में द्वापर युग में महाबली भीम ने शिवलिंग की स्थापना की थी. महाशिवरात्रि, श्रावण मास और कजली तीज पर यहां मंदिर के अंदर से डमरू की आवाज आती है और यहां आने वाले भक्तों का कल्याण होता है.
पाप से मुक्ति पाने के लिए भीम ने की थी शिवलिंग की स्थापना
महाभारत के अनुसार वनवास के समय पांडुपुत्र भीम ने बकासुर का वध किया था, जिसमें भीम को ब्रह्म हत्या का दोष लगा था. यह राक्षस ब्राह्मण था और उसके वध के बाद अपने पाप का मार्जन करने के लिए भीम ने शिवलिंग की स्थापना की थी. कहा जाता है कि ये पांच खंडो का शिवलिंग है, जो 5.5 फीट ऊपर दिखता है और 54 फीट जमीन के नीचे था. भगवान कृष्ण के निर्देश पर विश्वकर्मा के पत्थरों की कसौटी पर बना यह शिवलिंग विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग है. इस शिवलिंग पर नक्काशी महाभारत कालीन है. यहां पर साल में तीन मेले लगते हैं, जहां देश व विदेश से आए लाखों कांवड़िया और शिवभक्त जल चढ़ाकर भोले नाथ को प्रसन्न करते हैं.
शिवलिंग के अरघे पर बना है मंदिर
पृथ्वीनाथ मंदिर शिवलिंग के अरघे पर ही बना है. इस मंदिर में भीम ने विशालकाय शिवलिंग स्थापना तब की थी, जब भीम अपने चारों भाइयों के साथ वनवास काट रहे थे. उस समय बकापुर दानव का आतंक व्याप्त था, जिससे लोग दुखी व परेशान थे. बकासुर का आतंक महाबली भीम से देखा नहीं गया, तब भीम ने बकासुर दानव का वध किया. बकासुर के वध के बाद भीम के ऊपर ब्रह्म हत्या का दोष लगा.
बकासुर दानव जाति का ब्रह्मण था. इस दोष से मुक्ति के लिए भीम ने शिवलिंग की स्थापना की थी. यह मंदिर पहले भीमेश्वर नाथ महादेव के नाम से प्रसिद्ध था और जब कालांतर में विलुप्त हुआ, तब राजा पृथ्वी सिंह ने खुदाई कराई और मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ. इसके बाद इसका नाम पृथ्वीनाथ मंदिर हो गया.
दुनिया के सबसे बड़े शिवलिंग की हुई थी स्थापना तब से हो रही आराधना
देश के कोने-कोने और विदेशों से मंदिर में भक्त दर्शन करने आते हैं. यहां आने वाले लोग इसकी विशालता देख अचंभित रह जाते हैं. दुनिया में भीम द्वारा स्थापित कसौटी पत्थर का यह अकेला शिवलिंग है, जो धरती के उपर 5.5 फीट ऊंचाई का दिखाई देता है और धरती के नीचे 54 फिट का है. बताया जाता है कि इस शिव लिंग के चार अरघे जमीन के नीचे हैं और अरघे पर ही मंदिर का निर्मार्ण किया गया है. इस मंदिर पर सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
मंदिर के अंदर से आती है डमरू की आवाज
ऐसी मान्यता है की महाशिवरात्रि, श्रावण मास और कजली तीज के दौरान भगवान आशुतोष महादेव और भगवती पार्वती यहां पर निवास करते हैं. इस दिन जो भी भक्त यहां आते हैं उनकी मनोकामना पूरी होती है. वहीं, महाशिवरात्रि और अन्य पर्वों पर यहां डमरू की आवाज आती है और जगत का कल्याण होता है. पृथ्वीनाथ मंदिर के महंत जगदम्बा प्रसाद तिवारी ने बताया कि यहां आने से सभी कष्टों का निवारण होता है. देश व विदेश से शिवभक्त मंदिर में दर्शन व पूजा अर्चना करने आते हैं. भगवान शंकर उनकी मुरादे पूरी करते हैं. वहीं, भक्त दुर्गेश कुमार और आकाश ओझा ने बताया कि वो लोग पृथ्वीनाथ मंदिर में आते हैं. भगवान भोलेनाथ उनकी मुरादें पूरी करते हैं.
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