गाजीपुर: आज विश्व शिक्षक दिवस है. आज का दिन अध्यापकों की बेहतरी और सेवानिवृत्त शिक्षकों के विशेष योगदान के लिए मनाया जाता है, लेकिन कोरोना के कारण लॉकडाउन की वजह से प्राइवेट वित्तविहीन और काउंसलर शिक्षकों के हाल बेहाल हैं. ईटीवी भारत की टीम ने विश्व शिक्षक दिवस के मौके पर ऐसे ही शिक्षकों से बात की.
कब हुई विश्व शिक्षक दिवस मनाने की शुरुआत
जानकारी के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 1966 में यूनेस्को और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के तत्वावधान में अध्यापकों की स्थिति पर चिंतन और स्थिति में बदलाव को लेकर बैठक हुई. बैठक में सभी ने शिक्षकों की बेहतरी के लिए अपने सुझाव दिए. उस संयुक्त बैठक को याद करने के लिए 5 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस मनाया जाता था. 1994 के बाद से प्रति वर्ष सौ से ज्यादा देशों में विश्व शिक्षक दिवस मनाया जाने लगा.
कोरोना काल में हो गए बेरोजगार
दिव्यांग छात्रों के स्पेशल एजुकेटर कमलेश बताते हैं कि 22 मार्च को कोरोना काल में संस्था के द्वारा उन्हें निष्कासित कर दिया गया था. इस दौरान बेरोजगारी के साथ ही आर्थिक संकट का भी सामना करना पड़ा. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उनकी पत्नी को 5 माह बाद गर्भपात हो गया. तब उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह उनका इलाज करा सके. जब वह संस्था गए तो संस्था संचालकों द्वारा पूर्व में बकाया वेतन तक नहीं दिया गया. इसके साथ ही संचित धन भी नहीं दिया गया. तब उन्हें उधार लेकर पत्नी का इलाज कराना पड़ा. कमलेश बताते हैं कि कोरोना के कारण लागू लॉकडाउन के बाद अब अनलॉक में भी शिक्षकों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. सरकार आज भी शिक्षकों के प्रति उदासीन बनी हुई है.
प्रबंधन ने रोक दिया मानदेय
वहीं वित्तविहीन शिक्षक प्रह्लाद सिंह यादव ने बताया कि कोरोना काल में प्रबंधन ने मिलने वाला 5,000 रुपये का मानदेय भी बंद कर दिया. कोरोना काल में जब उनका भाई बीमार पड़ा तो पैसे के अभाव में वह भाई का इलाज तक नहीं करा सके. इलाज के अभाव में 4 जून को उनके भाई की मौत हो गई.
मार्च से रोक दिया गया वेतन
वित्तविहीन विद्यालय में विज्ञान के शिक्षक अनिल कुमार ने बताया कि मानदेय के रूप में 5,000 रुपये मिलते थे. कॉलेज प्रबंधन द्वारा कोरोना के कारण लागू लॉकडाउन के चलते मार्च से वेतन रोक दिया गया. बड़ी मायूसी के साथ उन्होंने विश्व शिक्षक दिवस की बधाई देते हुए कहा कि शिक्षकों की समस्या का निदान नहीं होने वाला है. कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन किसी ने भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया.