गाजीपुर: देश की राजधानी दिल्ली के साथ ही यूपी के गाजियाबाद, मेरठ, लखनऊ, कानपुर, आगरा और वाराणसी में हालात बद से बदतर हो गए हैं. गाजीपुर की आबोहवा भी बहुत अच्छी नहीं है. सभी के जहन में प्रदूषित हवा और जुबां पर प्रदूषण की ही चर्चा है. शायद ही कोई ऐसा शहर हो जिसका हाल ठीक है. छोटे जिलों में अभी थोड़ी स्थिति ठीक है.
सांस लेने लायक नहीं है इन शहरों की हवा
उत्तर प्रदेश के लखनऊ, आगरा, वाराणसी में वायु प्रदूषण से हाल बुरा है. आगरा में पीएम 2.5 का स्तर खतरे की सीमा को पार कर चुका है. वहीं गाजियाबाद, नोएडा, कानपुर में भी जहरीली हवा फैली हुई है. केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के आंकड़ों की मानें तो पीएम का स्तर लगातार बढ़ रहा है.
यूपी के शहरों में वायु गुणवत्ता का बुरा हाल है. ऐसे 15 शहर थे, जिनका औसत AQI 400 से ज्यादा था. इन 15 शहरों में से 9 तो केवल उत्तर प्रदेश के ही शहर थे और 5 हरियाणा से. इस अध्ययन में दिल्ली को एक शहर के हिसाब से आंका गया था.
सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में जींद के बाद नंबर था उत्तर प्रदेश के बागपत का, जहां एयर क्वालिटी इंडेक्स 440 रिकॉर्ड किया गया. गाजियाबाद में आंकड़ा 440, हापुड़ में 436, लखनऊ में 435, मुरादाबाद में 434, नोएडा में 430, ग्रेटर नोएडा में 428, कानपुर में 427 दर्ज किया गया. हरियाणा के सिरसा में AQI 426 था.
प्रदूषण ने ली कई जानें
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि प्रदूषण से 90 प्रतिशत से अधिक मौतें हुई है. इसमें ज्यादातर मृत्यु निचले स्तर और मध्यम स्तर के लोगों की हुई है.
इस रिपोर्ट के अनुसार, सरकारें प्रदूषण को कम करने पर कार्य कर रही हैं. अब देखना यह होगा कि सरकारों का यह प्लान कब तक साकार होता है. लोगों को ताजी सांसों के लिए मरना नहीं होगा. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स पर खरा नहीं उतरने वाला हर तीसरा शहर महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से है. वहीं अगर 2011 से 2015 के आंकड़ों पर ध्यान दें तो इन्हीं शहरों में सबसे ज्यादा मौतें प्रदूषण से हुई हैं. इनमें 17 शहर महाराष्ट्र के हैं. केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, सबसे प्रदूषित शहरों में यूपी के 15, पंजाब के 8 और हिमाचल प्रदेश के 7 शहर शामिल हैं. सबसे ज्यादा 50 प्रतिशत प्रदूषित शहर इन चार राज्यों से हैं. रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली एनसीआर के चार शहर इसमें शामिल हैं.
यह रिपोर्ट 300 शहरों की प्रदूषण मॉनिटरिंग रिपोर्ट पर आधारित है, जहां 683 स्टेशन काम कर रहे हैं. यह रिपोर्ट केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पांच साल के अध्ययन के बाद जारी की है.
वायु प्रदूषण का आंशिक प्रभाव
हालांकि कुछ कण प्राकृतिक स्रोतों जैसे कि धूल, समुद्री नमक और वाइल्डफायर से उत्पन्न होते हैं, लेकिन अधिकांश PM2.5 प्रदूषण मनुष्य द्वारा उत्पन्न किये गए हैं. यह सही है कि कोयला जलाने से वायु कुछ समय के लिए प्रदूषित हो जाती है, क्योंकि कोयले में सल्फर होता है.
कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र और औद्योगिक सुविधाएं सल्फर डाइऑक्साइड गैस उत्पन्न करती हैं. एक बार हवा में गैस ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया कर सकती है और फिर वातावरण में अमोनिया को सल्फेट पार्टिकुलेट बना सकती है.
1300 के आसपास, इंग्लैंड के राजा एडवर्ड ने फैसला किया कि जो भी उसके राज्य में कोयला जलाएगा, उसकी सजा मौत होगी. आज जीवाश्म ईंधन दहन मानवजनित PM2.5 का प्रमुख वैश्विक स्रोत है.
दिल्ली में GRAP का नहीं दिखा असर
दिल्ली में ग्रेडेड रिस्पान्स एक्शन प्लान लागू होने के बावजूद भी दिल्ली के हालात जस के तस बने हुए हैं. दिल्ली में प्रदूषण का स्तर काफी हाई है. प्रदूषण के स्तर की निगरानी कर रहे स्टेशनों से मिले आंकड़ों में सामने आया है कि गर्मियों में भी हवा की स्थिति काफी खराब चल रही है.
वायु प्रदूषण स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है
पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) ठोस और तरल कणों को संदर्भित करता है - कालिख, धुआं, धूल और अन्य - जो हवा में मिले होते हैं. जब हवा पीएम के साथ प्रदूषित होती है, तो ये कण ऑक्सीजन के साथ सांस के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं.
जब नाक या मुंह से सांस ली जाती है, तो प्रत्येक पार्टीकुलेट मैटर का भाग उसके आकार पर निर्भर करता है. कणों को जितना बारीक किया जाए, शरीर में वे उतने ही आगे बढ़ते हैं. पीएम 10, 10 माइक्रोमीटर (माइक्रोन) से छोटे व्यास वाले कण होते हैं, जिनकी हवा में एकाग्रता कुल निलंबित पदार्थ (टीएसपी) के उपायों में शामिल है.
वे सांस के जरिए फेफड़ों में जाते हैं, जहां कणों की सतह पर धातु के तत्व फेफड़ों की कोशिकाओं को ऑक्सीकरण करते हैं. उनके डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं और कैंसर का खतरा बढ़ाते हैं. फेफड़ों की कोशिकाओं के साथ कणों की अंतःक्रिया भी सूजन, जलन और अवरुद्ध वायुप्रवाह का कारण बन सकती है, जिससे फेफड़े के रोग बढ़ जाते हैं, जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है, जैसे कि क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसऑर्डर (सीओपीडी), सिस्टिक फेफड़े की बीमारी और ब्रोंकिएक्टेसिस इत्यादि.
पार्टिकुलेट प्रदूषण का प्रभाव समय के साथ कैसे बदला
विकासशील देशों, ज्यादातर एशिया और अफ्रीका में, 1998 और 2016 के बीच प्रदूषण में सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई. कुछ देशों में, इसका मतलब यह था कि अगर डब्ल्यूएचओ गाइडलाइन को पूरा किया गया होता तो जीवन शैली में 2.2 वर्ष अधिक लाभ के साथ बढ़ जाती.
पार्टिकुलेट एयर पॉल्यूशन लाइफ एक्सपेक्टेंसी सबसे ज्यादा
वायु प्रदूषण अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरों की तरह ही दुनिया भर में सभी के लिए खतरनाक है. एशियाई देशों के विकासशील और औद्योगिकीकरण का सबसे अधिक प्रभाव प्रदूषण से होता है.
यदि 2016 में WHO PM2.5 दिशानिर्देशों के अनुपालन करने वाले सभी क्षेत्र स्थायी रूप से दिशानिर्देशन को पूरा करने के लिए अपने प्रदूषण स्तर को कम करेंगे तो विश्व स्तर पर 288 मिलियन लोग सभी उत्तरी भारत में औसतन कम से कम 7 साल अधिक जीवित रहेंगे. ये लोग भारत की वर्तमान जनसंख्या के 23 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं.
गाजीपुर पीजी कॉलेज के पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष प्रमोद कुमार मिश्रा की मानें तो वायु प्रदूषण की समस्या पूरे भारत की समस्या है. जनसंख्या वृद्धि और संसाधनों के अंधाधुंध प्रयोग से वायु प्रदूषण केवल बड़े ही नहीं छोटे शहरों की भी समस्या बनता जा रहा है. वायु प्रदूषण की समस्या काफी विकराल बनती जा रही है. इसकी प्रमुख वजह छोटे शहरों में पराली नहीं है. खासकर पूर्वांचल में अभी स्थिति ऐसी नहीं है, क्योंकि अभी खरीफ की फसल की कटाई नहीं हुई है. इसलिए पराली जलाने जैसी कोई बात नहीं है.
मिश्रा की मानें तो गाजीपुर जैसे छोटे शहरों की समस्या का प्रमुख कारण लो एटमॉस्फेयर में डस्ट का होना है. पीएम10 में डस्ट और पीएम 2.5 का पार्टिकुलेट मैटर है. इनकी मात्रा डस्ट एटमॉस्फेयर में अधिक होने की वजह से उसकी मात्रा और अधिक हो गई है.
इसका प्रमुख कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं या निर्माणाधीन इमारतों से निकलने वाले धूल की सही तरीके से व्यवस्था का नहीं होना है. वहीं निर्माण के लिए स्वच्छता प्रमाण पत्र प्राप्त करना होता है और दिशानिर्देशों को फॉलो करना होता है, लेकिन उन दिशानिर्देशों को भी ठीक से फॉलो नहीं किया जा रहा है, जिसकी वजह से यह समस्या बढ़ जाती है.
बढ़ते प्रदूषण पर बोले सीएमओ
यह जागरूकता विशेष रूप से फैलाई जा रही है कि विशेष रूप से कि धान की पराली नहीं जलाना है, क्योंकि प्रदूषण का यह बहुत बड़ा कारण है. दूसरा प्रदूषण का बहुत बड़ा कारण बिल्डिंग मैटेरियल से निकलने वाली धूल है. एनसीआर क्षेत्रों में भवन निर्माण कार्य में तात्कालिक रूप से रोक भी लगाई गई है. वहीं ऑटोमोबाइल का एग्जास्ट भी इसका प्रमुख कारण है. इन सभी मामलों से जुड़ी चीजें यदि क्षेत्र में दिखती हैं तो हम उसे दंडित भी करते हैं.
शिकागो यूनिवर्सिटी के एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के विश्लेषण में पाया गया है कि पार्टिकुलेट प्रदूषण उत्तरी भारत में एक विनाशकारी टोल को पूरा कर रहा है. एक ऐसा क्षेत्र जिसमें हिंदी बोलने वालों का एक बड़ा समूह है.
इसमें बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. भारत की 40 प्रतिशत आबादी वाले इस भारत-गंगा के मैदान (IGP) क्षेत्र में रहने वाले औसत नागरिक, प्रदूषण के स्तर के कारण लगभग 7 साल उनका जीवन कम हो रहा है.
जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के सुरक्षित दिशानिर्देश से बहुत अधिक है. यह देश के बाकी हिस्सों के विपरीत है, जहां लोग अपने जीवन से 2.6 साल खो रहे हैं. 2016 तक IGP क्षेत्र में प्रदूषण के स्तर में 72 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उन्मूलन के लिए एक अधिनियम बनाया गया था. पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन स्टॉकहोम जून, 1972 में हुआ था, जिसमें भारत ने भाग लिया था उसमें वायु प्रदूषण पर उचित कदम उठाने के लिए जोर दिया गया था. पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधन जो अन्य चीजों में शामिल हैं. उसमें वायु की गुणवत्ता और संरक्षण शामिल हैं. वायु की गुणवत्ता संरक्षण और वायु प्रदूषण का नियंत्रण इसे भारतीय गणतंत्र के तीसवें वर्ष में संसद द्वारा अधिनियमित किया गया है.
सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग बिलकुल न करें. प्रभारी चिकित्सा अधिकारियों को निर्देशित किया जाएगा कि यदि उनके क्षेत्र में ऐसी घटनाएं होती हैं तो तत्काल उस पर कार्रवाई करें. नगर पालिका को खुले में कूड़ा कचरा जलाने को लेकर लिखित हिदायत दी जाएगी. वहीं खस्ताहाल सड़कों को लेकर भी पीडब्ल्यूडी विभाग से बातचीत होगी. ताकि वाहनों के आवागमन से धूल न उड़े.
जीसी मौर्य, सीएमओवायु प्रदूषण का आंशिक रूप से पता चलता है कि दुनिया भर में सिगरेट की तुलना में वायु प्रदूषण कहीं अधिक खतरनाक है.
-माइकल ग्रीनस्टोन ,प्रोफेसर, शिकागो विश्वविद्यालय