गाजीपुर: देश का संविधान 1950 से लागू होने के बाद 1952 से चुनाव होना शुरू हुआ. लोकतंत्र के तहत सभी को मतदान करने का अधिकार दिया गया. लेकिन आजादी से पूर्व किस तरह से चुनाव होते थे, इसके लिए ईटीवी भारत पहुंचा दिलदार नगर स्थित अल दीनदार शम्सी अकादमी एंड रिसर्च सेंटर. यहां हमने कुंवर नसीम रजा खान से बात की.
उन्होंने बताया कि उनके पास 1904 से लेकर 1945 तक अलग-अलग मतदाताओं की सूचियां है, जो हिंदी और उर्दू में भी हैं. उन सूचियों से पता चलता है कि उस वक्त कैसे-कैसे लोग मतदाता हुआ करते थे और किसे मतदान करने का अधिकार मिला हुआ था.
नसीम बताते है कि उनके पास जो रिकॉर्ड मौजूद है वो 1904 से 1945 तक के हैं. ये रिकॉर्ड जमानियां परगना में हुए चुनाव के हैं. उन्होंने बताया कि 1857 के बाद लोकल सेल्फ गवर्नमेंट पॉलिसी अंग्रेजों ने पारित किया था, जो 1884 में पूरी तरह से लागू हो गया. 1909 में इलेक्शन एक्ट पारित हुआ उसके बाद इलेक्शन शुरू हुआ. उस वक्त के मतदाता सूची में 50 लोगों के नाम होते थे जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समाज के लोग मतदाता सूची में शामिल हैं. एक मतदाता सूची, जिसमें 50 में से 19 हिंदू है और बाकी सभी मुसलमान. वही 1945 की जो वोटर लिस्ट है, जो सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली के नाम से है, वो पूरा मुसलमानों के लिए है.
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अगर हम जमानिया विधानसभा की बात करें तो यहां पर 1952 से चुनाव हो रहे हैं. उसके पश्चात 1967 में जमानिया विधानसभा दो भागों में बट गया, जिसमें जमानिया और दिलदार नगर विधानसभा बना. फिर 2012 में दोनों को एक कर दिया गया, जिसमें वर्तमान समय में लाखों मतदाता शामिल है.
ऐसे में अगर हम इतिहास की बात करें यानी कि आज से करीब 120 साल पहले की, तो उस वक्त मात्र 50 लोग ही वोट देने के हकदार थे. वह भी ऐसे लोग थे जो इलाके के मुखिया, जमीदार, बड़े साहूकार, बड़े काश्तकार यानी कि उस वक्त के जो टैक्स के रूप में लगान जमा करते थे, वही लोग चुनावी प्रक्रिया में शामिल होने के हकदार थे. वही लोग वोटर हुआ करते थे और उन्हीं लोगों में से चुनाव लड़ने वाले होते थे. उन्हीं लोगों में से चुनाव जीतकर इलाके के विकास के लिए कार्य करते थे.
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