गाजीपुरः राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आज जयंती है. जयंती के दिन हम आपको बता रहे हैं गांधी जी से जुड़ी एक अनसुनी कहानी. ये कहानी है वर्ष 1929 की. उस साल अपने जन्मदिन पर महात्मा गांधी पत्नी कस्तूरबा गांधी और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ उत्तर प्रदेश के गाजीपुर आए थे. महात्मा गांधी औड़िहार के पास गंगा गोमती के संगम कैथी पर नाव से उतरे थे. उनके साथ पत्नी कस्तूरबा गांधी के अलावा मीरा बहन, आचार्य कृपलानी, महादेव देसाई, देवदास गांधी और श्रीप्रकाश भी थे.
गांधी जी का फूल-माला से हुआ था स्वागतः संगम तट पर महात्मा गांधी की एक झलक पाने के लिए लोग बेचैन थे. वह जैसे ही नाव से उतरे लोगों ने उन्हें घेर लिया और स्थानीय कांग्रेस की शाखा मुहम्मद अली जौहर के नेतृत्व में फूल-मालाओं से जबरदस्त स्वागत किया गया. औड़िहार के निकट बाराहरूप नामक स्थान पर उन्होंने सन्ध्या वंदन किया और घोड़ा बग्घी पर बैठकर सैदपुर के मिडिल स्कूल पहुंचे. वहां आयोजित सभा को सम्बोधित किया.
गाजीपुर की जनसभा में गांधी जी ने क्या कहा थाः गांधी जी न वहां मैदान में उपस्थित हजारों लोगों को संबोधित किया था. कहा था,"सभी जो उपस्थित हैं यह न समझिए कि आजादी यूं ही हमें मिल जाएगी. क़ुर्बानी देनी होगी, संघर्ष करना पड़ेगा, घर से बाहर निकलना होगा. बोलिए, घर से निकल कर क्या आप शांति पूर्वक विरोध प्रदर्शन में भाग लेंगे, हाथ उठाकर बताइए... बहुत मेहनत करनी होगी, हिम्मत मत हारिएगा." गांधी जी का यह कोट उस समय के एक साप्ताहिक अखबार में प्रकाशित हुआ था.
गांधी जी को भेंट की गई थी 500 रुपए की एक थैलीः लोगों को सम्बोधित करने के बाद गांधी जी को 500 रुपये की एक थैली और एक महिला द्वारा बनाए गए खादी पर लिखा मांगपत्र भेंट किया गया. उसके बाद वहां से महात्मा गांधी गाजीपुर के लिए निकल गए थे. उस समय भागवत मिस्र के नेतृत्व में शहर में 1916 में कांग्रेस की शाखा खुल चुकी थी. पांच दिसम्बर 1920 तक स्वामी सहजानन्द सरस्वती भी गाजीपुर में कांग्रेस संस्था के प्रमुख कार्यकर्ता बन चुके थे.
सरोजनी नायडू 1921 में आई थीं गाजीपुरः स्थानीय कांग्रेस कमेटी का कार्य उस समय गजानन्द मारवाड़ी तथा युसुफपुर के काजी निजमूल हक अंसारी सुचारू रूप से चला रहे थे. इंद्रदेव त्रपाठी और विश्वनाथ शर्मा भी जुड़ चुके थे. महात्मा गांधी के आने से पूर्व 16 अक्टूबर 1921 को सरोजिनी नायडू, पंडित जवाहर लाल नेहरू, कानपुर की कार्यकर्ती सत्यवती देवी के साथ गाजीपुर आए और जबरदस्त भाषण दिया था.
गाजीपुर की जनता ने कांग्रेस को दिए थे 15 हजार रुपएः उस समय जनता ने कांग्रेस के कोष के लिए 15,000 रुपये उन्हें भेंट दिए थे. गाजीपुर में बढ़ती हुई राजनीतिक चेतना को देखते हुए, शहर से इस्माईल, केदार, कन्हैया, देव नारायण सिंह, विश्नाथ शर्मा, स्वामी सहजानन्द सरस्वती, गजानन्द, इन्द्रदेव त्रिपाठी, हरिकृष्ण खेतान दफा 144 के भंग करने के लिए गिरफ्तार हो चुके थे. कुछ दिनों के बाद रिहा हो गए थे. गांधी जी के स्वागत लिए पूरा माहौल बन चुका था. गांधी जी इन कांग्रेसियों के आमंत्रण ही पर गाजीपुर आ रहे थे.
जब गांधी जी की गाड़ी हो गई थी खराबः नन्दगंज आते-आते गांधी जी की मोटरकार खराब हो गई थी. बहुत प्रयास किया गया लेकिन वह ठीक नहीं हो सकी. उसके बाद शिकरम (घोड़ा गाड़ी) मंगवाई गई जो एक स्थानीय साहूकार की थी, जिससे वह आगे के लिए रवाना हुए. अभी कुछ ही दूर निकले थे कि एक अन्य कार की व्यवस्था कर ली गई. जिला मुख्यालय आने के बाद उन्होंने गोराबाजार में स्थित आईना कोठी में जाकर विश्राम किया. फिर रात आठ बजे लंका के मैदान में आयोजित जनसभा में पहुंचे.
गाजीपुर की जनता से गांधी जी ने मांगी थी माफीः गांधी जी को सुनने के लिए अपार जनसमूह वहां एकत्रित था. मैदान में उमड़े जनसमूह को सम्बोधित करते हुए कहा कि, "मैं थक गया हूं, समय से आपकी सेवा में नहीं पहुंच पाया, मुझे माफ कीजिएगा. मार्ग में जगह-जगह भाई बहन मोटर घेर लेते थे और उनसे बातें करनी पड़ती थीं. इसी कारण हमें देर हुई." आगे उन्होंने कहा था," जो बाल विवाह को बंद करने के लिए कार्यक्रम चलाया जा रहा है, उसमें आप लोग साथ दें. आप सभी चरखा खूब मन से चलाएं और खादी बनाएं. उससे बड़े लाभ हैं. कांग्रेस के सदस्य बनिए और बनवाए, उनकी शक्ति को बढ़ाएं."
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