गाजीपुर: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशा होगा... जी हां जनपद गाजीपुर की बात करें तो यह वीर सपूत और शहीदों की जननी वाला जनपद है. इस जनपद में परमवीर चक्र विजेता से लेकर महावीर चक्र विजेता व अन्य वीर सपूतों ने अपनी शहादत देकर इस मातृभूमि का मान बढ़ाया है. इसमें एक नाम कारगिल शहीद इश्तियाक खान का है. इनका परिवार और उनका पैतृक मकान आज बेबसी और लाचारी पर आंसू बहा रहा है. जी हां शहीद इश्तियाक खान की शहादत के बाद मिलने वाली आर्थिक सहायता और गैस एजेंसी मिलने के बाद भी इस परिवार को एक फूटी कौड़ी नहीं मिली.
भांवरकोल थाना अंतर्गत फखनपुरा गांव के रहने वाले शहीद इश्तियाक खान अपने चार भाइयों में तीसरे नंबर के थे. वे 1996 में भारतीय सेना के 22 ग्रेनेडियर में भर्ती हुए थे. उनकी शादी 10 अप्रैल 1999 में शाहबाज कुली गांव की रहने वाली रशीदा खान से हुई थी. शहादत से पहले इश्तियाक खान अपनी शादी के लिए अवकाश पर घर आए थे. उसी दौरान कारगिल का युद्ध शुरू हो गया. शादी के बाद बिना समय गवाएं इश्तियाक खान अपने देश सेवा के लिए कूच कर गए. इश्तियाक खान ने अपने बचपन के दोस्त मोहम्मद आजम को एक मार्मिक पत्र लिखा कि मौत से जिस दिन हम सब डरने लगे तो फिर भारत माता की रक्षा कैसे होगी. यह पत्र उनके दोस्त मोहम्मद आजम को इश्तियाक खान की शहादत के बाद डाक के द्वारा प्राप्त हुआ था.
सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि इश्तियाक के बड़े भाई लांस नायक इम्तियाज भी सैन्य कार्रवाई में उनके साथ थे. 30 जून 1999 को बटालिक सेक्टर में सेना की 22वीं ग्रेनेडियर की चार्ली कंपनी के जवानों को टास्क फोर्स में रहकर हमला करने का आदेश मिला. इस कंपनी में कुल 40 सैनिक थे, जिसमें से इश्तियाक और उनके बड़े भाई इम्तियाज के अलावा दो और जवान बख्तावर खान और शहाबुद्दीन खान भी पखनपुरा गांव के ही रहने वाले थे. जंग के दौरान की इश्तियाक खान के साथ लड़ाई लड़ने वाले उनके गांव के ही रहने वाले बख्तावर खान ने आज उनकी वीरता की कहानी भी बताई. साथ ही उनकी पत्नी की बेवफाई और परिवार की बेबसी की कहानी भी बताई कि कैसे उनकी शहादत के बाद उनकी पत्नी परिवार वालों से मुंह मोड़कर आर्थिक सहायता और गैस एजेंसी पाकर किसी अन्य से शादी कर इस परिवार से रुखसत हो गई.
इश्तियाक खान की शहादत (3 जुलाई 1999) की जानकारी उनके परिवार और गांव के लोगों को हुई तो पूरे गांव का सीना चौड़ा हो गया था. उनकी शहादत के बाद तत्कालीन पीडब्ल्यूडी मंत्री कलराज मिश्र और महेंद्र नाथ पांडे उनके गांव भी पहुंचे थे. सरकार द्वारा मिलने वाली आर्थिक सहायता का चेक परिजनों को सौंपा था और तमाम वादे किए थे. कुछ दिन बाद ही उनकी पत्नी रशीदा जिसके नाम गैस एजेंसी थी इस्तियाक के माता-पिता और छोटे भाई को छोड़कर मायके चली गई. उसने आर्थिक सहायता राशि में से एक फूटी कौड़ी परिजनों को नहीं दी. इससे परिवार की आर्थिक हालत धीरे-धीरे कमजोर होने लगी. आर्थिक विपत्ति को इश्तियाक का छोटा भाई भी सहन नहीं कर पाया और उसकी भी मौत हो गई.
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मौजूदा समय में इस परिवार में सिर्फ इश्तियाक खान के छोटे भाई की पत्नी टूटे-फूटे घर में किसी भी तरह जीवन बसर कर रही है. वह भी गांव वालों के रहमो करम पर. आज मीडिया की टीम शहीद इश्तियाक खान के घर पहुंची तो उनके भाई की पत्नी अपने किसी रिश्तेदारी के यहां गई हुई थी. बड़े भाई के बेटे ने बताया कि आज भी जब वह अपने गांव से बाहर निकलता है तो लोग उनके अब्बा के नाम से नहीं बल्कि उनके चाचा के नाम से पहचानते हैं. इस गांव के ग्राम प्रधान और पूर्व ग्राम प्रधान का कहना है कि शहीद इस्तियाक खान का नाम अमर करने के लिए सरकार को लखनऊ से हैदरिया तक बनने वाला पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का टर्मिनल जो उनके गांव के पास बन रहा है उसका नाम इश्तियाक खान के नाम पर कर दिया जाए.