गाजीपुर: कोरोना महामारी के बीच किसानों ने केले की खेती को लाभ का सौदा बना लिया है. गाजीपुर के किसानों को केले की खेती काफी पंसद आ रही है. यही नहीं, बाजार में भी केले की बढ़ती मांग को देखकर किसान बड़े पैमाने पर केले की खेती करना शुरू कर रहे हैं. अब वे केले की खेती के जरिए अपनी तकदीर संवारने में जुटे हैं.
जिले के प्रगतिशील किसान अपनी मिर्च, लौकी और मटर की खेप एपीडा के माध्यम से लंदन और सऊदी अरब जैसे देशों में निर्यात कर रहे हैं. जिले के किसान केले के निर्यात के लिए विशेष किस्म के टिशू कल्चर से लिए गए केले की खेती कर रहे हैं. भावरपुर ब्लॉक में रहने वाले किसान दिवाकर राय ने ईटीवी से खास बातचीत में केले की खेती के बारे में बताया.
'रेवतीपुर में हो रही केले की खेती से हुए प्रभावित'
किसान दिवाकर राय ने बताया कि बीज उपलब्ध कराने के लिए कई कंपनियां हैं, जो टिशु कल्चर बेचती हैं. हम ग्रैंड नेने (जी-9) वैरायटी के केले की खेती कर रहे हैं यह दुनिया में काफी प्रसिद्ध है. यह बीज हमने मध्य प्रदेश के रीवा फ्लोरा टिशु कल्चर से लिया लिया है. अन्य कंपनियां भी हैं जो टिशु कल्चर बीसी हैं. उन्होंने बताया कि रेवतीपुर ब्लॉक में पहले से इसकी खेती होती थी. उनसे ही प्रभावित होकर हमने भी केले की खेती की शुरुआत की है.
'घाटे में नहीं रहती केले की खेती'
केले की खेती से मुनाफे के सवाल पर उन्होंने कहा कि किसी भी खेती में मुनाफा बाजार पर निर्भर करता है. बाजार अच्छा रहा और पैदावार भी तो मुनाफा अच्छा होगा. अगर बाजार कमजोर और पैदावार भी कमजोर हुई तो घाटे में भी जा सकते हैं. लेकिन सामान्य आकलन के मुताबिक केले की खेती घाटे में नहीं जाती है. जबतक कोई प्राकृतिक आपदा न आए जो फसल बर्बाद कर दे, इसके अलावा केले की खेती में घाटे की संभावना नहीं होती है. आम तौर पर केले का रेट 10 रुपये किलो मानते हैं. तब एक लाख से सवा लाख तक का मुनाफा हो सकता है. यदि पैदावार और अच्छी हुई तो डेढ़ से दो लाख तक का मुनाफा हो सकता है. पैदावार कम और फल की गुणवत्ता गिरने पर लाभ का अनुपात घट भी सकता है.
'20 रुपये में एक पौधा'
इस खेती में लगने वाली लागत को लेकर जब सवाल किया गया तो दिवाकर ने बताया कि टिशु कल्चर द्वारा एक पौधे का मूल्य लगभग 20 रुपये निर्धारित है. एक बीघे में लगभग 800 पौधे लगते हैं. खुद के खेत होने पर इस खेती में फल निकलने तक एक पौधे पर 80 से 90 रुपये का अधिकतम खर्च माना जाता है. यदि किसान ऑर्गेनिक खाद, गोमूत्र या गोबर की खाद का इस्तेमाल करते हैं तो लागत और कम हो सकती है. उन्होंने बताया कि जमीन किराए पर लेने पर एक पौधे पर कुल लागत लगभग 100 रुपये आ जाती है.
'ज्यादा समय तक भंडारण की क्षमता'
किसान दिवाकर राय ने बताया कि केले की नई किस्म की खासियत बताया कि इसकी मिठास और होल्डिंग कैपेसिटी काफी ज्यादा है. इस केले को लंबे समय तक भंडारण करके रखा जा सकता है. यह जल्दी खराब नहीं होता है. ज्यादा समय तक भंडारण की क्षमता ही इसे अन्य केलों से अलग बनाती है. यह केला यूरोप के देशों और बड़े-बड़े एक्सपोर्टर्स को भी निर्यात किया जाता है. किसान दिवाकर राय ने बताया कि वाराणसी में भी कुछ ऐसे एक्सपोर्टर्स है जो एपीडा के माध्यम से केलों को विदेश भेजते हैं. इस वैरायटी के ही ज्यादातर केले निर्यात किए जाते हैं. उन्होंने बताया कि हम कोशिश कर रहे हैं कि सबसे बेस्ट केले की नस्ल की खेती करें. ताकि विदेश में भेजने के लिए क्वॉलिटी मेंटेन भी हो सके.