फिरोजाबादः पटाखा कारोबारियों ने पहले लॉकडाउन की मार झेली और अब प्रदूषण की झेल रहे हैं. बिक्री तो हो रही है, लेकिन पहले जैसी नहीं है. कुछ ऐसी ही कहानी उन कारीगरों की भी है जो अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों के लिए खुशियों का सामान तैयार करते हैं. दिवाली पर इन पटाखों की बिक्री बम्पर तरीके से नहीं हो रही है. सामान तो बना चुके हैं, लेकिन बिक्री न होने की वजह से पटाखों को औने-पौने दामों में बेच रहे हैं.
धातरी गांव में होता है पटाखे का काम
फिरोजाबाद जिले में वैसे तो कई गांवों में पटाखे बनाने का काम होता है. कुछ जगह लाइसेंस धारक काम करते हैं तो कुछ स्थानों पर अवैध रूप से यह काम होता है, लेकिन सबसे ज्यादा यह काम सिरसागंज इलाके के धातरी गांव में होता है. यहां करीब 10 आतिशबाज पटाखे बनाने का काम करते हैं. यह लोग अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों के लिए खुशियों का सामान जुटाने का काम करते हैं. वैसे तो इनका काम पुश्तेनी है, लेकिन बीते एक साल से इस काम के तारे गर्दिश में हैं. ज्यादातर काम तो चाइना के पटाखों के आने से खत्म सा ही हो गया है.
प्रदूषण ने फेरा उम्मीदों पर पानी
बीते एक साल में इस काम को करने वाले आतिशबाज बदहाली का दंश झेल रहे हैं. मार्च से लेकर अब तक इनका काम पटरी पर नहीं आ सका है. यह लोग शादी-विवाह समारोह आदि के मौके पर चलाने वाली आतिशबाजी भी बनाते हैं, लेकिन इस बार लॉकडाउन में जो शादियां हुईं उनमें आतिशबाजी का प्रयोग ही नहीं हुआ. अब जब दिवाली का समय आया तो इन लोगों को उम्मीद बंधी थी कि इनके अच्छे दिन आएंगे, लेकिन इस बार प्रदूषण की समस्या ने इनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.
रोशनी वाले पटाखों की मांग
धातरी गांव के निवासी आतिशबाज रिहान का कहना है कि काम-धंधा हलका ही चल रहा है. हम लोग कम आवाज के पटाखे और रोशनी ज्यादा बनाते हैं, लेकिन इस बार प्रदूषण की समस्या के चलते बिक्री काफी कम हो रही है. ग्राहक सुकेन्द्र यादव का कहना है कि वह पटाखे तो खरीदेंगे, लेकिन उन्हीं पटाखों को खरीदेंगे, जिनमें आवाज कम हो. रोशनी वाले आइटम ज्यादा खरीद रहे हैं.