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फतेहपुर: सरकारी अनुदान से सुधरेगी केला किसानों को स्थिति, बढ़ेगी पैदावार - banana farmers

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में केले की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. यहां से केले को अन्य जिलों और प्रदेशों तक में निर्यात किया जाता है. ऐसे में किसानों को केले के बेहतर पैदावार के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

केले की खेती
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Published : Nov 12, 2020, 9:57 AM IST

फतेहपुर: जिले में केला की खेती करने वाले किसानों को इस वर्ष कोरोना की वजह से मायूसी हाथ लगी. जनपद में बड़े पैमाने पर किसानों द्वारा केले की खेती की जाती है. इनके द्वारा तैयार केले का आस-पास के कई जनपदों सहित प्रदेशों में निर्यात होता है. ऐसे में केला किसानों को बढ़ावा देने के लिए अनुदान योजना चलाई जा रही है. इसमें किसानों को टिशू कल्चर के पौधे लगाने पर अनुदान दिया जाता है. यह योजना पिछले वर्ष से लागू है, लेकिन जागरुकता के आभाव में ज्यादा किसान इसका लाभ नहीं ले सके. इस वर्ष इसमें पहले से अधिक तेजी लाने की योजना है.

सरकार की ओर से दिया जाएगा अनुदान.

टिशू का पौधा महंगा होने के कारण किसानों द्वारा केले की सामान्य गांठ का उपयोग किया जाता है. इसमें मेहनत और लागत बराबर होती है, लेकिन नुकसान के विकल्प कुड़ होते हैं. इसलिए किसानों को नुकसान से उबारने और अच्छी पैदावार के लिए टिशू पौधों पर सरकार अनुदान दे रही है. बता दें कि किसानों को केले की सामान्य गांठ 4 रुपये प्रति पौधे पड़ती है, जिसका जमाव 70-85 प्रतिशत तक होता है. टिशू का पौधा 17 रुपये प्रति पौधे के हिसाब से पड़ता है, जिसका जमाव 90% से अधिक होता है. किसान टिशू पौधों का उपयोग कर सकें, इसके लिए सरकार ने 17 रुपये के पौधे में 14 रुपये का अनुदान देती है.

बड़े पैमाने पर होती है केले की खेती

जिले में बड़ी मात्रा में केले की खेती की जाती है. आंकड़ों की बात करें तो करीब 8000 एकड़ में केले की फसल की जाती है. यानी करीब 48 हजार बीघे में केले की बुआई होती है. 18 महीनों की इस फसल में एक बीघे में करीब 30 हजार की लागत आती है और 80 हजार से 1.5 लाख तक की बिक्री होती है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले में किसानों को केले की फसल से करोड़ों रुपये की आमदनी होती है.

यहां होता है निर्यात

बिक्री की बात करें तो जनपद से केले को कानपुर, प्रयागराज, कौशाम्बी, प्रतापगढ़, उन्नाव, रायबरेली सहित दिल्ली और एमपी तक निर्यात किया जाता है. यहां से व्यापारी स्वयं खरीद के लिए आते हैं और केले को खरीदकर ले जाते हैं. यानी आस-पास के जनपदों के अलावा अन्य प्रदेशों तक केले का निर्यात होता है.

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केले की पैदावार बढ़ाने के लिए मिलेगा अनुदान.

जिला उद्यान अधिकारी रामसिंह यादव ने बताया कि जनपद में करीब 800 हेक्टयर में केले की खेती की जाती है. इसमें ज्यादातर किसान टिसू पौधों की जगह गांठ लगाते हैं. हमारे लिए चैलेंज है कि हम गांठ के स्थान पर लोगों को टिसू लगवाएं. टिसू में नुकसान कम होता है जबकि गांठ वाले पौधों में नुकसान होता है. पिछले वर्ष करीब 130 हेक्टेयर में टिसू लगाए गए थे, जिसमें एक पौधा 17 रुपये का पड़ता है और उसमें 14 रुपये का अनुदान विभाग द्वारा दिया जाता है.

उन्होंने बताया कि हम लोग जागरूकता अभियान चला रहे हैं, जिससे किसान जागरूक हों और अधिक लाभ ले सकें. जिले में केले का मार्केट भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है. यहां निजी कारोबारी लगातार बढ़ रहे हैं. हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले कुछ समय के अंदर ही यहां बाहर से केला आना बंद हो जाएगा.

फतेहपुर: जिले में केला की खेती करने वाले किसानों को इस वर्ष कोरोना की वजह से मायूसी हाथ लगी. जनपद में बड़े पैमाने पर किसानों द्वारा केले की खेती की जाती है. इनके द्वारा तैयार केले का आस-पास के कई जनपदों सहित प्रदेशों में निर्यात होता है. ऐसे में केला किसानों को बढ़ावा देने के लिए अनुदान योजना चलाई जा रही है. इसमें किसानों को टिशू कल्चर के पौधे लगाने पर अनुदान दिया जाता है. यह योजना पिछले वर्ष से लागू है, लेकिन जागरुकता के आभाव में ज्यादा किसान इसका लाभ नहीं ले सके. इस वर्ष इसमें पहले से अधिक तेजी लाने की योजना है.

सरकार की ओर से दिया जाएगा अनुदान.

टिशू का पौधा महंगा होने के कारण किसानों द्वारा केले की सामान्य गांठ का उपयोग किया जाता है. इसमें मेहनत और लागत बराबर होती है, लेकिन नुकसान के विकल्प कुड़ होते हैं. इसलिए किसानों को नुकसान से उबारने और अच्छी पैदावार के लिए टिशू पौधों पर सरकार अनुदान दे रही है. बता दें कि किसानों को केले की सामान्य गांठ 4 रुपये प्रति पौधे पड़ती है, जिसका जमाव 70-85 प्रतिशत तक होता है. टिशू का पौधा 17 रुपये प्रति पौधे के हिसाब से पड़ता है, जिसका जमाव 90% से अधिक होता है. किसान टिशू पौधों का उपयोग कर सकें, इसके लिए सरकार ने 17 रुपये के पौधे में 14 रुपये का अनुदान देती है.

बड़े पैमाने पर होती है केले की खेती

जिले में बड़ी मात्रा में केले की खेती की जाती है. आंकड़ों की बात करें तो करीब 8000 एकड़ में केले की फसल की जाती है. यानी करीब 48 हजार बीघे में केले की बुआई होती है. 18 महीनों की इस फसल में एक बीघे में करीब 30 हजार की लागत आती है और 80 हजार से 1.5 लाख तक की बिक्री होती है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले में किसानों को केले की फसल से करोड़ों रुपये की आमदनी होती है.

यहां होता है निर्यात

बिक्री की बात करें तो जनपद से केले को कानपुर, प्रयागराज, कौशाम्बी, प्रतापगढ़, उन्नाव, रायबरेली सहित दिल्ली और एमपी तक निर्यात किया जाता है. यहां से व्यापारी स्वयं खरीद के लिए आते हैं और केले को खरीदकर ले जाते हैं. यानी आस-पास के जनपदों के अलावा अन्य प्रदेशों तक केले का निर्यात होता है.

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केले की पैदावार बढ़ाने के लिए मिलेगा अनुदान.

जिला उद्यान अधिकारी रामसिंह यादव ने बताया कि जनपद में करीब 800 हेक्टयर में केले की खेती की जाती है. इसमें ज्यादातर किसान टिसू पौधों की जगह गांठ लगाते हैं. हमारे लिए चैलेंज है कि हम गांठ के स्थान पर लोगों को टिसू लगवाएं. टिसू में नुकसान कम होता है जबकि गांठ वाले पौधों में नुकसान होता है. पिछले वर्ष करीब 130 हेक्टेयर में टिसू लगाए गए थे, जिसमें एक पौधा 17 रुपये का पड़ता है और उसमें 14 रुपये का अनुदान विभाग द्वारा दिया जाता है.

उन्होंने बताया कि हम लोग जागरूकता अभियान चला रहे हैं, जिससे किसान जागरूक हों और अधिक लाभ ले सकें. जिले में केले का मार्केट भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है. यहां निजी कारोबारी लगातार बढ़ रहे हैं. हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले कुछ समय के अंदर ही यहां बाहर से केला आना बंद हो जाएगा.

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