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काश बंद न होती फतेहपुर में औद्योगिक इकाइयां तो न कहलाते प्रवासी - फतेहपुर में उद्योग

फतेहपुर में लोगों को रोजगार देने के लिए सालों पहले औद्योगिक इकाइयां शुरू की थी, लेकिन कुछ सालों बाद ये बंद हो गई. यदि ये इकाइयां आज चल रही होती तो लोगों को पलायन न करना पड़ता और लॉकडाउन के दौरान 30 हजार प्रवासियों के सामने विकट स्थिति न पैदा होती. केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा कि पीएम मोदी ने स्वदेशी का नारा दिया है, उसके तहत बंद पड़ी फैक्ट्रियां जरूर शुरू होंगी.

fatehpur
बंद पड़ी औद्योगिक इकाइयां.
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Published : Jun 19, 2020, 3:53 PM IST

फतेहपुर: हुनरमंद युवाओं, बेरोजगारों और मजदूरों को दो वक्त की रोटी मिल सके, इसलिए 1980 के दशक में जिले के मलवां-सौरा क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र बनाया गया और कई औद्योगिक इकाईयां स्थापित की गई. समय के साथ यूनिट्स की संख्या बढ़ती गई और बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलने लगा, लेकिन कुछ ही वक्त के बाद एक-एक कर कुछ इकाईयां बंद होने लगीं और कामगार बेरोजगार होने लगे. नतीजा यह रहा कि स्थानीय लोगों को रोजी-रोटी के लिए बड़े महानगरों और अन्य प्रदेशों का रुख करना पड़ा.

फतेहपुर में बंद पड़ी औद्योगक इकाइयां, देखें वीडियो.

कोविड-19 महामारी के दौरान जब लॉकडाउन हो गया तो दूसरे प्रदेशों में काम करने गए लोगों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा. बड़ी संख्या में लोग पैदल ही घरों को लौटने लगे. इसी क्रम में फतेहपुर जनपद में भी करीब तीस हजार से ज्यादा लोग लौटे. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बंद पड़ी औद्योगिक इकाइयां चल रही होती तो क्या इतनी बड़ी संख्या में लोगों को जिले से पलायन करना पड़ता ?

हरिकृष्ण शास्त्री नें किया था औद्योगिक क्षेत्र स्थापित
कांग्रेस शासन काल में 1980 में फतेहपुर से चुने गए सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे हरिकृष्ण शास्त्री ने जिले में औद्योगिक क्षेत्र स्थापित किया. बंद फैक्ट्रियों को शुरू कराने की पहल न किया जाना, अपने आप में यह दर्शाता है कि कहीं न कहीं राजनीतिक उपेक्षा ने इन मजदूरों को मजबूर बनाया, जिसके चलते इन्हें पलायन करना पड़ा.

केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री ने दोहराया स्वदेशी का नारा
बंद पड़ी दर्जनों औद्योगिक इकाइयों को शुरू करने को लेकर केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा कि पीएम मोदी ने स्वदेशी का नारा दिया है, उसके तहत बंद पड़ी फैक्ट्रियां जरूर शुरू होंगी. लोगों का कहना है कि अगर ये फैक्ट्रियां खुल जायें तो कम से कम 10 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा और प्रवासी मजदूरों को दूसरे प्रदेशों में नहीं जाना पड़ेगा. प्रदेश की योगी सरकार भी लोगों को उनके शहर में ही रोजगार देने की योजनाओं पर काम कर रही है. स्किल मैपिंग कर लोगों को काम देने की तैयारी है.

प्रवासी मजदूरों ने जाहिर की तकलीफ
जिले में लौटे एक प्रवासी मजदूर बीरन कुमार ने बताया कि वह अहमबदाबाद में नौकरी करता था, लेकिन लॉकडाउन की वजह से काम बंद हो गया और वह बेरोजगार हो गया. बीरन घर से महज दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित सौरा-मलवां औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार की तलाश में गया था, लेकिन काफी फैक्ट्रियां बंद होने के कारण उन्हें रोजगार नहीं मिल सका. एक अन्य प्रवासी मजदूर रवि विश्वकर्मा ने बताया कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जिले की सौरा-मलवां स्थित फैक्ट्री क्षेत्र में रोजगार तलाशने गए, लेकिन उन्होंने देखा कि काफी फैक्ट्रीज बंद पड़ी हैं, जिसकी वजह से यहां कामगारों की मांग कम है. इसलिए उन्हें मजबूरन पलायन करना पड़ा. यदि ये फैक्ट्रियां चल रही होती तो उन्हें नौकरी के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता

फतेहपुर: हुनरमंद युवाओं, बेरोजगारों और मजदूरों को दो वक्त की रोटी मिल सके, इसलिए 1980 के दशक में जिले के मलवां-सौरा क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र बनाया गया और कई औद्योगिक इकाईयां स्थापित की गई. समय के साथ यूनिट्स की संख्या बढ़ती गई और बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलने लगा, लेकिन कुछ ही वक्त के बाद एक-एक कर कुछ इकाईयां बंद होने लगीं और कामगार बेरोजगार होने लगे. नतीजा यह रहा कि स्थानीय लोगों को रोजी-रोटी के लिए बड़े महानगरों और अन्य प्रदेशों का रुख करना पड़ा.

फतेहपुर में बंद पड़ी औद्योगक इकाइयां, देखें वीडियो.

कोविड-19 महामारी के दौरान जब लॉकडाउन हो गया तो दूसरे प्रदेशों में काम करने गए लोगों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा. बड़ी संख्या में लोग पैदल ही घरों को लौटने लगे. इसी क्रम में फतेहपुर जनपद में भी करीब तीस हजार से ज्यादा लोग लौटे. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बंद पड़ी औद्योगिक इकाइयां चल रही होती तो क्या इतनी बड़ी संख्या में लोगों को जिले से पलायन करना पड़ता ?

हरिकृष्ण शास्त्री नें किया था औद्योगिक क्षेत्र स्थापित
कांग्रेस शासन काल में 1980 में फतेहपुर से चुने गए सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे हरिकृष्ण शास्त्री ने जिले में औद्योगिक क्षेत्र स्थापित किया. बंद फैक्ट्रियों को शुरू कराने की पहल न किया जाना, अपने आप में यह दर्शाता है कि कहीं न कहीं राजनीतिक उपेक्षा ने इन मजदूरों को मजबूर बनाया, जिसके चलते इन्हें पलायन करना पड़ा.

केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री ने दोहराया स्वदेशी का नारा
बंद पड़ी दर्जनों औद्योगिक इकाइयों को शुरू करने को लेकर केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा कि पीएम मोदी ने स्वदेशी का नारा दिया है, उसके तहत बंद पड़ी फैक्ट्रियां जरूर शुरू होंगी. लोगों का कहना है कि अगर ये फैक्ट्रियां खुल जायें तो कम से कम 10 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा और प्रवासी मजदूरों को दूसरे प्रदेशों में नहीं जाना पड़ेगा. प्रदेश की योगी सरकार भी लोगों को उनके शहर में ही रोजगार देने की योजनाओं पर काम कर रही है. स्किल मैपिंग कर लोगों को काम देने की तैयारी है.

प्रवासी मजदूरों ने जाहिर की तकलीफ
जिले में लौटे एक प्रवासी मजदूर बीरन कुमार ने बताया कि वह अहमबदाबाद में नौकरी करता था, लेकिन लॉकडाउन की वजह से काम बंद हो गया और वह बेरोजगार हो गया. बीरन घर से महज दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित सौरा-मलवां औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार की तलाश में गया था, लेकिन काफी फैक्ट्रियां बंद होने के कारण उन्हें रोजगार नहीं मिल सका. एक अन्य प्रवासी मजदूर रवि विश्वकर्मा ने बताया कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जिले की सौरा-मलवां स्थित फैक्ट्री क्षेत्र में रोजगार तलाशने गए, लेकिन उन्होंने देखा कि काफी फैक्ट्रीज बंद पड़ी हैं, जिसकी वजह से यहां कामगारों की मांग कम है. इसलिए उन्हें मजबूरन पलायन करना पड़ा. यदि ये फैक्ट्रियां चल रही होती तो उन्हें नौकरी के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता

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