फतेहपुरः अपने गृह जनपद पहुंचे प्रख्यात साहित्यकार असगर वजाहत ने अपने नाटक महाबली के बारे में लोगों को बताया. उन्होंने कहा कि यह नाटक उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है, जो तुलसीदास और उनके महाकाव्य रामचरितमानस में रुचि रखते हैं. महाबली नाटक सत्ता और कला के बीच के संबंधों पर आधारित है. इसमें मुगल सम्राट अकबर और तुलसीदास के संवाद हैं. सपने में की गई यह बातचीत सत्ता और कला के संबंधों को दिखाती है. इस बातचीत में तुलसीदास सम्राट अकबर को महाबली कह कर पुकारते हैं. वहीं, अकबर तुलसी को गोस्वामी कह कर पुकारते हैं और उनसे सीकरी न आने की वजह जानना चाहते हैं.
उन्होंने अपने नाटक के बारे में बतात हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि तुलसीदास के समकालीन मुगल सम्राट अकबर को तुलसीदास के बारे में पूरी जानकारी थी. ऐसी स्थति में सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सम्राट अकबर ने महाकवि तुलसीदास को अपने दरबार में बुलाने की कोशिश की होगी. हालांकि इतिहास में इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता. लेकिन, इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. बस इसी इनकार की जाने वाली संभावना को आधार बनाकर पूरा नाटक बुना है. महाबली पूरा करने में करीब पांच साल लगे. इसका एक अंश का पाठ साहित्य अकादमी में किया गया. इसके अलावा इसका पाठ फतेहपुर स्थिति स्वामी विज्ञानानंद के ओम घाट आश्रम, भृगु तपोवन, भिटौरा में भी किया गया था. भिटौरा एक ऐतिहासिक और पौराणिक स्थान है.
वहीं रामचरितमानस को लेकर असगर वजाहत ने कहा कि उत्तर भारत के समाज में रामचरितमानस को लेकर एक विशेष महत्व है. उत्तर भारत के लोग संसार में जहां-जहां गए हैं, अपने साथ रामचरितमानस ले गए हैं. इस कारण इस रामकथा का अंतरराष्ट्रीय महत्व है. तुलसीदास के समय में रामकथा केवल संस्कृत भाषा में थी. तुलसीदास ने रामकथा को लोकप्रिय बनाने के लिए उसे जनभाषा अवधी में लिखने का बीड़ा उठाया. उस समय संस्कृत जानने वाले लोगों ने तुलसीदास के इस प्रयास का विरोध किया. क्योंकि, उन्हें लगा कि रामकथा जनभाषा में आ जाएगी तो महत्व कम हो जाएगा. तुलसीदास ने अपने समय के बहुत सशक्त सत्तापक्ष के विरोध का सामना करते हुए जनभाषा में रामकथा लिखी. उन्होंने एक विचार का लोकतंत्रीकरण किया. भीषण विरोध के बाद भी इतने बड़े आदर्शों और मानवीय मूल्यों को जनसाधारण तक ले जाना उस समय कोई सरल काम नहीं था.
बता दें कि 5 जुलाई, 1946 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में जन्में असगर वजाहत बहुआयामी व्यक्तित्व हैं. उनकी माता अकबरी बेगम और पिता वजाहत हुसैन थे. असगर वजाहत ने बीएससी के बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हिन्दी में एमए और इसके बाद पीएचडी की. असगर वजाहत ने लंबे अरसे तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में अध्यापन किया.
हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में असगर वजाहत एक महत्त्वपूर्ण कहानीकार हैं. इन्होंने नाटक, यात्रा-वृत्तांत, कहानी, उपन्यास, फिल्म और चित्रकला जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण रचनात्मक काम किया है. असगर वजाहत को साहित्य क्षेत्र में उनके योगदान के लिए कई सम्मान दिए गए. साल 2009-10 में उन्हें हिन्दी अकादमी द्वारा 'श्रेष्ठ नाटककार' सम्मान दिया गया. इसके बाद 2012 में 'आचार्य निरंजननाथ सम्मान', साल 2014 में संगीत नाटक अकादमी सम्मान तो 2016 में हिन्दी अकादमी का सर्वोच्च शलाका सम्मान दिया गया. इसी क्रम में उन्हें केके बिड़ला फाउंडेशन ने वर्ष 2019 में प्रकाशित उनके नाटक 'महाबली' के लिए 'व्यास सम्मान' देने की घोषणा की. यह नाटक सम्राट अकबर और कवि तुलसीदास को केंद्र में रखकर रचा गया है.
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