फतेहपुर: जिले में केले की खेती करने वाले किसानों को इस वर्ष मायूसी हाथ लग रही है. बाहरी व्यापारी न आने की वजह से इस वर्ष निर्यात में ब्रेक लग गया है. इससे किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा और उनको घटा हो रहा हैं. इस वर्ष फायदा तो छोड़िए लागत निकालना भी किसानों के लिए मुश्किल हो रहा है. 1200 या इससे अधिक पर बिकने वाले केले इस बार कोरोना काल में 600-700 रुपये प्रति क्विंटल में बिका. हालांकि, अनलॉक आरंभ होने के बाद बाजार खुल गए, लेकिन तेजी नहीं पकड़ सके.
केले की खेती करने वाले किसान हुए परेशान बड़े पैमाने पर होती है केले की खेती जिले में बड़ी मात्रा में केले की खेती होती है. जिले में किसान करीब आठ हजार एकड़ में केले की फसल करते हैं. यानी करीब 48 हजार बीघे में केले की पैदावार होती है. 18 महीनों की इस फसल में एक बीघे में करीब 30 हजार की लागत आती है और 80 हजार से 1.5 लाख तक कि बिक्री होती है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले में किसानों को केले की फसल से करोड़ों रुपये की आमदनी होती है.
नहीं आए बाहर के व्यापारी
बिक्री की बात करें तो कानपुर, प्रयागराज, कौशाम्बी, प्रतापगढ़, उन्नाव, रायबरेली सहित दिल्ली और एमपी तक के व्यापारी यहां केले खरीदने आते हैं. यानी आसपास के जनपदों के अलावा अन्य प्रदेशों तक जिले से केले का निर्यात होता है. इस वर्ष कोरोना की वजह से बाहरी व्यापारी नहीं आ पाए और केले की खपत जिले में ही करनी पड़ी. इससे किसानों को औने-पौने दामों में फसल बेचनी पड़ी. अनलॉक के बाद कुछ व्यापारी आए भी, लेकिन पहले जैसी तेजी नहीं मिली. इससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ा.
उठाना पड़ा नुकसान
पिछले करीब 15 वर्षों से केले की खेती कर रहे किसान शेर सिंह ने बताया कि अन्य फसलों की अपेक्षा केले की फसल में उन्हें अधिक लाभ होता था. इस वर्ष केले का निर्यात नहीं होने की वजह से उन्हें नुकसान उठाना पड़ा. प्रतिवर्ष कानपुर, प्रयागराज, रायबरेली, कौशाम्बी सहित दिल्ली तक के व्यापारी आते थे. इस वर्ष कोरोना की वजह से व्यापारी नहीं आए. इससे उन्हें अपनी फसल औने-पौने दामों में बेचनी पड़ रही है. उन्होंने बताया कि एक एकड़ में करीब अस्सी हजार रुपये की लागत आती है और दो से ढाई लाख तक बिक्री हो जाती है. इस वर्ष निर्यात नहीं होने की वजह से लागत निकलना मुश्किल हो रहा है. फसल समय से बिक नहीं पा रही है तो आंधी तूफान आ जाने पर भी नुकसान हो रहा है.करीब 20 वर्षों से केले की खेती करने वाले किसान धर्मेंद्र ने बताया कि कोरोना की वजह से माल बाहर नहीं जा पा रहा है. इससे खेत पर ही पक कर फल गिर जा रहे हैं. वैसे तो अच्छी फसल होने पर अच्छी रकम मिल जाती थी, लेकिन इस वर्ष कोरोना की वजह से काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है.
रात-रात भर जागकर करते हैं निगरानी
15 वर्ष से अधिक समय से केले की खेती करने वाले किसान ने बताया कि वह पूरी तरह कृषि पर निर्भर हैं. इसी से परिवार का पोषण और बच्चों की पढ़ाई लिखाई चलती है. केले की खेती से उन्हें अच्छा लाभ होता था, लेकिन इस बार बाहरी व्यापारी आए नहीं तो बहुत सस्ते दामों में फसल बेचनी पड़ी. अन्य जानवरों से भी नुकसान का खतरा रहता है. रात-रात भर जागकर उनकी निगरानी करनी पड़ती है. इस बार बहुत नुकसान हुआ है. लागत निकालना मुश्किल हो रहा है.
उद्यान अधिकारी ने बताया
जिला उद्यान अधिकारी राम सिंह यादव ने बताया कि जनपद में करीब आठ हजार हेक्टयर में केले की खेती की जाती है. इसमें ज्यादातर किसान टिसू पौधों की जगह गांठ लगाते हैं. उनका कहना है कि उनके लिए चैलेंज है कि वे गांठ के स्थान पर लोगों को टिसू लगवाएं. टिसू में नुकसान कम होता है जबकि गांठ वाले पौधों में नुकसान होता है. पिछले बार करीब 130 हेक्टेयर में टिसू लगाए गए थे. इसमें एक पौधा 17 रुपये का पड़ता है और उसमें 14 रुपये का अनुदान विभाग देता है.
किसानों को कर रहे जागरूक
उन्होंने कहा कि वे लोग जागरूकता अभियान चला रहे हैं, जिससे किसान जागरूक हों और अधिक लाभ ले सकें. जिले में मार्केट भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है. यहां निजी कारोबारी लगातार बढ़ रहे हैं. वे उम्मीद करते हैं कि आने वाले कुछ समय के अंदर ही यहां बाहर से केला आना बंद हो जाएगा.