फतेहपुर : सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों की हालत भले ही न सुधरी हो, लेकिन कुछ अध्यापक ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपने प्रयासों से प्राथमिक विद्यालयों की तस्वीर बदल कर रख दी है. ऐसे ही विद्यालयों में शामिल है फतेहपुर जिले का अस्ती प्राथमिक विद्यालय. इस विद्यालय में तैनात एक मात्र अध्यापिका ने अपनी मेहनत के बल पर सरकारी स्कूल की सूरत ही बदल कर रख दी है. इस विद्यालय में बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दी जा रही है. यहां पढ़ने वाले बच्चों की माताओं को आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है. इतना ही नहीं, विद्यालय में पढ़ने वाली बच्चियों को आत्मसुरक्षा के लिए तैयार रहने का गुण भी सिखाया जा रहा है.
चार साल में बदली तस्वीर
शहर के अस्ती गांव में स्थित इस प्राथमिक विद्यालय की सूरत भी आज से 4 साल पहले आम प्राथमिक विद्यालयों जैसी थी, लेकिन 4 साल पहले इस विद्यालय में अध्यापिका आसिया फारूकी की तैनाती के बाद इस विद्यालय की तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है. विद्यालय की साफ-सफाई जहां अंग्रेजी माध्यम के कान्वेंट विद्यालयों को टक्कर दे रही है, वहीं यहां बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा भी कान्वेंट स्कूलों से कमतर नहीं है.
8 से 275 हुई बच्चों की संख्या
चार साल पहले जर्जर हो चुके इस विद्यालय में अध्यापिका आसिया फारूकी की नियुक्ति हुई, तब इस विद्यालय में केवल 8 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. आशिया फारूकी के प्रयासों के बल पर अब इस विद्यालय में 275 बच्चों का दाखिला हो चुका है. इस इलाके के रहने वाले लोग जो पहले सरकारी प्राथमिक विद्यालय में बच्चे का एडमिशन करवाने के बजाय उसका दाखिला कान्वेंट स्कूलों में करवाया करते थे, वह लोग भी अब अपने बच्चों को कान्वेंट स्कूल में भेजने के बजाय इस प्राथमिक विद्यालय में ही एडमिशन दिला रहे हैं.
महिलाओं को बना रहीं आत्मनिर्भर
विद्यालय की प्रधानाध्यापिका आसिया फारूकी ने कोरोना काल के दौरान जब लोगों के हाथों से रोजगार जाने लगा तो उन्होंने बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई करवाने के साथ ही उनकी माताओं को भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनोखा प्रयास शुरू किया. विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों की माताओं को विद्यालय में बुलाकर उन्हें सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण दिया गया, जिसका परिणाम यह है कि सिलाई-कड़ाई के काम में निपुण हुई महिलाएं अपने हाथों से तमाम घरेलू उपयोग में आने वाले सामान बनाकर उन सामानों को बाजार में बेचकर अपने परिवार का खर्च चला रही है. कोरोना काल से शुरू हुआ यह सफर आज भी लगातार जारी है.
नामचीन विद्यालयों को दे रहा टक्कर
वैश्विक महामारी कोरोना के चलते कक्षा 1 से लेकर 5 तक के स्कूल जब अभी बंद चल रहे हैं, तब उस समय आशिया फारूकी विद्यालय में पढ़ने वाली बच्चियों को विद्यालय में बुलाकर वहां जूड़ो-कराटे का कैम्प लगवाकर बच्चियों को आत्मसुरक्षा के गुण सिखवाने में लगी हुई हैं. विद्यालय की प्रधानाध्यपिका आशिया फारूकी के अथक प्रयासों के चलते कभी गिनती में न रहने वाला यह स्कूल प्राथमिक शिक्षा के मामले में शहर के नामचीन विद्यालयों को टक्कर देने के साथ ही जिले के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों का रोल मॉडल बन गया है.
कई पुरस्कारों से किया गया है सम्मानित
विद्यालय की प्रधानाध्यापिका आसिया फारूकी की मेहनत और लगन को देखते हुए उन्हें अब तक कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है, जिसमें जनपद स्तर पर शिक्षकों को दिए जाने वाले पुरस्कारों के अलावा राज्य स्तरीय उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान 2018 और 2019 में राज्यपाल पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. इसके अलावा प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा हाल ही में प्रकाशित की गई पुस्तक 'उम्मीद के रंग' में छपा पहला लेख भी आसिया फारूकी ने लिखा है.
सहायक मिलने का इंतजार
सबसे बड़ी बात यह है कि आसिया फारूकी जिस विद्यालय में तैनात हैं, वह एकल विद्यालय है और पिछले 4 सालों से इस विद्यालय में आशिया फारूकी के अलावा किसी अन्य अध्यापक या अध्यापिका की तैनाती नहीं हुई है. आसिया फारूकी कहती हैं कि अगर उन्हें कोई सहायक मिल जाय तो वह अपने काम को और भी बेहतर तरीके से अंजाम दे सकती हैं.