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मेला रामनगरिया से मिला लोगों को रोजगार - पांचाल घाट पर कल्पवास

यूपी के फर्रुखाबाद जिले के पांचाल घाट स्थित गंगा तट पर लगने वाले मेले की तैयारियों चल रही हैं. क्षेत्रवासी भी मेले में रोजगार करने के लिए तैयारी कर चुके हैं. तट पर कल्पवास करने वाले लोगों के लिए फूस की झोपड़ी बनाकर बेची जा रही है.

राजेश औदीच्य, झोपड़ी विक्रेता.
राजेश औदीच्य, झोपड़ी विक्रेता.
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Published : Jan 17, 2021, 1:04 PM IST

फर्रुखाबादः जिले के पांचाल घाट स्थित गंगा तट पर इलाहाबाद की तरह लगने वाला मेला रामनगरिया हजारों लोगों को रोजगार दे रहा है. 28 जनवरी से शुरू होने वाले में मेले में बेचने के लिए स्थानीय लोग अपने उत्पाद तैयार करने में जुटे हुए हैं. मेले के दौरान कल्पवास करने आने वाले श्रद्धालुओं के लिए स्थानीय निवासी राजेश औदीच्य फूस की झोपड़ी तैयार कर रहे हैं.

राजेश औदीच्य, झोपड़ी विक्रेता.

कपड़े की राउटी आने से कम बिक रही झोपड़ियां
राजेश बताते हैं कि वर्षों पहले जब कल्पवासी झोपड़ी में रहकर कल्पवास करते थे, उस समय 200 से 300 झोपड़ी बिक जाती थी. लेकिन अब कल्पवासी कपड़े की राउटी लेकर आते हैं, जिसकी वजह से 50 से 60 ही झोपड़ी बिक पाती है. राजेश ने बताया कि एक छोटी झोपड़ी में लगभग 600 और बड़ी झोपड़ी की लागत 900 रुपये की आती है.

फूस के दाम बढ़ने से झोपड़ी की कीमत बढ़ी
राजेश ने बताया कि पिछले वर्ष मेले में जो झोपड़ी 700 रुपये की बेची थी, वह इस बार 800 रुपये में बिक रही है. बड़ी झोपड़ी 1000 की बजाय 1200 रुपये में बेच रहे हैं. उन्होंने बताया कि इस वर्ष गंगा की कटरी में पैदा होने वाले फूस की कीमत बढ़ जाने के कारण झोपड़ियो की कीमत बढानी पड़ी है. राजेश ने बताया कि फूस का एक गठ्ठर 30 से 35 रुपये में मिल रहा है. सेठों का गठ्ठर 150 रुपये मिल रहा है, जो पिछले वर्ष 100 रुपये में मिल रहा था.

कल्पवासियों के जाने बाद दोबारा बेच देते हैं झोपड़ी
राजेश ने बताया कि मेला रामनगरिया में कल्पवास करने के दौरान उनकी बनाई झोपड़ी में रहते हैं. मेला खत्म होने के बाद कल्पवासी झोपड़ी यहीं पर छोड़कर चले जाते हैं. इसके बाद इन झोपड़ियों को दुकानदार, फेरी लगाने वाले या मांगने खाने वाले भी खरीदते हैं. राजेश ने बताया कि इस प्रकार से झोपड़ी बनाने से अच्छी आमदनी होती है.

फर्रुखाबादः जिले के पांचाल घाट स्थित गंगा तट पर इलाहाबाद की तरह लगने वाला मेला रामनगरिया हजारों लोगों को रोजगार दे रहा है. 28 जनवरी से शुरू होने वाले में मेले में बेचने के लिए स्थानीय लोग अपने उत्पाद तैयार करने में जुटे हुए हैं. मेले के दौरान कल्पवास करने आने वाले श्रद्धालुओं के लिए स्थानीय निवासी राजेश औदीच्य फूस की झोपड़ी तैयार कर रहे हैं.

राजेश औदीच्य, झोपड़ी विक्रेता.

कपड़े की राउटी आने से कम बिक रही झोपड़ियां
राजेश बताते हैं कि वर्षों पहले जब कल्पवासी झोपड़ी में रहकर कल्पवास करते थे, उस समय 200 से 300 झोपड़ी बिक जाती थी. लेकिन अब कल्पवासी कपड़े की राउटी लेकर आते हैं, जिसकी वजह से 50 से 60 ही झोपड़ी बिक पाती है. राजेश ने बताया कि एक छोटी झोपड़ी में लगभग 600 और बड़ी झोपड़ी की लागत 900 रुपये की आती है.

फूस के दाम बढ़ने से झोपड़ी की कीमत बढ़ी
राजेश ने बताया कि पिछले वर्ष मेले में जो झोपड़ी 700 रुपये की बेची थी, वह इस बार 800 रुपये में बिक रही है. बड़ी झोपड़ी 1000 की बजाय 1200 रुपये में बेच रहे हैं. उन्होंने बताया कि इस वर्ष गंगा की कटरी में पैदा होने वाले फूस की कीमत बढ़ जाने के कारण झोपड़ियो की कीमत बढानी पड़ी है. राजेश ने बताया कि फूस का एक गठ्ठर 30 से 35 रुपये में मिल रहा है. सेठों का गठ्ठर 150 रुपये मिल रहा है, जो पिछले वर्ष 100 रुपये में मिल रहा था.

कल्पवासियों के जाने बाद दोबारा बेच देते हैं झोपड़ी
राजेश ने बताया कि मेला रामनगरिया में कल्पवास करने के दौरान उनकी बनाई झोपड़ी में रहते हैं. मेला खत्म होने के बाद कल्पवासी झोपड़ी यहीं पर छोड़कर चले जाते हैं. इसके बाद इन झोपड़ियों को दुकानदार, फेरी लगाने वाले या मांगने खाने वाले भी खरीदते हैं. राजेश ने बताया कि इस प्रकार से झोपड़ी बनाने से अच्छी आमदनी होती है.

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