फर्रुखाबाद: 'भारत को समृद्ध बनाना है तो गांवों का विकास जरूरी है'. ये बात महात्मा गांधी ने कही थी. ग्रामीण भारत के चौमुखी विकास के उद्देश्य के लिए पंचायती राज व्यवस्था की गई. उदेश्य था पंचायतों को अधिक अधिकार देकर उन्हें सशक्त बनाना. इसलिए पंचायतों का गठन कर प्रत्येक पांच वर्ष में गांव का मुखिया चुनने की प्रक्रिया शुरू हुई.
उम्मीद थी कि ग्राम पंचायतें स्थानीय जरूरतों के अनुसार योजनाएं बनाएंगी और उन्हें लागू करेंगी. हालांकि जनप्रतिनिधियों ने उतने साकारात्मक नतीजे नहीं दिए. जनप्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारियों के प्रति उदासीन रहे. यही बड़ा कारण है कि आज भी ग्रामीण भारत मूलभूत सुविधाओं से वंचित है.
गावों की खस्ता हालत सड़कें, पेयजल की समस्या, स्थानीय स्कूलों की बदहाल स्थिति और स्वास्थ्य सुविधाओं का टोटा होना पंचायतों के समुचित विकास की दुर्दशा को बयां करता है. आइये जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के धारमपुर और अमेठी जदीद गांव का हाल. आखिरी के पांच साल में ग्राम प्रधान, जिला पंचायत सदस्य और बीडीसी के कराए गए विकास कार्यों को ग्रामीण कैसे आंकते हैं.
ग्राम प्रधान पर अनियमितता, मनमानी और भ्रष्टाचार का आरोप
धारमपुर और अमेठी जदीद गांव बढ़पुर ब्लाक में स्थित हैं. यहां ग्रामीणों ने जिला पंचायत सदस्य और ग्राम प्रधान पर अनियमितता, मनमानी और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है. आरोप है कि प्रधान, जिला पंचायत ने ग्राम पंचायत अधिकारियों और कर्मचारी सांठगांठ कर गांव के विकास के लिए आवंटित धनराशि का बंदरबांट कर डाला.
उज्ज्वला योजना का नहीं मिला लाभ
गांव में सरकारी योजनाओं से जुड़े कैंपों का आयोजन नहीं कराया गया. पौधरोपण को लेकर जनप्रतिनिधि लापरवाह रहे. वहीं टूटे पड़े नाली, खड़ंजा की मरम्मत नहीं हुई. इससे नालियों का पानी सड़क पर फैलता है, जिससे ग्रामीणों को निकलने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, लेकिन प्रधान, जिला पंचायत सदस्य और उच्चाधिकारी उनकी सुध नहीं लेते. गांव में हर सिर को छत देने का दावा भी खोखला ही नजर आया. ग्रामीण रानी और मालती देवी बताती हैं कि उन्हें पीएम आवास का लाभ नहीं मिला. हालांकि वृद्धा पेंशन मिल रही है, जबकि उज्ज्वला योजना का पात्र होने के बाद भी लाभ से वंचित रखा गया है.
सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन को बढ़ावा देने के लिए गांव में सफाई कर्मी नियुक्त किए, लेकिन प्रधान और ग्राम पंचायत से जुड़े अधिकारियों की घपलेबाजी ने गांव को स्वर्ग बनाने की जगह नर्क में तब्दील कर दिया. यहां सफाईकर्मी बिन काम किए ही पूरा वेतन उठा रहे हैं.
पंचायत चुनाव में कूदीं राजनीतिक पार्टियां
सरकार ने गांव और किसानों को समृद्ध बनाने के लिए कई योजनाएं चलाईं. हर सिर को छत. बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा जैसी मूलभूत सुविधाएं देने की बात कही गई, लेकिन गांव की जर्जर सड़कें, नालियों के बाहर उफनाता काला पानी और मूलभूत सुविधाओं से वंचित गांव आज भी विकास की राह 'तक' रहा है. अब एक बार फिर से पंचायत चुनाव सिर पर हैं तो वादों की झड़ी लगना स्वाभाविक है.
उम्मीद है कि हर बार की तरह इस बार लोगों को ठगा महसूस न करना पड़े. हालांकि इस बार बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने पंचायत चुनाव में दखल देकर खेल को दिलचस्प बना दिया है. जाहिर है चुनाव दिलचस्प है तो दावे भी बड़े-बड़े और लुभावने ही होंगे. इस बार देखना है कि वादे-वादे रहेंगे या गांव, किसान और गरीब की भी सूरत बदलेगी.