फर्रुखाबाद: रोशनी का त्योहार दीपावली को लेकर देशभर में तैयारियां जोरों पर हैं. घरों में साफ-सफाई का काम शुरू है तो वहीं बाजार भी सज चुके हैं, लेकिन बढ़ती महंगाई ने लोगों का बजट बिगाड़ कर रख दिया है. दीपावली में पूजा-पाठ के साथ पूरे घर को मिट्टी के दीयों और मोमबत्तियों से सजाया जाता है लेकिन तेल के बढ़े दाम ने लोगों के लिए परेशानी खड़ी कर दी है.
दीपावली के दिन धन की देवी मां लक्ष्मी व प्रथम पूज्य गणेश की पूजा की जाती है और पूरे घर को दीयों से रोशन किया जाता है. यह परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है जो आज भी बदस्तूर जारी है. दीपावली आते ही मिट्टी के दीयों की बिक्री बढ़ जाती है. लोग अपने घरों में सरसों के तेल का दीपक जलाकर रोशन करते हैं, लेकिन तेल की बढ़ी हुई कीमतों नें दीयों का आकार छोटा कर दिया है.
फर्रुखाबाद शहर के सुनहरी मस्जिद गढ़ी जदीद निवासी कुम्हार अखिलेश प्रजापति ने बताया कि इस बार तेल की बढ़ी हुई कीमतों ने दीयों के आकार को छोटा कर दिया है. लोग छोटे दीयों की मांग कर रहे हैं. लिहाजा उन्होंने बड़ी संख्या में छोटे दीये बनाए हैं. कुम्हारों का कहना है कि महंगाई अधिक होने की मार त्योहार पर पड़ी है.
सुनील कुमार प्रजापति ने बताया कि वर्ष 1982 से वह मिट्टी के बर्तन बनाने का व्यापार कर रहे हैं. इतनी महंगाई आज तक नहीं हुई. प्रति व्यक्ति 200 से 300 दीये खरीदता था, लेकिन अब दो दर्जन ही अधिकतर लोग खरीद कर त्योहार की औपचारिकता निभा रहे हैं. वहीं सरकार भी उनके कारोबार को बढ़ाने के कागजी वादे कर रही है. उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक चाक के लिए आवेदन किया था, लेकिन आज तक नहीं मिला. यदि इलेक्ट्रॉनिक चाक होता वह यह कारोबार जल्दी करते.
कैसे बनते हैं दीये
खेत में बने मटखान से मिट्टी लाकर कुम्हार परिवार अपने घर के पास रखते है. उसमें पानी डालकर 24 घंटे छोड़ देते हैं. उसके बाद पैर से मिट्टी को पूरा मिलाया जाता है. मिट्टी को लोंदा में बांटकर एक स्थान पर रखते हैं. फिर उसे गीले कपड़े से ढक देते हैं. करीब 12 घंटे होने के बाद मिट्टी के एक लोंदा को चाक के बीच में रखकर हाथ के सहारे दीये बनाए जाते हैं.
चाक से बने दीये को धूम में सूखने के बाद आवा में पकाया जाता है. दीये 20 रुपये के 25, कुलिया 5 रुपये की एक, बड़ा दीया 5 रुपये का एक, गोलक, चक्की आदि की बिक्री चल रही है, लेकिन मिट्टी के खिलौने गोलक, चक्की आदि कम पसंद की जा रही है.
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