फर्रुखाबाद : धर्मनगरी में एक माह तक चले रामनगरिया मेले में रह रहे कल्पवासी माघ पूर्णिमा पर गंगा स्नान के साथ ही विदा होने लगे हैं. साथ ही अखाड़ों में रह रहे साधु संत भी अपना डेरा उठाने लगे हैं. त्याग और तपस्या का यह अनुष्ठान 21 जनवरी को शुरू हुआ था.
मेला रामनगरिया का समापन होने के बाद गुरुवार को यहां का नजारा कुछ अलग ही था. जब तंबू हटाए जा रहे थे, तो कुछ कल्पवासियों की आंखें नम थी. पुराणों और धर्म शास्त्रों में कल्पवास को आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए जरूरी बताया गया है. हर वर्ष श्रद्धालु एक महीने तक पंचाल घाट गंगा तट पर अल्पाहार, स्नान, ध्यान व दान करके कल्पवास करते हैं. श्रद्धालु अपने शिविर के बाहर तुलसी और शालिकराम की स्थापना कर पूजा करते हैं. श्रद्धालु गंगा मां से अगले वर्ष फिर कल्पवास पर आने की मन्नत मांगते हुए, नम आंखों से विदाई लेते हुए अपने घर को लौटते हैं. घर लौटने पर कल्पवासियों का परिजन स्वागत करते हैं.
गंगा तट के किनारे रेती पर एक माह के लिए तंबुओं का शहर बस जाता है. पौष पूर्णिमा के साथ ही गंगा स्नान के बाद श्रद्धालु कल्पवास का विधि-विधान से संकल्प लेते हैं. कल्पवास करने वाले श्रद्धालु महीने भर रोज तीन बार गंगा स्नान और मात्र एक बार भोजन करते हैं.