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फर्रुखाबाद : रामनगरिया मेले के समापन के दौरान कल्पवासियों की आंखें नम दिखी - फर्रुखाबाद न्युज

मेला रामनगरिया का समापन होने के बाद गुरुवार को यहां का नजारा कुछ अलग ही था. जब तंबू हटाए जा रहे थे, तो कुछ कल्पवासियों की आंखें नम थी.

रामनगरिया मेले का समापन
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Published : Feb 21, 2019, 9:26 PM IST

फर्रुखाबाद : धर्मनगरी में एक माह तक चले रामनगरिया मेले में रह रहे कल्पवासी माघ पूर्णिमा पर गंगा स्नान के साथ ही विदा होने लगे हैं. साथ ही अखाड़ों में रह रहे साधु संत भी अपना डेरा उठाने लगे हैं. त्याग और तपस्या का यह अनुष्ठान 21 जनवरी को शुरू हुआ था.

रामनगरिया मेले का समापन

मेला रामनगरिया का समापन होने के बाद गुरुवार को यहां का नजारा कुछ अलग ही था. जब तंबू हटाए जा रहे थे, तो कुछ कल्पवासियों की आंखें नम थी. पुराणों और धर्म शास्त्रों में कल्पवास को आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए जरूरी बताया गया है. हर वर्ष श्रद्धालु एक महीने तक पंचाल घाट गंगा तट पर अल्पाहार, स्नान, ध्यान व दान करके कल्पवास करते हैं. श्रद्धालु अपने शिविर के बाहर तुलसी और शालिकराम की स्थापना कर पूजा करते हैं. श्रद्धालु गंगा मां से अगले वर्ष फिर कल्पवास पर आने की मन्नत मांगते हुए, नम आंखों से विदाई लेते हुए अपने घर को लौटते हैं. घर लौटने पर कल्पवासियों का परिजन स्वागत करते हैं.

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गंगा तट के किनारे रेती पर एक माह के लिए तंबुओं का शहर बस जाता है. पौष पूर्णिमा के साथ ही गंगा स्नान के बाद श्रद्धालु कल्पवास का विधि-विधान से संकल्प लेते हैं. कल्पवास करने वाले श्रद्धालु महीने भर रोज तीन बार गंगा स्नान और मात्र एक बार भोजन करते हैं.

फर्रुखाबाद : धर्मनगरी में एक माह तक चले रामनगरिया मेले में रह रहे कल्पवासी माघ पूर्णिमा पर गंगा स्नान के साथ ही विदा होने लगे हैं. साथ ही अखाड़ों में रह रहे साधु संत भी अपना डेरा उठाने लगे हैं. त्याग और तपस्या का यह अनुष्ठान 21 जनवरी को शुरू हुआ था.

रामनगरिया मेले का समापन

मेला रामनगरिया का समापन होने के बाद गुरुवार को यहां का नजारा कुछ अलग ही था. जब तंबू हटाए जा रहे थे, तो कुछ कल्पवासियों की आंखें नम थी. पुराणों और धर्म शास्त्रों में कल्पवास को आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए जरूरी बताया गया है. हर वर्ष श्रद्धालु एक महीने तक पंचाल घाट गंगा तट पर अल्पाहार, स्नान, ध्यान व दान करके कल्पवास करते हैं. श्रद्धालु अपने शिविर के बाहर तुलसी और शालिकराम की स्थापना कर पूजा करते हैं. श्रद्धालु गंगा मां से अगले वर्ष फिर कल्पवास पर आने की मन्नत मांगते हुए, नम आंखों से विदाई लेते हुए अपने घर को लौटते हैं. घर लौटने पर कल्पवासियों का परिजन स्वागत करते हैं.

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गंगा तट के किनारे रेती पर एक माह के लिए तंबुओं का शहर बस जाता है. पौष पूर्णिमा के साथ ही गंगा स्नान के बाद श्रद्धालु कल्पवास का विधि-विधान से संकल्प लेते हैं. कल्पवास करने वाले श्रद्धालु महीने भर रोज तीन बार गंगा स्नान और मात्र एक बार भोजन करते हैं.

Intro:एंकर- धर्मनगरी फर्रुखाबाद में 1 माह तक चले रामनगरिया मेले में रह रहे कल्पवासी माघ पूर्णिमा पर गंगा स्नान के साथ ही विदा होने लगे हैं. साथ ही अखाड़ों में रह रहे साधु संत भी अपना डेरा उठाने लगे हैं.त्याग और तपस्या का यह अनुष्ठान 21 जनवरी को शुरू हुआ था.



Body:विओ- मेला रामनगरिया का समापन होने के बाद गुरुवार को यहां का नजारा कुछ अलग ही था, जब तंबू हटाए जा रहे थे, तो कुछ कल्पवासियों की आंखों में आंसू थे. आसपास के जनपदों से आए कल्पवासी शाम तक रवाना होते रहे. मेले में सिर्फ बाजार ही रह गया है, जहां शहर के लोग खरीदारी करने पहुंच रहे हैं. पुराणों और धर्म शास्त्रों में कल्पवास को आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए जरूरी बताया गया है. यह मनुष्य के लिए आध्यात्म की राह का एक पड़ाव है, जिसके जरिए स्वनियंत्रण एवं आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता है. हर वर्ष श्रद्धालु 1 महीने तक पंचाल घाट गंगा तट पर अल्पाहार,स्नान, ध्यान व दान करके कल्पवास करते हैं. श्रद्धालु अपने शिविर के बाहर तुलसी और शालिग्राम की स्थापना कर पूजा करते हैं और अपने घर के बाहर जौ का बीज अवश्य रोपित कर करते हैं. कल्पवास समाप्त होने पर तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं और शेष को अपने साथ ले जाते हैं. श्रद्धालु गंगा मां से अगले वर्ष फिर कल्पवास पर आने की मन्नत मांगते हुए नम आंखों से विदाई लेते हुए अपने घर को लौटने लगे. गंगा की रेती पर एक माह तक कठोर तपस्या के बाद माघी पूर्णिमा का स्नान कर जब कल्पवासी अपने घर लौटते हैं, तो वहां परिजनों द्वारा इनका स्वागत कियाa जाता है.
बाइट- कल्पवासी
बाइट- कल्पवासी


Conclusion:विओ- गंगा तट के किनारे रेती पर एक माह तक तंबूओ का शहर बस जाता है. पौष पूर्णिमा के साथ ही गंगा स्नान के बाद श्रद्धालु कल्पवास का विधि विधान से संकल्प लेते हैं. मेला क्षेत्र में अस्थाई तंबू व झोपड़ी बनाकर उसके अंदर महीने भर जमीन पर घास फूस बिछाकर सोते हैं. कल्पवास करने वाले श्रद्धालु महीने भर रोज तीन बार गंगा स्नान और मात्र एक बार भोजन करते हैं और खास बात यह है कि किसी का दिया हुआ कुछ भी ग्रहण नहीं करते. दान, यज्ञ, पूजा अनुष्ठान और प्रवचन करने व सुनने का व्रत आरंभ हो जाता है.
बाइट- साधु
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