इटावा: जिले में लॉकडाउन के कारण कई प्रवासी मजदूर गांव वापस लौट आए हैं. अब मजदूरों ने रोजी-रोटी के लिए जिले के बाहर न जाने का फैसला किया है. किसी ने मनरेगा के तहत काम करना शुरू कर दिया है तो कोई खेती और दूध के व्यवसाय को अपना रहा है.
ईटीवी भारत ने जब इन श्रमिकों से बात की तो उन्होंने बताया कि वह लॉकडाउन के कारण वहां से वापस आए. वहां से कोई इनमें से बस से तो कोई बाइक से अपने जिले पहुंचा और अब ये वहां दोबारा जाना नहीं चाहते हैं.
लॉकडाउन में खाने और घर पहुंचने के लिए संघर्ष को याद करके प्रवासी श्रमिकों की आंखें नम हो गईं. उन्होंने कहा दोबारा वैसा मंजर नहीं देखना है, इसलिए बाहर नहीं जाएंगे. यहीं जो काम सीख के आए हैं, वही करेंगे.
श्रमिकों का छलका दर्द
आगरा के एक डिग्री कॉलेज में क्लर्क की नौकरी करने वाले कुलदीप कुमार दुबे ने बताया कि वहां पर काम कर रहे थे, लेकिन जैसे ही लॉकडाउन हुआ तो वह 2 दिन बाद वहां से बाइक से अपने परिवार के साथ इटावा वापस आ गए. अब वह यहां पर मनरेगा के तहत 201 रूपये दिहाड़ी पर काम कर रहे हैं.
अहमदाबाद में प्रिंटिंग प्रेस में काम करने वाले अनुराग ने बताया कि वह वहां पर कपड़ों में पेंटिंग का काम करते थे, जैसे ही लॉकडाउन हुआ वह वहीं फंस गए. कंपनी के मालिक ने उनकी कोई मदद नहीं की. वह कई दिन तक भूखे फंसे रहे. लॉकडाउन होने की वजह से पुलिस बाहर भी नहीं निकलने दे रही थी, जिसके बाद वह किसी तरीके से वहां से भाग निकले. कई दिन पैदल चलने के बाद, बस की मदद से इटावा पहुंचे. इतना सब झेलने के बाद अब कुलदीप वापस नहीं जाना चाहते है. उनका कहना है कि जो काम सीख कर आए हैं, वो यहां करेंगे.
ग्रेटर नोएडा में काम करने वाले अनूप कुमार ने बताया कि वह वहां पर बाइकों के प्लास्टिक के पार्ट्स बनाते थे और उनकी डाई बनाने का काम करते थे. वहीं लॉकडाउन होने के बाद वे वहां फंस गए और किसी तरह बाइक से अपने परिवार के साथ वापस आए. उनके परिवार में उनके दो बच्चे और पत्नी है. अब उनके सामने जीवन यापन की समस्या आ रही है. उन्होंने बताया कि वह अब यहां पर खेती करेंगे.