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इटावा: शव दफनाने को लेकर दो पक्षों में विवाद - etawah news

उत्तर प्रदेश के इटावा जनपद के बसरेहर थाना क्षेत्र के ग्राम अकबरपुर में, गांव की एक जमीन में शव दफनाने को लेकर दो पक्षों में विवाद हो गया. सूचना पाकर मौके पर पहुंचे थाना प्रभारी ने लोगों को समझाया और घटना की सूचना उच्च अधिकारियों को दी.

controversy over burial of bodies in etawah
इटावा में शव दफनाने को लेकर दो पक्षों में विवाद.
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Published : May 10, 2020, 12:48 PM IST

Updated : Sep 4, 2020, 12:24 PM IST

इटावा: जनपद के बसरेहर थाना क्षेत्र के गांव अकबरपुर में शनिवार सुबह 9 बजे अंतिम संस्कार करने को लेकर दो पक्षों में विवाद हो गया. सूचना के बाद मौके पर पहुंचे बसरेहर थाना प्रभारी मुकेश बाबू चौहान ने लोगों को समझाया और घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दी.

वहीं मामले में इस्माइल खान ने कहा कि आज हमारे बड़े भाई इस्लाम मंसूरी पुत्र विलायत मंसूरी का इंतकाल हुआ, तो हम लोग यहां पर उनको दफनाने के लिए लेकर पहुंचे. वारिश और फकीर समुदाय के लोगों ने इसका विरोध किया, क्योंकि वह लोग इस जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं. जहां हम लोग अपने पूर्वजों को दफनाते हैं, उसी को लेकर यह सारा षड्यंत्र रचा गया है.

विवाद के बाद मौके पर पहुंचे आलाधिकारी.

मृतक के रिश्तेदार शब्बीर खान ने बताया कि हमारे सारे पूर्वजों को यहीं दफनाया गया है. हम इसे छोड़कर नहीं जाएंगे.

8 महीने पहले शव न दफनाने की दी गई थी हिदायत
मामले की सूचना पाकर लेखपाल की टीम के साथ सदर तहसीलदार मौके पर पहुंचे. इस दौरान उन्होंने बताया कि जहां पर मुस्लिम समुदाय के लोग कब्रिस्तान बता रहे हैं, यह कब्रिस्तान है ही नहीं. यह जमीन पंचायत की उसर भूमि के नाम पर दर्ज है. इसके बारे में मैंने यहां पर 8 महीने पहले लोगों को हिदायत भी दे दी थी. नोटिस बोर्ड भी चस्पा करवाया था फिर भी यह लोग यहां पर आकर लोगों को दफनाने का कार्य कर रहे हैं.

'अंतिम बार दे रहे शव दफनाने की इजाजत'
सदर तहसीलदार सत्यवीर सिंह ने कहा कि आज जो मृतक का पार्थिक शरीर लेकर कब्रिस्तान आए हैं, उसे अंतिम बार दफनाने की इजाजत दी गई है. अब कभी भी इस समुदाय में जब मृत्यु होगी तो उन्हें गांव से कुछ दूरी पर बने कब्रिस्तान में ही जाकर दफनाएं.

'हमारे पूर्वज यहीं दफनाए गए, नहीं छोड़ेंगे जमीन'
घटना की जानकारी देते हुए मृतक के भाई इस्माइल खान ने बताया, 'इस कब्रिस्तान में सदियों से हमारे पूर्वजों को दफनाया जा रहा है. आज तक किसी ने कोई भी विवाद खड़ा नहीं किया. हम लोग मंसूरी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और जो दूसरा कब्रिस्तान बना हुआ है, उसमें वारिश और फकीर समुदाय के लोग अपने पूर्वजों को दफनाते हैं. हम लोग यहां 200 वर्षों से अधिक समय से काबिज हैं और हमारे पूर्वज यहीं पर ही दफनाए गए हैं. हम यह जमीन नहीं छोड़ेंगे.'

इटावा: दिल्ली में नहीं दिखी जीने की आस, तो रिक्शे से पकड़ी बिहार की राह

'जांच करने पर पता चला, पंचायत की है जमीन'
वही तहसीलदार ने भी जानकारी देते हुए कहा कि जिस जगह पर मंसूरी समाज के लोग अपने पूर्वजों को दफना रहे थे, वह जगह पंचायत की है. जब दूसरे गुट ने जांच करवाई और जांच में पाया गया कि जगह पंचायत की है, जिस पर उसे खाली कराने का आदेश दिया गया. इन्हें पंचायत के द्वारा बनाए गए कब्रिस्तान में अपने पूर्वजों को दफनाने की बात कही गई है.

इटावा: जनपद के बसरेहर थाना क्षेत्र के गांव अकबरपुर में शनिवार सुबह 9 बजे अंतिम संस्कार करने को लेकर दो पक्षों में विवाद हो गया. सूचना के बाद मौके पर पहुंचे बसरेहर थाना प्रभारी मुकेश बाबू चौहान ने लोगों को समझाया और घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दी.

वहीं मामले में इस्माइल खान ने कहा कि आज हमारे बड़े भाई इस्लाम मंसूरी पुत्र विलायत मंसूरी का इंतकाल हुआ, तो हम लोग यहां पर उनको दफनाने के लिए लेकर पहुंचे. वारिश और फकीर समुदाय के लोगों ने इसका विरोध किया, क्योंकि वह लोग इस जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं. जहां हम लोग अपने पूर्वजों को दफनाते हैं, उसी को लेकर यह सारा षड्यंत्र रचा गया है.

विवाद के बाद मौके पर पहुंचे आलाधिकारी.

मृतक के रिश्तेदार शब्बीर खान ने बताया कि हमारे सारे पूर्वजों को यहीं दफनाया गया है. हम इसे छोड़कर नहीं जाएंगे.

8 महीने पहले शव न दफनाने की दी गई थी हिदायत
मामले की सूचना पाकर लेखपाल की टीम के साथ सदर तहसीलदार मौके पर पहुंचे. इस दौरान उन्होंने बताया कि जहां पर मुस्लिम समुदाय के लोग कब्रिस्तान बता रहे हैं, यह कब्रिस्तान है ही नहीं. यह जमीन पंचायत की उसर भूमि के नाम पर दर्ज है. इसके बारे में मैंने यहां पर 8 महीने पहले लोगों को हिदायत भी दे दी थी. नोटिस बोर्ड भी चस्पा करवाया था फिर भी यह लोग यहां पर आकर लोगों को दफनाने का कार्य कर रहे हैं.

'अंतिम बार दे रहे शव दफनाने की इजाजत'
सदर तहसीलदार सत्यवीर सिंह ने कहा कि आज जो मृतक का पार्थिक शरीर लेकर कब्रिस्तान आए हैं, उसे अंतिम बार दफनाने की इजाजत दी गई है. अब कभी भी इस समुदाय में जब मृत्यु होगी तो उन्हें गांव से कुछ दूरी पर बने कब्रिस्तान में ही जाकर दफनाएं.

'हमारे पूर्वज यहीं दफनाए गए, नहीं छोड़ेंगे जमीन'
घटना की जानकारी देते हुए मृतक के भाई इस्माइल खान ने बताया, 'इस कब्रिस्तान में सदियों से हमारे पूर्वजों को दफनाया जा रहा है. आज तक किसी ने कोई भी विवाद खड़ा नहीं किया. हम लोग मंसूरी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और जो दूसरा कब्रिस्तान बना हुआ है, उसमें वारिश और फकीर समुदाय के लोग अपने पूर्वजों को दफनाते हैं. हम लोग यहां 200 वर्षों से अधिक समय से काबिज हैं और हमारे पूर्वज यहीं पर ही दफनाए गए हैं. हम यह जमीन नहीं छोड़ेंगे.'

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'जांच करने पर पता चला, पंचायत की है जमीन'
वही तहसीलदार ने भी जानकारी देते हुए कहा कि जिस जगह पर मंसूरी समाज के लोग अपने पूर्वजों को दफना रहे थे, वह जगह पंचायत की है. जब दूसरे गुट ने जांच करवाई और जांच में पाया गया कि जगह पंचायत की है, जिस पर उसे खाली कराने का आदेश दिया गया. इन्हें पंचायत के द्वारा बनाए गए कब्रिस्तान में अपने पूर्वजों को दफनाने की बात कही गई है.

Last Updated : Sep 4, 2020, 12:24 PM IST
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