एटाः एक समय था जब गांव हो या फिर शहर हर जगह बच्चे लकड़ी से बनी गाड़ी तथा अन्य खिलौने पसंद किया करते थे. वहीं रसोई से लेकर रोजमर्रा की जिंदगी में लकड़ी के बर्तनों तथा उपकरणों का इस्तेमाल होता था. समय बीता और लकड़ी के खिलौनों और बर्तनों की जगह प्लास्टिक के खिलौनों और बर्तनों ने ले ली. मौजूदा दौर में लकड़ी के खिलौने, बर्तन तथा उपकरणों की बिक्री करने वाले दुकानदारों में मायूसी है.
एटा महोत्सव में आए हैं लकड़ी के सामानों का व्यवसाय करने वाले
एटा महोत्सव में दूरदराज से लकड़ी के बर्तन और खिलौने बेचने वाले दुकानदार पहुंचे हैं. उन्होंने लकड़ी के बर्तनों, उपकरणों तथा खिलौनों से अपनी दुकानें सजा रखी हैं, लेकिन सामान की बिक्री न होने से दुकानदार काफी परेशान हैं. इनमें से कुछ दुकानदार ऐसे भी हैं. जो खुद इन सामानों का निर्माण करते हैं और बाजार में बेचते हैं.
लकड़ी की जगह ले ली है प्लास्टिक ने
दुकानदार सूरज सिंह के मुताबिक धीरे-धीरे लकड़ी के बर्तनों और खिलौनों की बिक्री कम होती जा रही है. उनका मानना है कि इस काम के खत्म होने के पीछे दो कारण हैं. पहला अब अच्छी लकड़ी नहीं मिल रही है. वहीं दूसरा प्लास्टिक के सामान सस्ते मिलने के कारण लकड़ी के सामानों को लोग कम खरीदते हैं.
लकड़ी के उपकरण हुए बंद
दुकानदार सूरज की मानें तो मशीनों के आ जाने से भी लकड़ी के उपकरणों की बिक्री पर असर पड़ा है. वह बताते हैं कि पहले धान कूटने के लिए हर घर में धनकुटे की मांग होती थी, लेकिन अब धान की कुटाई घरों में नहीं होती. इसके चलते अब धनकुटा केवल दुकान पर रखा शोपीस बना रहता है.
वाकर का जमाना
एटा महोत्सव में आए दुकानदार मोहम्मद सलीम बताते हैं कि वह लकड़ी का काम सालों से करते आ रहे हैं. चकला, बेलन, धनकुटा बच्चों की गाड़ी आदि सामान बेचते हैं, लेकिन वाकर का जमाना आ जाने से अब बच्चों के लिए लकड़ी से बनी गाड़ी कम ही लोग खरीदते हैं.
नहीं छोड़ा है पुश्तैनी काम
लकड़ी के खिलौनों बर्तनों तथा उपकरणों की मांग भले ही कम हुई हो, लेकिन पुश्तैनी काम होने के चलते इस काम से जुड़े कारीगर और दुकानदार दूसरा काम न कर पाने की बात बताते हैं. साथ ही दुकानों पर ग्राहक पहुंचे इसके लिए रसोई में इस्तेमाल होने वाले लोहे और प्लास्टिक के बर्तन भी रखने शुरू कर दिए हैं.