एटा : जिले में मंगलवार को गर्भवती महिलाओं की जांच की गई. इस दौरान उन्हें इससे संबंधित परामर्श दिए गए. चिकित्सा अधिकारियों ने यह सुविधा निःशुल्क उपलब्ध कराई. यह आयोजन प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान योजना के तहत किया गया. इस अभियान का उद्देश्य शिशु और मातृ मृत्यु दर में कमी लाना है. इस दौरान 1041 गर्भवती महिलाओं की जांच की गई.
नोडल आरसीएच डॉ. बीडी भिरोरिया ने बताया कि प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान जिला महिला अस्पताल के साथ ही ब्लॉक की 11 स्वास्थ्य इकाइयों पर चलाया जा रहा है. इस अभियान के तहत प्रत्येक महीने की 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व जांच कराई जाएगी. उच्च जोखिम वाली गर्भवती महिलाओं का चिह्निकरण कर उनका समुचित तरीके से उपचार कराया जाएगा. साथ ही आयरन की गोलियां निःशुल्क वितरित की जाएंगी.
उच्च जोखिम वाली गर्भवती महिलाओं को किया चिह्नित
डॉ. बीडी भिरोरिया ने बताया कि जिले में इस वर्ष जनवरी 2021 तक कुल 6,420 महिलाओं की प्रसव पूर्व जांच की गई है. इसमें से 856 उच्च जोखिम वाली गर्भवती महिलाओं को चिह्नित किया गया है. मंगलवार को 1041 गर्भवती महिलाओं की जांच की गई. इनमें से उच्च जोखिम वाली 142 गर्भवती महिलाओं को चिह्नित किया गया है. इनमें से 30 गर्भवती महिलाओं को आयरन सुक्रोज भी दिया गया है.
गर्भवती महिलाओं की ये जांच की गईं
गर्भवती महिलाओं की ब्लड ग्रुप, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, वजन, यूरिन, एचआईवी, सिफलिस आदि के साथ ही अल्ट्रासाउंड और अन्य जांच निःशुल्क की गईं. हाई रिस्क वाली गर्भवती महिलाओं को आयरन सुक्रोज इंजेक्शन लगाकर आयरन, फोलिक एसिड और कैल्शियम की गोली देकर उनका नियमित सेवन करने की सलाह दी गई. इस दौरान कोविड-19 के अनुरूप व्यवहारों का भी पालन किया गया.
गर्भवती महिलाओं का ऐसे रखें ध्यान
जिला मातृ स्वास्थ्य परामर्शदाता माहिरा अल्वी ने बताया कि बेहतर पोषण गर्भवती महिलाओं में खून की कमी होने से बचाता है. ऐसे में उन्हें हरी सब्जी, फल, सोयाबीन, चना और गुड़ का सेवन करना चाहिए. इसके अलावा गर्भावस्था के आखिरी दिनों में महिलाओं को दिन में 4 बार खाना चाहिए. उन्होंने बताया कि वर्ष 2019-20 में 9,227 महिलाओं की प्रसव पूर्व जांच की गई थी. इनमें से 1,146 उच्च जोखिम वाली गर्भवती महिलाओं को चिह्नित किया गया था. इनकी समुचित तरीके से जांच कर उपचार कराया गया. बेहतर पोषण होने से प्रसव के दौरान महिलाओं में होने वाली जटिलता में कमी आ जाती है. साथ ही मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में भी काफी कमी आ जाती है.