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मनरेगा भी नही रोक सका धर्म नगरी से मजदूरों का पलायन

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में बेरोजगारी से परेशान मनरेगा के मजूदरों को दूसरे राज्य पलायन करना पड़ रहा है. मजदूरों का कहना है कि मनरेगा हम से जी तोड़ मेहनत तो करा लेती है, लेकिन हमें हमारा मेहनताना नहीं दिया जाता है.

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बरोजगारी से परेशान मजदूर
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Published : Nov 29, 2019, 3:15 PM IST

चित्रकूट: जिला चित्रकूट में बेरोजगारी का आलम यह है कि ग्रामीणों को रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ रहा है. केंद्र सरकार द्वारा संचालित मनरेगा भी मजदूरों के पलायन को रोकने में बौना साबित हुआ है. परिवार के पेट की आग शांत करने के लिए इन ग्रामीणों ने मनरेगा को रोजगार का पूरक समझकर जी तोड़ मेहनत भी की थी. पर मेहनताना न मिलने से व्याकुल इन ग्रामीणों ने अब दूसरे राज्यों में पलायन करने का फैसला किया है.

मजदूरों का कहना है कि हम लोगों से जी तोड़ मेहनत कराई गई और जब पैसे देने की बारी आई तो हम लोग से कहा जाता है कि 10 से 12 दिन में आप लोग के खाते में पैसा आ जाएगा. एक माह से ज्यादा हो गया है और हमारे खाते में अब तक पैसा नहीं आया है. हम लोग भुखमरी की तरफ बढ़ रहे हैं.

बरोजगारी से परेशान मजदूर.

मजदूर रमेश ने बताया कि हम लोगों से जी तोड़ मेहनत ली गई. हम लोगों से यही कहा जाता है कि 10 से 12 दिन में आप लोग के खाते में मनरेगा का पैसा आएगा और हम लोग आस में बैठे रहते हैं. एक माह फिर चार महीना हो जाने के बावजूद हमारे खाते में पैसा नहीं आया. हम मजदूर मेहनत करना जानते हैं और मेहनत भी करते हैं. वहीं हम लोगों के घरों में आटा तक नहीं होता 'रोज कमाओ रोज खाओ' की स्थिति में हम लोगों के सामने 4 महीना रुकना बहुत बड़े पहाड़ सा मालूम पड़ता है. मजबूरन हम लोगों को अपना घर गांव छोड़ कर दूसरे राज्यो में भटकना पड़ता है.

वहीं मिथलेश मजदूर ने बताया कि अगर हमें हमारे गांव में ही रोजगार मिल गया होता तो हमें बाहर जाने की क्या जरूरत थी. बेरोजगारी के कारण भुखमरी बाद नौबत यह आई कि अब हमें बाहर दूसरे राज्य जाना पड़ रहा है. हम सभी लोग सूरत जा रहे हैं. जहां हम लोग साड़ी के छपाई का काम करते हैं हमारे सिर्फ गांव से ही बाहरी राज्यों में 70 से 80 ग्रामीण हैं.

हमें इस समस्या का पता चला वैसे हमारे स्तर से एक ही हफ्ते में मनरेगा का पैसा मजदूरों को देने का प्रावधान है. वैसे भी कोई भी ग्रामीण मजदूरी के नाम पर डिमांड भी नहीं करता. हमारे स्तर से कई काम हैं जो इन मजदूरों द्वारा किए जा सकते हैं. गोशाला में यह ग्रामीण सेवा देकर अपना मजदूरी कर जीवन यापन कर सकते हैं.
-दिनेश कुमार अग्रवाल, विकास खण्ड अधिकारी

चित्रकूट: जिला चित्रकूट में बेरोजगारी का आलम यह है कि ग्रामीणों को रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ रहा है. केंद्र सरकार द्वारा संचालित मनरेगा भी मजदूरों के पलायन को रोकने में बौना साबित हुआ है. परिवार के पेट की आग शांत करने के लिए इन ग्रामीणों ने मनरेगा को रोजगार का पूरक समझकर जी तोड़ मेहनत भी की थी. पर मेहनताना न मिलने से व्याकुल इन ग्रामीणों ने अब दूसरे राज्यों में पलायन करने का फैसला किया है.

मजदूरों का कहना है कि हम लोगों से जी तोड़ मेहनत कराई गई और जब पैसे देने की बारी आई तो हम लोग से कहा जाता है कि 10 से 12 दिन में आप लोग के खाते में पैसा आ जाएगा. एक माह से ज्यादा हो गया है और हमारे खाते में अब तक पैसा नहीं आया है. हम लोग भुखमरी की तरफ बढ़ रहे हैं.

बरोजगारी से परेशान मजदूर.

मजदूर रमेश ने बताया कि हम लोगों से जी तोड़ मेहनत ली गई. हम लोगों से यही कहा जाता है कि 10 से 12 दिन में आप लोग के खाते में मनरेगा का पैसा आएगा और हम लोग आस में बैठे रहते हैं. एक माह फिर चार महीना हो जाने के बावजूद हमारे खाते में पैसा नहीं आया. हम मजदूर मेहनत करना जानते हैं और मेहनत भी करते हैं. वहीं हम लोगों के घरों में आटा तक नहीं होता 'रोज कमाओ रोज खाओ' की स्थिति में हम लोगों के सामने 4 महीना रुकना बहुत बड़े पहाड़ सा मालूम पड़ता है. मजबूरन हम लोगों को अपना घर गांव छोड़ कर दूसरे राज्यो में भटकना पड़ता है.

वहीं मिथलेश मजदूर ने बताया कि अगर हमें हमारे गांव में ही रोजगार मिल गया होता तो हमें बाहर जाने की क्या जरूरत थी. बेरोजगारी के कारण भुखमरी बाद नौबत यह आई कि अब हमें बाहर दूसरे राज्य जाना पड़ रहा है. हम सभी लोग सूरत जा रहे हैं. जहां हम लोग साड़ी के छपाई का काम करते हैं हमारे सिर्फ गांव से ही बाहरी राज्यों में 70 से 80 ग्रामीण हैं.

हमें इस समस्या का पता चला वैसे हमारे स्तर से एक ही हफ्ते में मनरेगा का पैसा मजदूरों को देने का प्रावधान है. वैसे भी कोई भी ग्रामीण मजदूरी के नाम पर डिमांड भी नहीं करता. हमारे स्तर से कई काम हैं जो इन मजदूरों द्वारा किए जा सकते हैं. गोशाला में यह ग्रामीण सेवा देकर अपना मजदूरी कर जीवन यापन कर सकते हैं.
-दिनेश कुमार अग्रवाल, विकास खण्ड अधिकारी

Intro:जिला चित्रकूट में बेरोजगारी का आलम यह है कि ।ग्रामीणों को रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ रहा है ।केंद्र सरकार द्वारा संचालित मनरेगा भी मजदूरों के पलायन को रोकने में बोना साबित हुआ है ।परिवार के पेट की आग शांत करने के लिए इन ग्रामीणों ने मनरेगा को रोजगार का पूरक समझकर जी तोड़ मेहनत भी की थी। पर मेहनताना न मिलने से व्याकुल इन ग्रामीणों ने अब दूसरे राज्यों में पलायन करने का फैसला किया है।


Body:जनपद चित्रकूट के हर एक गांव कि यही समस्या है कि हम लोगों द्वारा मनरेगा में श्रम किया गया पर उस श्रम के बदले विकासखंड के सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। हम लोगो ने धूप और गर्मी में जी तोड़ मेहनत की थी की इन पैसों से हम अपने बच्चों का पेट पाल सकते है ।पर हम लोगों के साथ यह हुआ कि हमें महीनो बीत जाने के बावजूद मेहनताना नहीं मिल पाया। जिसके कारण हम लोग भुखमरी के कगार पर खड़े हो गए हैं ।
खिचड़ी गांव के मजदूर रमेश ने बताया कि हम लोगों से जी तोड़ मेहनत ली गई । हम लोगों से यही कहा जाता है कि 10 से 12 दिन में आप लोग के खाते में मनरेगा का पैसा आएगा और हम लोग आस में बैठे रहते हैं एक माह फिर चार महीना हो जाने के बावजूद हमारे खाते में पैसा नहीं आया ।हम मजदूर मेहनत करना जानते हैं ।और मेहनत भी करते हैं वही हम लोगों के घरों में आटा तक नहीं होता रोज कमाओ रोज खाओ की स्थिति में हम लोगों के सामने 4 महीना रुकना बहुत बड़े पहाड़ सा मालूम पड़ता है।मजबूरन हम लोगो को अपना घर गांव छोड़ कर दूसरे राज्यो में भटकना पड़ता है।
अपना गांव छोड़ पलायन कर रहे मिथिलेश का कहना है कि अगर हमें हमारे गांव में ही रोजगार मिल गया होता तो हमें बाहर जाने की क्या जरूरत थी ।बेरोजगारी के कारण भुखमरी बाद नौबत यह आई कि अब हमें बाहर दूसरे राज्य जाना पड़ रहा है। हम सभी लोग सूरत जा रहे हैं।जहां हम लोग साड़ी के छपाई का काम करते हैं हमारे सिर्फ गांव सेही बाहरी राज्यो में 70 से 80 ग्रामीण है

मानिकपुर सरहट रूलर में रहने वाली माया का कहना है कि पहले तो हमें मनरेगा में काम नहीं मिलता अगर मिलता है तो मनरेगा की मजदूरी का पैसा नहीं मिलता। ऐसी स्थिति में मैं अब मुंबई की ओर जा रही हूं वहां पर किसी बिल्डिंग निर्माण में चूना गारे का काम करके अपने बच्चों का निर्वाहन करूंगी।
15 दिन पूर्व स्थान्तरित हो कर आये विकासखंड के जिम्मेदार अधिकारी का कहना है ।कि आपके द्वारा हमें इस समस्या का पता चला वैसे हमारे स्तर से एक ही हफ्ते में मनरेगा का पैसा मजदूरों को देने का प्रावधान है ।वैसे भी कोई भी ग्रामीण मजदूरी के नाम पर डिमांड भी नहीं करता। हमारे स्तर से कई काम हैं जो इन मजदूरों द्वारा किए जा सकते हैं। गौशाला में यह ग्रामीण सेवा देकर अपना मजदूरी कर जीवन यापन कर सकते हैं।
बाइट-बेलिया (मजदूर महिला)
बाइट-बाबूलाल(मजदूर)
बाइट-रमेश(मजदूर)
बाइट मिथलेश(पलायन करता मजदूर)
बाइट-माया(पलायन करती महिला मजदूर

बाइट-दिनेश कुमार अग्रवाल( विकास खण्ड अधिकारी)


Conclusion:
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