ETV Bharat / state

चित्रकूट: आदिवासियों की परम्परा और संस्कृति की पहचान फाग

author img

By

Published : Mar 3, 2020, 4:31 PM IST

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में होली के नजदीक आते ही आदिवासी अपनी संस्कृति और परंपरा के अनुरूप होली के गीत गाने शुरू कर देते हैं. यह उनके मनोरंजन का मुख्य जरिया होता है. जंगलों में रहने वाले आदिवासी आज भी इस परंपरा का निर्वाह करते आ रहे हैं.

etv bharat
फाग गाते चित्रकूट के आदिवासी.

चित्रकूट: आधुनिक परिवेश में आदिवासियों की जीवन शैली में बदलाव आया है. आज भी इन्होंने अपनी परंपराओं के बीच पारंपरिक गीतों को संजो कर रखा है. इन गीतों को यह कोल आदिवासी किसी त्योहार और मनोरंजन के मौके पर गाकर आनंद लेकर नाचते हैं. इन गीतों को कोल आदिवासियों ने अपने ही नाम की संज्ञा दी है. यह गीत कोल्हाई और राई कहलाने लगे हैं.

धर्म नगरी चित्रकूट में कोल आदिवासी और श्री रामचंद्र जी का बहुत पुराना नाता है. यह वही कोल भील आदिवासी हैं, जो शबरी के वंश में पैदा हुए हैं. वहीं शबरी जिसने अपने झूठे बेर श्री रामचंद्र को वनवास के दौरान खिलाए थे. इन कोल आदिवासियों का जंगल से पुराना नाता रहा है. यह आज भी जंगलों से सटे बीहड़ के गांव में रहते हैं पर आधुनिक परिवेश में इनकी जीवन शैली में काफी बदलाव आया है.

फाग गाते चित्रकूट के आदिवासी.

कभी यह आदिवासी जंगल के कंदमूल पर आश्रित हुआ करते थे, लेकिन अब यह आधुनिक परिवेश की भागती दौड़ती जिंदगी में मेहनत मजदूरी कर अपना गुजारा करते हैं. कई आदिवासी बड़े किसानों के खेतों से लेकर भवन निर्माण में मजदूरी के काम में लगे रहते हैं.

बसंत से शुरू होता है फाग का कार्यक्रम
बसंत ऋतु से शुरू होने वाला फाग का कार्यक्रम पूरे एक महीने तक इन कोल आदिवासियों का मनोरंजन का मुख्य जरिया रहता है. यह कोल आदिवासी आपस में मिलकर किसी देव स्थान पर भंडारे का आयोजन सामूहिक रूप से करते हैं. सभी मिल-जुलकर उसमें पकवान और खानपान की सामग्री बनाते हैं और फिर फाग गाया जाता है.

इस फाग कार्यक्रम में कोल्हाई और राई जैसे गाने गाए जाते हैं, जिसमें तेज ध्वनि के साथ वाद्य यंत्रों की आवाज होती है. वाद्ययंत्रों की करतल आवाज ढोलक की थाप और मंजीरे की आवाज पूरे परिवेश को आवेशित कर देती है और अपने आप ही पैर थिरकने को मजबूर हो जाते हैं.

इसे भी पढ़ें:-आखिर मथुरा में क्यों मनाई जाती है लड्डूमार होली

हम लोगों को अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के आगरा दौरे में स्वागत करने का सौभाग्य मिला. हम सभी काफी उत्साहित थे. पहली बार हमारी कला को ऐसे आयोजन में सम्मान मिला था. हम लोगों ने ट्रंप के स्वागत में कोल्हाई और राई गाई और नृत्य किया.
-रामबहोरी, ग्रामीण

बसंत ऋतु से शुरू होने वाला यह कार्यक्रम पूरे माह चलता है, जिसमें महिला और पुरुष अपने-अपने स्थानों पर रह कर गीतों और नृत्य का आनंद उठाते हैं. इससे लोगों की मानसिक और शारीरिक थकावट दूर होती है, जिससे सभी स्वस्थ्य बने रहते हैं.
-रामप्रसाद, ग्रामीण

चित्रकूट: आधुनिक परिवेश में आदिवासियों की जीवन शैली में बदलाव आया है. आज भी इन्होंने अपनी परंपराओं के बीच पारंपरिक गीतों को संजो कर रखा है. इन गीतों को यह कोल आदिवासी किसी त्योहार और मनोरंजन के मौके पर गाकर आनंद लेकर नाचते हैं. इन गीतों को कोल आदिवासियों ने अपने ही नाम की संज्ञा दी है. यह गीत कोल्हाई और राई कहलाने लगे हैं.

धर्म नगरी चित्रकूट में कोल आदिवासी और श्री रामचंद्र जी का बहुत पुराना नाता है. यह वही कोल भील आदिवासी हैं, जो शबरी के वंश में पैदा हुए हैं. वहीं शबरी जिसने अपने झूठे बेर श्री रामचंद्र को वनवास के दौरान खिलाए थे. इन कोल आदिवासियों का जंगल से पुराना नाता रहा है. यह आज भी जंगलों से सटे बीहड़ के गांव में रहते हैं पर आधुनिक परिवेश में इनकी जीवन शैली में काफी बदलाव आया है.

फाग गाते चित्रकूट के आदिवासी.

कभी यह आदिवासी जंगल के कंदमूल पर आश्रित हुआ करते थे, लेकिन अब यह आधुनिक परिवेश की भागती दौड़ती जिंदगी में मेहनत मजदूरी कर अपना गुजारा करते हैं. कई आदिवासी बड़े किसानों के खेतों से लेकर भवन निर्माण में मजदूरी के काम में लगे रहते हैं.

बसंत से शुरू होता है फाग का कार्यक्रम
बसंत ऋतु से शुरू होने वाला फाग का कार्यक्रम पूरे एक महीने तक इन कोल आदिवासियों का मनोरंजन का मुख्य जरिया रहता है. यह कोल आदिवासी आपस में मिलकर किसी देव स्थान पर भंडारे का आयोजन सामूहिक रूप से करते हैं. सभी मिल-जुलकर उसमें पकवान और खानपान की सामग्री बनाते हैं और फिर फाग गाया जाता है.

इस फाग कार्यक्रम में कोल्हाई और राई जैसे गाने गाए जाते हैं, जिसमें तेज ध्वनि के साथ वाद्य यंत्रों की आवाज होती है. वाद्ययंत्रों की करतल आवाज ढोलक की थाप और मंजीरे की आवाज पूरे परिवेश को आवेशित कर देती है और अपने आप ही पैर थिरकने को मजबूर हो जाते हैं.

इसे भी पढ़ें:-आखिर मथुरा में क्यों मनाई जाती है लड्डूमार होली

हम लोगों को अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के आगरा दौरे में स्वागत करने का सौभाग्य मिला. हम सभी काफी उत्साहित थे. पहली बार हमारी कला को ऐसे आयोजन में सम्मान मिला था. हम लोगों ने ट्रंप के स्वागत में कोल्हाई और राई गाई और नृत्य किया.
-रामबहोरी, ग्रामीण

बसंत ऋतु से शुरू होने वाला यह कार्यक्रम पूरे माह चलता है, जिसमें महिला और पुरुष अपने-अपने स्थानों पर रह कर गीतों और नृत्य का आनंद उठाते हैं. इससे लोगों की मानसिक और शारीरिक थकावट दूर होती है, जिससे सभी स्वस्थ्य बने रहते हैं.
-रामप्रसाद, ग्रामीण

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.