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मंदाकिनी में लाखों श्रद्धालुओं ने किया दीपदान

दिवाली और चित्रकूट का गहरा संबंध है, क्योंकि भगवान राम से जुड़ी कई सारी कहानियां चित्रकूट से निकलती हैं. हिंदी और संस्कृत साहित्य के अनुसार भगवान राम लंका से लौटते समय चित्रकूट गए थे. इस दौरान यहां ऋषियों से भेंट की थी. तभी से चित्रकूट में मंदाकिनी नदी में दीपदान का प्रचलन शुरू हुआ.

दीपदान
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Published : Nov 14, 2020, 9:29 PM IST

चित्रकूटः दिवाली पर्व के अवसर पर रामघाट पर आयोजित होने वाले पांच दिवसीय अमावस्या मेले का आयोजन चल रहा है. दिवाली के शुभ अवसर पर रामघाट पर लाखों श्रद्धालु पहुंचे. इस दौरान पवित्र मंदाकिनी नदी में श्रद्धालुओं ने दीपदान किया.

राम गंगा घाट पर हुए दीपदान.

प्रभु श्रीराम की तपोभूमि से विख्यात धर्मनगरी चित्रकूट में हिंदू मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद प्रभु श्रीराम सर्वप्रथम चित्रकूट के राम घाट पर पहुंचे थे. भगवान राम के स्वागत के लिए चित्रकूट के सन्यासी ही नहीं स्थानीय कोल-भीलों का हूजूम उमड़ पड़ा था. इस दौरान स्वागत में लोगों ने दीप जलाए थे. तभी से लगातार चित्रकूट के रामघाट पर देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पहुंचकर दीपदान करते आ रहे हैं.

भगवान राम ने तुलसीदास को दिए थे दर्शन
संवत्‌ 1607 की मौनी अमावस्या को बुधवार के दिन भगवान श्रीराम ने तुलसीदास को दर्शन दिए थे. उन्होंने बालक रूप में आकर तुलसीदास से कहा, 'बाबा! हमें चन्दन चाहिये क्या आप हमें चन्दन दे सकते हैं?' हनुमान ‌जी ने सोचा, कहीं वे इस बार भी धोखा न खा जाएं, इसलिए उन्होंने तोते का रूप धारण करके यह दोहा कहा-

चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर। तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

तुलसीदास भगवान श्रीराम जी की उस अद्भुत छवि को निहार कर अपने शरीर की सुध-बुध ही भूल गए. अन्ततोगत्वा भगवान ने स्वयं अपने हाथ से चन्दन लेकर अपने और तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और अन्तर्ध्यान हो गए. इन्हीं सब वजहों से चित्रकूट का महत्व और भी बढ़ जाता है.

चित्रकूटः दिवाली पर्व के अवसर पर रामघाट पर आयोजित होने वाले पांच दिवसीय अमावस्या मेले का आयोजन चल रहा है. दिवाली के शुभ अवसर पर रामघाट पर लाखों श्रद्धालु पहुंचे. इस दौरान पवित्र मंदाकिनी नदी में श्रद्धालुओं ने दीपदान किया.

राम गंगा घाट पर हुए दीपदान.

प्रभु श्रीराम की तपोभूमि से विख्यात धर्मनगरी चित्रकूट में हिंदू मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद प्रभु श्रीराम सर्वप्रथम चित्रकूट के राम घाट पर पहुंचे थे. भगवान राम के स्वागत के लिए चित्रकूट के सन्यासी ही नहीं स्थानीय कोल-भीलों का हूजूम उमड़ पड़ा था. इस दौरान स्वागत में लोगों ने दीप जलाए थे. तभी से लगातार चित्रकूट के रामघाट पर देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पहुंचकर दीपदान करते आ रहे हैं.

भगवान राम ने तुलसीदास को दिए थे दर्शन
संवत्‌ 1607 की मौनी अमावस्या को बुधवार के दिन भगवान श्रीराम ने तुलसीदास को दर्शन दिए थे. उन्होंने बालक रूप में आकर तुलसीदास से कहा, 'बाबा! हमें चन्दन चाहिये क्या आप हमें चन्दन दे सकते हैं?' हनुमान ‌जी ने सोचा, कहीं वे इस बार भी धोखा न खा जाएं, इसलिए उन्होंने तोते का रूप धारण करके यह दोहा कहा-

चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर। तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

तुलसीदास भगवान श्रीराम जी की उस अद्भुत छवि को निहार कर अपने शरीर की सुध-बुध ही भूल गए. अन्ततोगत्वा भगवान ने स्वयं अपने हाथ से चन्दन लेकर अपने और तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और अन्तर्ध्यान हो गए. इन्हीं सब वजहों से चित्रकूट का महत्व और भी बढ़ जाता है.

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