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चित्रकूट: परिषदीय विद्यालयों में घट रही बच्चों की तादाद, नहीं चेत रहे जिम्मेदार - secondry schools in chitrakoot

चित्रकूट जिले के परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति में लगातार कमी हो रही है. अध्यापकों का कहना है कि बेहद पिछड़ा क्षेत्र होने के कारण साथ ही अभिभावकों में जागरूकता की कमी के चलते बच्चों की उपस्थिति में लगातार कमी हो रही है.

परिषदीय विद्यालयों में छात्रों की संख्या में हो रही कमी
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Published : Nov 24, 2019, 11:49 AM IST

चित्रकूट: परिषदीय विद्यालयों में ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की शिक्षा के लिए पुलिस विभाग ने 'पढ़ेगा चित्रकूट बढ़ेगा चित्रकूट' नारा देकर एक अभियान चलाया था, जिसमें ग्रामीण बच्चों को और उनके अभिभावकों को उचित शिक्षा के प्रति जागरूक करने की कोशिश की गई थी. इस अभियान में पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर गांव-गांव जाकर अपर पुलिस अधीक्षक और पुलिस की टीम ने कैंप लगाकर बच्चों व अभिवावकों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया, लेकिन इसका कोई असर देखने को नहीं मिला. हालात यह हैं कि परिषदीय विद्यालयों बच्चों की संख्या में लगातार कमी देखने को मिल रही है.

परिषदीय विद्यालयों में छात्रों की संख्या में हो रही कमी.
बच्चों की संख्या में हो रही कमी
परिषदीय विद्यालयों में छात्रों की संख्या में लगातार कमी हो रही है. हालात यह हैं कि माध्यमिक विद्यालय करौंहा में 107 पंजीकृत छात्रों में 23 छात्र और पूर्व माध्यमिक विद्यालय करौंहा में 106 पंजीकृत छात्रों में से मात्र 18 छात्र थे. इन विद्यालयों में 25% भी छात्रों की उपस्थिति नहीं दिखी. वहीं जब इस संबंध में अध्यापक से जानकारी ली गई तो अध्यापकों का कहना है कि यह क्षेत्र बेहद पिछड़ा है और अभिभावकों में जागरूकता की कमी के चलते बच्चों की विद्यालय में उपस्थिति लगातार कम हो रही है.

जर्जर इमारतों में पढ़ाने से लगता है डर
जहां एक तरफ सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में छात्रों को आधुनिक तकनीक से शिक्षा दिए जाने को लेकर प्रयत्नशील है. इसके लिए परिषदीय विद्यालयों में निजी विद्यालयों की तर्ज पर आधुनिक मशीनें जैसे कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा दी जा रही है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र के छात्र आधुनिक प्रतिस्पर्धा में किसी भी तरीके से शहरी क्षेत्र के छात्रों से पीछे न रहें तो वहीं दूसरी तरफ अध्यापकों का कहना है कि इस इमारत के नीचे बच्चों को पढ़ाने में भी डर लगता है, जिसके चलते हम लोगों ने बच्चों को एक ही कमरे में पढ़ाने का फैसला किया. बाकी कमरों में बच्चों को जाने की इजाजत नहीं है.
ग्रामीणों का कहना है कि हम अपने बच्चों को पढ़ने के लिए जरूर भेजें पर विद्यालय की इमारत इस योग्य नहीं कि बच्चे वहां सुरक्षित बैठकर पढ़ सकें. बरसात के दिनों में इन इमारतों में जगह-जगह से पानी टपकता है तो वहीं हमें डर सताता है कि तेज हवा और आंधी से यह इमारत कहीं ढह न जाए. नई इमारत बनवाने और इस इमारत की मरम्मत करवाने के संबंध में कई बार हम लोगों द्वारा व अध्यापकों द्वारा उच्च अधिकारियों को लिखित अवगत कराया गया, पर प्रशासन की तरफ से अभी तक कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है.

चित्रकूट: परिषदीय विद्यालयों में ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की शिक्षा के लिए पुलिस विभाग ने 'पढ़ेगा चित्रकूट बढ़ेगा चित्रकूट' नारा देकर एक अभियान चलाया था, जिसमें ग्रामीण बच्चों को और उनके अभिभावकों को उचित शिक्षा के प्रति जागरूक करने की कोशिश की गई थी. इस अभियान में पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर गांव-गांव जाकर अपर पुलिस अधीक्षक और पुलिस की टीम ने कैंप लगाकर बच्चों व अभिवावकों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया, लेकिन इसका कोई असर देखने को नहीं मिला. हालात यह हैं कि परिषदीय विद्यालयों बच्चों की संख्या में लगातार कमी देखने को मिल रही है.

परिषदीय विद्यालयों में छात्रों की संख्या में हो रही कमी.
बच्चों की संख्या में हो रही कमी
परिषदीय विद्यालयों में छात्रों की संख्या में लगातार कमी हो रही है. हालात यह हैं कि माध्यमिक विद्यालय करौंहा में 107 पंजीकृत छात्रों में 23 छात्र और पूर्व माध्यमिक विद्यालय करौंहा में 106 पंजीकृत छात्रों में से मात्र 18 छात्र थे. इन विद्यालयों में 25% भी छात्रों की उपस्थिति नहीं दिखी. वहीं जब इस संबंध में अध्यापक से जानकारी ली गई तो अध्यापकों का कहना है कि यह क्षेत्र बेहद पिछड़ा है और अभिभावकों में जागरूकता की कमी के चलते बच्चों की विद्यालय में उपस्थिति लगातार कम हो रही है.

जर्जर इमारतों में पढ़ाने से लगता है डर
जहां एक तरफ सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में छात्रों को आधुनिक तकनीक से शिक्षा दिए जाने को लेकर प्रयत्नशील है. इसके लिए परिषदीय विद्यालयों में निजी विद्यालयों की तर्ज पर आधुनिक मशीनें जैसे कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा दी जा रही है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र के छात्र आधुनिक प्रतिस्पर्धा में किसी भी तरीके से शहरी क्षेत्र के छात्रों से पीछे न रहें तो वहीं दूसरी तरफ अध्यापकों का कहना है कि इस इमारत के नीचे बच्चों को पढ़ाने में भी डर लगता है, जिसके चलते हम लोगों ने बच्चों को एक ही कमरे में पढ़ाने का फैसला किया. बाकी कमरों में बच्चों को जाने की इजाजत नहीं है.
ग्रामीणों का कहना है कि हम अपने बच्चों को पढ़ने के लिए जरूर भेजें पर विद्यालय की इमारत इस योग्य नहीं कि बच्चे वहां सुरक्षित बैठकर पढ़ सकें. बरसात के दिनों में इन इमारतों में जगह-जगह से पानी टपकता है तो वहीं हमें डर सताता है कि तेज हवा और आंधी से यह इमारत कहीं ढह न जाए. नई इमारत बनवाने और इस इमारत की मरम्मत करवाने के संबंध में कई बार हम लोगों द्वारा व अध्यापकों द्वारा उच्च अधिकारियों को लिखित अवगत कराया गया, पर प्रशासन की तरफ से अभी तक कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है.
Intro:चित्रकूट जनपद में पूर्व में पुलिस द्वारा चलाए गए "अभियान पढ़ेगा चित्रकूट बढ़ेगा चित्रकूट "का असर यह है कि पार्षदीय विद्यालयों में 25 प्रतिशत भी छात्रों की उपस्थिति नहीं है ।बड़ा वेतन लेने वाले इन अध्यापकों का कहना है कि यह क्षेत्र पिछड़ा है और अभिभावकों में जागरूकता की कमी है ।सरकार विद्यालयों में इंटरनेट कंप्यूटर जैसी अत्याधुनिक शिक्षण सुविधा से पार्षद विद्यालयों को हाईटेक करने की कवायद में लगी है। वही शिक्षा विभाग के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी विद्यालय की इमारत इस काबिल भी नहीं कि उसकी नीचे बैठकर छात्र पठन-पाठन कर सकें।


Body:उत्तर प्रदेश के जनपद चित्रकूट में पार्षदीय विद्यालयों में ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले और वह आगे तरक्की करें इसके लिए पुलिस विभाग ने "पढ़ेगा चित्रकूट बढ़ेगा चित्रकूट "नारा देकर एक बड़ा अभियान चलाया और ग्रामीण बच्चों को और उनके अभिभावकों को जागरूक करने की कोशिश की थी। जिसमें पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर गांव-गांव में जाकर अपर पुलिस अधीक्षक और पुलिस की टीम ने कैंप लगाकर बच्चों व अभिवावकों को जागरूक किया कि वह अपने बच्चों को नजदीक के विद्यालय में जरूर भेजें ।
पर इसके उलट पार्षदीय विद्यालयों में छात्रों की संख्या में लगातार कमी आती जा रही है ।हालात यह है कि माध्यमिक विद्यालय करौंहा में 107 पंजीकृत छात्रों में 23 छात्र और पूर्व माध्यमिक विद्यालय करौंहा में 106 पंजीकृत छात्रों में मात्र 18 छात्र थे ।इन विद्यालयों में 25% भी छात्रों की उपस्थिति नहीं दिख रही है ।
वहीं जब इस संबंध में संबंधित अध्यापक से जानकारी ली गई अध्यापक का मानना है ।कि यह क्षेत्र बेहद पिछड़ा है और इन बच्चों के अभिभावकों में जागरूकता की कमी है ।जिसके चलते बच्चों की उपस्थिति विद्यालय में लगातार कम हो रही है।
सरकार प्रयत्नशील है कि ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों को भी आधुनिक तकनीक से शिक्षा दिया जाए ।जिसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में भी निजी क्षेत्रों के तर्ज पर इंग्लिश मीडियम विद्यालय और आधुनिक मशीनें जैसे कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा भी दी जा रही है ।ताकि ग्रामीण क्षेत्र के छात्र आधुनिक प्रतिस्पर्धा में किसी भी तरीके से शहरी क्षेत्र के छात्रों से पीछे ना रहे ।
वही शिक्षा विभाग द्वारा बनाई गई इमारतें इस योग ही नहीं हैं कि उसमें बच्चे बैठ कर पढ़ सके अध्यापकों ने तो यहां तक बताया कि पूर्व के अध्यापकों के द्वारा बनाई गई इस इमारत के नीचे बच्चों को पढ़ाने में भी डर लगता है ।जिसके चलते हम लोगों ने बच्चों को एक कमरे में ही पढ़ाने का फैसला किया बाकी कमरों में बच्चों को जाने की इजाजत नहीं है ।बता दे ग्रामीण भी इस समस्या से अच्छी तरह से वाकिफ हैं ।ग्रामीणों का कथन है हम अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए जरूर भेजते हैं ।पर विद्यालय की इमारत इस योग्य नहीं ।बरसात में जहां यह इमारत में जगह जगह से पानी टपकता है तो वही हमें डर सताता है। कि तेज हवा और आंधी से यह इमारत कहीं ढाए न जाए । नई इमारत बनवाने और इस इमारत की मरम्मत करवाने के संबंध में कई बार हम लोगो द्वारा व अध्यापकों द्वारा उच्च अधिकारियों को लिखित अवगत कराया गया पर प्रशासन के तरफ से अभी तक कोई भी कार्यवाही नहीं की गई है।

1--बाइट-ध्रुव नारायण सिंह यादव(प्रधानाध्यापक माध्यमिक विद्यालय करौंहा

2--बाइट-नयन सिंह (अध्यापक पूर्व माध्यमिक विद्यालय करौंहा)

3--बाइट-पंकज(छात्र कक्षा 5)

4--बाइट-मेवालाल(अभिवावक)

5--बाइट-ध्रुव नारायण सिंह यादव(प्रधानाध्यापक माध्यमिक विद्यालय करौंहा

6--बाइट-प्रमोद गुप्ता(खण्ड शिक्षाधिकारी)


Conclusion:
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