नई दिल्ली : यूपी के बुलंदशहर से दिल्ली के एम्स आई कुसुम देवी बीते तीन महीनों से जिंदगी की जंग लड़ रही हैं. यूट्रस ट्यूमर का इलाज कराने के लिए कुसुम को लगातार धक्के खाने पड़ रहे हैं. कभी डॉक्टर से मिलने के लिए कतार में घंटों खड़े रहना पड़ता है. तो कभी दवाई के लिए लाइनों में लगकर धक्के खाना पड़ता है.
ज़िंदगी की जद्दोजहद में उनकी उम्मीदों की डोर लगातार कमजोर होती जा रही है. कुसुम पर मुसीबतों के पहाड़ दर पहाड़ टूट रहे हैं. पांच महीने पहले उनकी पति का निधन कैंसर के इलाज के दौरान हो गया. अब वह खुद एक बड़ी मुसीबत से जूझ रही हैं.
कुसुम का इलाज कर रहे डॉक्टर साफ नहीं बता पा रहे हैं कि उन्हें कैंसर है या बिना कैंसर वाला ट्यूमर. उनके गर्भाशय में एक बहुत बड़ी गांठ है. जिसे अल्ट्रासाउंड करने वाले टेक्नीशियन ने ट्यूमर बताया है. कुसुम देवी के तीन बच्चे हैं. इनमें से कोई भी इतना बड़ा नहीं है जो अपनी मां के साथ एम्स जैसे बड़े अस्पताल में आकर उनकी मदद कर सके. डॉक्टर से मिलने की जगह से लेकर जांच कराने वाली जगह तक पहुंचते-पहुंचते वह बेदम सी हो जाती हैं.
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कुसुम का ट्यूमर लगातार बढ़ रहा है. यह पेशाब की थैली को दबा रहा है, जिसकी वजह से उन्हें बार-बार बाथरूम जाना पड़ता है. कई बार तेज दर्द की वजह से वह निढाल पड़ जाती हैं. एम्स में रोज करीब 20,000 मरीज देश के विभिन्न हिस्सों से इलाज कराने आते हैं. इनमें से करीब 20% मरीज किसी न किसी तरह के कैंसर से पीड़ित होते हैं. जिनका एम्स परिसर में ही लाल बिल्डिंग नाम से मशहूर डॉक्टर बीआर अंबेडकर कैंसर सेंटर में इलाज होता है.