बुलंदशहर: जिले में उज्जवला योजना के तहत पात्रों को इसका लाभ पहुंचाया गया. वहीं अब लगातार बढ़ती महंगाई की वजह से गैस सिलेंडर घरों में शोपीस बनकर रह गए हैं. यही वजह है कि लोगों ने गैस चूल्हों से किनारा कर, फिर एक बार कच्चे चूल्हों का रुख कर लिया है.
2014 में शुरू की गई थी उज्जवला योजना
केंद्र सरकार ने धुआं-धुआं होती ग्रामीण जिंदगी को उबारने के लिए उज्ज्वला योजना की शुरुआत की थी. इस योजना की मंशा यह थी कि जो धुएं का गुबार ग्रामीण अंचलों में छाया करता था, उससे लोगों को राहत मिल सके. सन् 2014 में उज्ज्वला योजना की शुरुआत की गई थी. इसके तहत जरूरतमंदों को गैस-चूल्हे का वितरण किया गया था. जरूरतमंदों को सत्ताधारी दलों के नेताओं, मंत्रियों, विधायकों और जनप्रतिनिधियों ने गैस के कनेक्शन के कागजात सौंपे.
गांव में आज भी बनता है चूल्हें पर खाना
ईटीवी भारत ने इसी विषय पर जांच पड़ताल की और पाया कि जिले के कई ग्रामीण क्षेत्रों की तस्वीर काफी परेशान करने वाली थी. गांव में आज भी लोग कच्चे चूल्हों पर खाना बनाते दिखाई दे रहे थे. इस बारे में कई महिलाओं से बात की गई उनका कहना है कि सरकार ने उन्हें गैस का कनेक्शन तो दे दिया, लेकिन महंगाई की मार से उनकी जेब पर अतिरिक्त भार पड़ रहा है.
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यह योजना 2014 मैं शुरू हुई थी और 2015 से अब तक करीब 2 लाख 97 हजार पात्रों को जिले में इसके तहत कनेक्शन वितरित किये गए हैं. गैस सिलेंडर के दाम बढ़ने पर सब्सिडी बढ़ती है और वह उपभोक्ता के खाते में चली जाती है.
-केबी सिंह,जिला पूर्ति अधिकारी