बिजनौर : वो वक्त कुछ और था जब साधनों के अभाव में खेती किसानी को पिछड़ेपन का प्रतीक माना जाता था. समय बदलने और सुविधाओं के विस्तार के साथ अब खेती-किसानी भी अग्रणी कार्यक्षेत्रों में शामिल होती जा रही है.
शायद यही वजह है कि अब लोग मल्टीनेशनल कंपनियों को अलविदा कहकर अपनी जमीन से जुड़ रहे हैं. किसानी के नए तरीके और साधनों के जरिए मोटी आमदनी कर रहे हैं. यह लोग उन किसानों के लिए एक नजीर भी पेश कर रहे हैं जो वर्षों से पारंपरिक खेती करने के बाद भी अपनी स्थिति नहीं सुधार पा रहे हैं और कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं.
कुछ ऐसी ही नजीर पेश की है बिजनौर के एक किसान के बेटे ने जिसने पहले मल्टीनेशनल कंपनी में बड़े पैकेज की नौकरी की और बाद में सबकुछ छोड़कर गांव में खेती शुरू कर दी. शुरूआत में तो अखिलेश ने पारंपरिक गन्ने की खेती ही की पर इसमें अपेक्षा के अनुरूप परिणाम न मिलने पर उन्होंने फूलों की खेती शुरू कर दी.
आज जनपद ही नही बल्कि आसपास के कई जिलों में बिजनौर के फूलों की खुशबू फैला रहे हैं. पाॅली हाउस लगाकर लाखों रुपये कमा रहे हैं. इनके यहां कई प्रजातियों के महंगे फूलों की डिमांड अब दिल्ली तक से आ रही है.
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अखलेश चौधरी बताते हैं कि मल्टीनेशनल कंपनी में बड़े पैकेज की नौकरी करते थे. फिर नौकरी छोड़कर अपने गांव बलिदिया आ गए. यहां गन्ने की खेती करने लगे. हालांकि गन्ने की खेती में साल सालभर पेमेंट न मिलने से अखलेश ने इसकी खेती से तौबा कर लिया. अब वे फूलों के कारोबार से जुड़ने की योजना बनाने लगे.
अखलेश ने अपने गांव से कुछ किलोमीटर की दूरी पर गांव अगरी में चार एकड़ यानी 20 बीघा जमीन पाॅली हाउस लगाकर अलग-अलग प्रजाति जिनमें जरबेरा, कारनेशन, जिप्सोफिला, डेजी, लिलियम, ग्लोडॉस को बड़े पैमाने पर उगाया. इन फूलों में सबसे महंगा लिलियम है. अखलेश के फूलों की आज जनपद ही नहीं, आसपास के जिलों जिसमें मुरादाबाद, मेरठ और दिल्ली आदि शामिल है, में तगड़ी डिमांड है.
वह बताते हैं कि गन्ने की अपेक्षा फूलों की खेती में 10 से 15 फीसदी अधिक लाभ है. अखलेश ने लगभग 58 लाख रुपये की लागत से पाॅली हाउस लगाया था. यूपी सरकार ने बागवानी मिशन योजना के तहत 24 लाख की सब्सिडी दी है. अखलेश को देखकर अब जिले में कई किसान गन्ने की फसल से तौबाकर फूलों की खेती करने लगे है. अखलेश सालाना 20 से 25 लाख रुपये की बचत कर रहे.