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कभी थी इन बुजुर्गों की आंखों में चमक, आज दिखता है 'आंसुओं का नमक'

पहले बुजुर्गों की इज्जत और देखरेख करना परिवार में सबकी जिम्मेदारी होती थी, आज आलम यह है कि उन्हें वृद्धाश्रम में ही अपने हाल पर छोड़ दिया गया है. विश्व परिवार दिवस पर देखिए हमारी ये खास रिपोर्ट...

international day of families
विश्व परिवार दिवस पर बस्ती से रिपोर्ट.
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Published : May 15, 2020, 4:05 PM IST

बस्ती: संयुक्त परिवार से एकल परिवार की तरफ बढ़ते समाज के साथ-साथ वृद्धा आश्रम का प्रचलन किसी अभिशाप से कम नहीं है. पहले बुजुर्गों की इज्जत और देखरेख करना सबकी जिम्मेदारी होती थी, आज उन्हें हाशिये पर डाल दिया गया है. एक वक्त था जब ये लोग परिवार की शान हुआ करते थे लेकिन बदलते दौर में आज बोझ बन गए हैं. जब तक हम बुजुर्गों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को नहीं समझेंगे, विश्व परिवार दिवस की सार्थकता पर लगातार सवाल उठता रहेगा.

देखें रिपोर्ट.
हर साल की तरह इस बार भी पूरा विश्व परिवार दिवस मना रहा है. वहीं ईटीवी भारत ने बस्ती के वृद्धाश्रम में पहुंचकर उन लोगों से बात की, जिनका परिवार उन्हें त्याग चुका है. बावजूद इसके इन बुजुर्गों के मन में आज भी अपनों से बिछड़ने का दर्द बरबस ही झलक उठता है.


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बुजुर्गों ने बताया कि परिवार से भरोसा उठ गया है. कई साल यहां रहते हो गया, लेकिन कोई पूछने तक नहीं आया. उन्होंने बताया कि अब तो यही परिवार है और यहां अच्छा लगता है. बुजुर्गों ने परिवार को याद करते हुए भारी मन से कहा कि याद तो आती ही है, लेकिन धन संपत्ति के लालच में हमें बेदखल कर दिया गया. ऐसे में अब परिवार से भरोसा उठ गया है. इनका कहना है कि सब अपने में ही मस्त हैं, कोई किसी को नहीं पूछता.

बड़ा सवाल यह है कि क्या एक दिन इन बुजुर्गों की पीड़ा के बारे में सोचकर समाज को बदला जा सकेगा. आखिरकार समाज में क्यों उम्र का ये दौर यूं ही बेइमानी मानकर कट जाता है और इस मुश्किल वक्त पर जिम्मेदारी से कतराने वालों की सोंच में कब बदलाव आएगा.

बस्ती: संयुक्त परिवार से एकल परिवार की तरफ बढ़ते समाज के साथ-साथ वृद्धा आश्रम का प्रचलन किसी अभिशाप से कम नहीं है. पहले बुजुर्गों की इज्जत और देखरेख करना सबकी जिम्मेदारी होती थी, आज उन्हें हाशिये पर डाल दिया गया है. एक वक्त था जब ये लोग परिवार की शान हुआ करते थे लेकिन बदलते दौर में आज बोझ बन गए हैं. जब तक हम बुजुर्गों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को नहीं समझेंगे, विश्व परिवार दिवस की सार्थकता पर लगातार सवाल उठता रहेगा.

देखें रिपोर्ट.
हर साल की तरह इस बार भी पूरा विश्व परिवार दिवस मना रहा है. वहीं ईटीवी भारत ने बस्ती के वृद्धाश्रम में पहुंचकर उन लोगों से बात की, जिनका परिवार उन्हें त्याग चुका है. बावजूद इसके इन बुजुर्गों के मन में आज भी अपनों से बिछड़ने का दर्द बरबस ही झलक उठता है.


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बड़ा सवाल यह है कि क्या एक दिन इन बुजुर्गों की पीड़ा के बारे में सोचकर समाज को बदला जा सकेगा. आखिरकार समाज में क्यों उम्र का ये दौर यूं ही बेइमानी मानकर कट जाता है और इस मुश्किल वक्त पर जिम्मेदारी से कतराने वालों की सोंच में कब बदलाव आएगा.

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