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बस्ती के 'मखौड़ा धाम' को कहा जाता है भगवान राम की उद्भव स्थली! - बस्ती में मखौड़ा धाम स्थित है

यूपी के बस्ती जिले में स्थित मखौड़ा धाम को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जन्म प्रसंग का निमित्त बनने का गौरव प्राप्त है. यहां राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ किया था, तब कहीं जाकर राजा दशरथ को राम और उनके तीनों पुत्रों की प्राप्ति हुई थी.

मखौड़ा धाम.
मखौड़ा धाम.
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Published : Aug 3, 2020, 8:30 PM IST

बस्ती: 'मखस्थानं महतपुण्यम यत्र पुण्या मनोरमा' यानी मखौड़ा धाम, जो कि मनोरमा नदी के पास बसा हुआ है. इसकी महिमा को शास्त्रों-वेद पुराणों में भी बयां किया गया है. यह वही स्थान है, जहां महाराज दशरथ ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ किया था. तब जाकर राजा दशरथ को राम और उनके तीनों पुत्रों की प्राप्ति हुई थी. बता दें कि यह स्थान आज भी त्रेतायुग की तरह उर्वरा है.

जानकारी देते महंत सूरज दास जी महाराज.

दरअसल, पूरी दुनिया अयोध्या को भगवान राम की जन्मस्थली के रूप में जानती है. लेकिन कम ही लोग इस बात को जानते हैं कि बस्ती की भूमि को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जन्म प्रसंग का निमित्त बनने का गौरव प्राप्त है.

भगवान श्रीराम की उद्भव स्थली बस्ती जनपद में मखौड़ा धाम स्थित है. यहां राजा दशरथ ने अपने तीनों रानियों के साथ पुत्रेष्ठि यज्ञ मनोरमा नदी के किनारे कराया था. इसी यज्ञ के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का प्राकट्य हुआ. पुत्र प्राप्ति न होने पर चिंतित महाराज दशरथ को गुरु वशिष्ठ ने श्रृंगी ऋषि से यज्ञ कराने की सलाह दी थी. श्रृंगी ऋषि का आश्रम स्थल आज भी मखधाम मखौड़ा थोड़ी दूर पर श्रृंगिनारी के रूप में जाना जाता है. मखौड़ा में आज भी लोग संतान प्राप्ति के लिए यहां यज्ञ करते हैं और उनकी मनोकामना पूरी भी होती है. जिस जगह महाराज दशरथ ने यज्ञ किया था, वहीं पर यज्ञस्थली का निर्माण कराया गया है. दूर-दूर से लोग यहां आकर अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए यज्ञ, हवन, पूजन करते हैं.

ऐसी मान्यता है कि रानी कौशल्या ने पुत्र प्राप्ति के लिए यहां योगिनी नृत्य भी किया था. इतना ही नहीं अयोध्या की चौरासी कोसी परिक्रमा देश और दुनिया के साधु-संत मखौड़ा से ही शुरू करते हैं. पुरातन काल से ही मखधाम से 84 कोसी परिक्रमा चैत्र माह की पूर्णिमा से शुरू होकर यहीं समाप्त होती है. मान्यता है कि अयोध्या से मखौड़ा, रामजानकी मार्ग होते हुए रामरेखा चकोही बाग से फिर अयोध्या तक फैले 84 कोस अवध प्रदेश में चैत्र पूर्णिमा से बैषाख जानकी नवमी तक सभी देवों का वास होता है. इस परिक्रमा को कर भक्त जन्म जन्मान्तर के बंधन से मुक्त हो जाते हैं.

इसे भी पढ़ें- बस्ती: खतरे के निशान के पार बह रही घाघरा, गांवों में घुसा पानी-इंतजाम नाकाफी

बस्ती: 'मखस्थानं महतपुण्यम यत्र पुण्या मनोरमा' यानी मखौड़ा धाम, जो कि मनोरमा नदी के पास बसा हुआ है. इसकी महिमा को शास्त्रों-वेद पुराणों में भी बयां किया गया है. यह वही स्थान है, जहां महाराज दशरथ ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ किया था. तब जाकर राजा दशरथ को राम और उनके तीनों पुत्रों की प्राप्ति हुई थी. बता दें कि यह स्थान आज भी त्रेतायुग की तरह उर्वरा है.

जानकारी देते महंत सूरज दास जी महाराज.

दरअसल, पूरी दुनिया अयोध्या को भगवान राम की जन्मस्थली के रूप में जानती है. लेकिन कम ही लोग इस बात को जानते हैं कि बस्ती की भूमि को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जन्म प्रसंग का निमित्त बनने का गौरव प्राप्त है.

भगवान श्रीराम की उद्भव स्थली बस्ती जनपद में मखौड़ा धाम स्थित है. यहां राजा दशरथ ने अपने तीनों रानियों के साथ पुत्रेष्ठि यज्ञ मनोरमा नदी के किनारे कराया था. इसी यज्ञ के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का प्राकट्य हुआ. पुत्र प्राप्ति न होने पर चिंतित महाराज दशरथ को गुरु वशिष्ठ ने श्रृंगी ऋषि से यज्ञ कराने की सलाह दी थी. श्रृंगी ऋषि का आश्रम स्थल आज भी मखधाम मखौड़ा थोड़ी दूर पर श्रृंगिनारी के रूप में जाना जाता है. मखौड़ा में आज भी लोग संतान प्राप्ति के लिए यहां यज्ञ करते हैं और उनकी मनोकामना पूरी भी होती है. जिस जगह महाराज दशरथ ने यज्ञ किया था, वहीं पर यज्ञस्थली का निर्माण कराया गया है. दूर-दूर से लोग यहां आकर अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए यज्ञ, हवन, पूजन करते हैं.

ऐसी मान्यता है कि रानी कौशल्या ने पुत्र प्राप्ति के लिए यहां योगिनी नृत्य भी किया था. इतना ही नहीं अयोध्या की चौरासी कोसी परिक्रमा देश और दुनिया के साधु-संत मखौड़ा से ही शुरू करते हैं. पुरातन काल से ही मखधाम से 84 कोसी परिक्रमा चैत्र माह की पूर्णिमा से शुरू होकर यहीं समाप्त होती है. मान्यता है कि अयोध्या से मखौड़ा, रामजानकी मार्ग होते हुए रामरेखा चकोही बाग से फिर अयोध्या तक फैले 84 कोस अवध प्रदेश में चैत्र पूर्णिमा से बैषाख जानकी नवमी तक सभी देवों का वास होता है. इस परिक्रमा को कर भक्त जन्म जन्मान्तर के बंधन से मुक्त हो जाते हैं.

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