बस्तीः पूर्वांचल के मिनी पीजीआई कहे जाने वाले कैली अस्पताल को न सिर्फ पीएमएस संवर्ग के डॉक्टरों और फार्मासिस्टों ने ही लूटा, बल्कि भवन का निर्माण करने वाली कार्यदाई संस्था राजकीय निर्माण निगम ने भी खूब चूना लगाया. भवन निर्माण के मद में 52 करोड़ से अधिक की रकम कार्यदाई संस्था के खाते में पिछले 28 साल में चले तो गए, मगर न काम पूरा हुआ और न ही भवन को हैंडओवर किया गया.
वहीं सबसे ताज्जुब करने वाली बात यह है कि ओपीडी ब्लॉक का निर्माण अब तक अधूरा है, जिसके चलते ओपीडी शुरू नहीं हो पाई है. जिस कैली अस्पताल के भवन को आज से 15 साल पहले ही कार्यदाई संस्था द्वारा हैंडओवर कर देना चाहिए था, उसे आज तक नहीं किया गया.
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भवन निर्माण को पूरा करने के लिए कार्यदाई संस्था को कई रिमाइंडर भेजा गया था. बावजूद इसके कार्य पूरा नहीं हुआ. इतना ही नहीं, जब कार्यदाई संस्था ने सड़क सहित अन्य अधूरे निर्माण कार्यों के लिए सरकार से 1.5 करोड़ की और मांग की तो इस पर अपनी गलती मानते हुए कार्यदाई संस्था ने बाकी बचे कार्यों को पूरा करने के लिए समय मांगा.
इतने सालों में भवन हैंडओवर के मामले पर कमिश्नर अनिल सागर ने तत्कालीन अस्पताल के डायरेक्टर, सीएमएस और कार्यदाई संस्था के परियोजना प्रबंधक को दोषी माना और इन लोगों के विरुद्ध कार्रवाई करने की मांग की. कमिश्नर ने माना कि परियोजना समय से पूर्ण न होने का मुख्य कारण परियोजना की मॉनिटरिंग कार्यदाई संस्था द्वारा न करना रहा है.
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मिनी पीजीआई कही जाने वाली कैली अस्पताल को वहीं के लोगों ने बर्बाद कर दिया. ओपेक चिकित्सालय कैली के निर्माण के लिए सरकार ने कार्यदाई संस्था राजकीय निर्माण को वर्ष 1990 और वर्ष 2005 के बीच 11 किश्तों में 5203.90 लाख की धनराशि दी थी. वहीं कमिश्नर और समिति ने इसके लिए कार्यदाई संस्था को एक माह का समय दिया और कहा कि निर्माणधीन भवनों के ढ़ांचे को एक माह में पूरा कर उसे महर्षि वशिष्ठ स्वशासी चिकित्सा महाविद्यालय को हैंडओवर कर दिया जाए.