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28 साल में खर्च हुए 52 करोड़ रुपये, फिर भी कैली अस्पताल का भवन अधूरा - बस्ती समाचार

उत्तर प्रदेश के बस्ती में पूर्वांचल का मिनी पीजीआई कहे जाने वाले कैली अस्पताल को कई वर्षों पहले शुरू हो जाना चााहिए था, लेकिन जिम्मेदारों के गैर जिम्मेदाराना हरकत के चलते आज तक अस्पताल शुरू नहीं हो पाया.

कैली अस्पताल का भवन अधूरा.
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Published : Sep 22, 2019, 3:36 PM IST

Updated : Sep 23, 2019, 7:23 AM IST

बस्तीः पूर्वांचल के मिनी पीजीआई कहे जाने वाले कैली अस्पताल को न सिर्फ पीएमएस संवर्ग के डॉक्टरों और फार्मासिस्टों ने ही लूटा, बल्कि भवन का निर्माण करने वाली कार्यदाई संस्था राजकीय निर्माण निगम ने भी खूब चूना लगाया. भवन निर्माण के मद में 52 करोड़ से अधिक की रकम कार्यदाई संस्था के खाते में पिछले 28 साल में चले तो गए, मगर न काम पूरा हुआ और न ही भवन को हैंडओवर किया गया.

कैली अस्पताल का भवन अधूरा.

वहीं सबसे ताज्जुब करने वाली बात यह है कि ओपीडी ब्लॉक का निर्माण अब तक अधूरा है, जिसके चलते ओपीडी शुरू नहीं हो पाई है. जिस कैली अस्पताल के भवन को आज से 15 साल पहले ही कार्यदाई संस्था द्वारा हैंडओवर कर देना चाहिए था, उसे आज तक नहीं किया गया.

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भवन निर्माण को पूरा करने के लिए कार्यदाई संस्था को कई रिमाइंडर भेजा गया था. बावजूद इसके कार्य पूरा नहीं हुआ. इतना ही नहीं, जब कार्यदाई संस्था ने सड़क सहित अन्य अधूरे निर्माण कार्यों के लिए सरकार से 1.5 करोड़ की और मांग की तो इस पर अपनी गलती मानते हुए कार्यदाई संस्था ने बाकी बचे कार्यों को पूरा करने के लिए समय मांगा.

इतने सालों में भवन हैंडओवर के मामले पर कमिश्नर अनिल सागर ने तत्कालीन अस्पताल के डायरेक्टर, सीएमएस और कार्यदाई संस्था के परियोजना प्रबंधक को दोषी माना और इन लोगों के विरुद्ध कार्रवाई करने की मांग की. कमिश्नर ने माना कि परियोजना समय से पूर्ण न होने का मुख्य कारण परियोजना की मॉनिटरिंग कार्यदाई संस्था द्वारा न करना रहा है.

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मिनी पीजीआई कही जाने वाली कैली अस्पताल को वहीं के लोगों ने बर्बाद कर दिया. ओपेक चिकित्सालय कैली के निर्माण के लिए सरकार ने कार्यदाई संस्था राजकीय निर्माण को वर्ष 1990 और वर्ष 2005 के बीच 11 किश्तों में 5203.90 लाख की धनराशि दी थी. वहीं कमिश्नर और समिति ने इसके लिए कार्यदाई संस्था को एक माह का समय दिया और कहा कि निर्माणधीन भवनों के ढ़ांचे को एक माह में पूरा कर उसे महर्षि वशिष्ठ स्वशासी चिकित्सा महाविद्यालय को हैंडओवर कर दिया जाए.

बस्तीः पूर्वांचल के मिनी पीजीआई कहे जाने वाले कैली अस्पताल को न सिर्फ पीएमएस संवर्ग के डॉक्टरों और फार्मासिस्टों ने ही लूटा, बल्कि भवन का निर्माण करने वाली कार्यदाई संस्था राजकीय निर्माण निगम ने भी खूब चूना लगाया. भवन निर्माण के मद में 52 करोड़ से अधिक की रकम कार्यदाई संस्था के खाते में पिछले 28 साल में चले तो गए, मगर न काम पूरा हुआ और न ही भवन को हैंडओवर किया गया.

कैली अस्पताल का भवन अधूरा.

वहीं सबसे ताज्जुब करने वाली बात यह है कि ओपीडी ब्लॉक का निर्माण अब तक अधूरा है, जिसके चलते ओपीडी शुरू नहीं हो पाई है. जिस कैली अस्पताल के भवन को आज से 15 साल पहले ही कार्यदाई संस्था द्वारा हैंडओवर कर देना चाहिए था, उसे आज तक नहीं किया गया.

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भवन निर्माण को पूरा करने के लिए कार्यदाई संस्था को कई रिमाइंडर भेजा गया था. बावजूद इसके कार्य पूरा नहीं हुआ. इतना ही नहीं, जब कार्यदाई संस्था ने सड़क सहित अन्य अधूरे निर्माण कार्यों के लिए सरकार से 1.5 करोड़ की और मांग की तो इस पर अपनी गलती मानते हुए कार्यदाई संस्था ने बाकी बचे कार्यों को पूरा करने के लिए समय मांगा.

इतने सालों में भवन हैंडओवर के मामले पर कमिश्नर अनिल सागर ने तत्कालीन अस्पताल के डायरेक्टर, सीएमएस और कार्यदाई संस्था के परियोजना प्रबंधक को दोषी माना और इन लोगों के विरुद्ध कार्रवाई करने की मांग की. कमिश्नर ने माना कि परियोजना समय से पूर्ण न होने का मुख्य कारण परियोजना की मॉनिटरिंग कार्यदाई संस्था द्वारा न करना रहा है.

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मिनी पीजीआई कही जाने वाली कैली अस्पताल को वहीं के लोगों ने बर्बाद कर दिया. ओपेक चिकित्सालय कैली के निर्माण के लिए सरकार ने कार्यदाई संस्था राजकीय निर्माण को वर्ष 1990 और वर्ष 2005 के बीच 11 किश्तों में 5203.90 लाख की धनराशि दी थी. वहीं कमिश्नर और समिति ने इसके लिए कार्यदाई संस्था को एक माह का समय दिया और कहा कि निर्माणधीन भवनों के ढ़ांचे को एक माह में पूरा कर उसे महर्षि वशिष्ठ स्वशासी चिकित्सा महाविद्यालय को हैंडओवर कर दिया जाए.

Intro:रिपोर्ट- सतीश श्रीवास्तव
बस्ती यूपी
मो- 9889557333

स्लग- एक अस्पताल, 52 करोड़ और 28 साल, फिर भी अधूरा!

एंकर- पूर्वांचल के मिनी पीजीआई कहे जाने वाले कैली अस्पताल को न सिर्फ पीएमएस संवर्ग के डाक्टरों और फार्मासिस्टों ने ही लूटा बल्कि भवन का निर्माण करने वाली कार्यदाई संस्था राजकीय निर्माण निगम ने भी खूब चूना लगाया। भवन निर्माण के मद में 52 करोड़ से अधिक की रकम कार्यदाई संस्था के खाते में पिछले 28 साल में चले गए मगर न काम पूरा किया और न भवन को ही हैंडओवर किया। जिसके चलते भवन जर्जर होता जा रहा है। सबसे ताज्जुब की बात ओपीडी ब्लॉक का निर्माण अधूरा रहना जिसके चलते ओपीडी नहीं चल रही है। जिस कैली अस्पताल के भवन को आज से 15 साल पहले ही कार्यदाई संस्था द्वारा हैंडओवर कर देना चाहिए था उसे आज तक नहीं किया। धन पूरा मिलने के बाद भी भवन अधूरा हैं, और कहा जा रहा है कि भवन पूरा हो गया। भवन निर्माण को पूरा करने के लिए कार्यदाई संस्था को कई रिमाइंडर भेजा गया, बावजूद कार्य पूरा नहीं हुआ। इतना ही नहीं जब कार्यदाई संस्था ने सड़क सहित अन्य अधूरे निर्माण कार्यो के लिए सरकार से डेढ़ करोड़ और मांगा तो पूछा गया कि जब धन पूरा मिल गया तो फिर धन की मांग क्यों की जा रही है। इस पर अपनी गलती मानते हुए कार्यदाई संस्था ने अवषेष कार्यो को पूरा करने के लिए समय मांगा। इतने सालों में भवन हैंडओवर पर कमिष्नर अनिल सागर ने तत्कालीन अस्पताल के डायरेक्टर, सीएमएस और कार्यदाई संस्था के परियोजना प्रबंधक को दोषी माना और इन लोगों के विरुद्ध कार्रवाई करने को लिखा। कमिष्नर ने माना कि परियोजना के समय से पूर्ण न होने का मुख्य कारण परियोजना की मानिटरिंग कार्यदाई संस्था द्वारा न करना रहा है।

मिनी पीजीआई कही जाने वाली कैली अस्पताल को उन्हीं के लोगों को बर्बाद कर दिया। ओपेक चिकित्सालय कैली के निर्माण के लिए सरकार ने कार्यदाई संस्था राजकीय निर्माण को वर्ष 1990 और वर्ष 2005 के बीच 11 किष्तों में 5203.90 लाख की धनराषि दी। भवन निर्माण के लिए जितने धन की आवष्यकता थी, सरकार ने कार्यदाई संस्था को उपलब्ध करा दिया। इसके बाद भी कार्यदाई संस्था ने भवन को हैंडओवर नहीं किया। कमिष्नर और समिति ने इसके लिए कार्यदाई संस्था को एक माह का समय दिया और कहा कि निर्माणधीन भवनों के ढ़ांचे को एक माह में पूरा कर उसे महर्षि वषिष्ठ स्वषासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय को हैंडओवर कर दें।


Body:कहा जा रहा है कि अगर निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ तो धन कहां गया। जबकि कार्यदाई संस्था बार-बार निर्माण कार्य पूरा करने का दावा कर रही है। कार्यदाई संस्था की यह दलील की निर्माण कार्य में लगे फिक्चर चोरी हो गए समझ से परे है। समिति की बैठक में यह बात सामने आई कि कार्यदाई संस्था को तो वर्ष 2005 में ही पूरा धन मिल गया था। बैठक में मौजूद परियोजना प्रबंधक ने जब सड़क, नाला और बाउंड्री निर्माण न होने का कारण जमीन विवाद बताया तो सीएमएस ने कहा कि कार्यदाई संस्था झूठ बोल रही है, कोई विवाद नहीं हैं। मौके पर भूमि खाली है। इस पर अपनी गलती मानते हुए परियोजना प्रबंधक ने तत्काल निर्माण कराने का आष्वासन दिया।





Conclusion:समिति की बैठक में जो चीज सबसे अधिक उभर कर आई वह है धन मिलने के बाद भी कई कार्य कैसे अपूर्ण रह गए, आखिर वह धन कहां गया। जिन कार्यो को समिति ने अपूर्ण बताया उनमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, ओपीडी ब्लॉक, बाउंडीवाल, प्रषासनिक भवन से मुख्य सड़क तक पक्की सड़क, आवासीय भवन-टाइप एक से चार ब्लॉक, आवासीय भवन टाइप चार से एक ब्लॉक, नर्सेज हास्टल और प्रषासनिक भवन षामिल है।

बाइट- स्थानीय
बाइट- ग्रामीण
बाइट- अनिल सागर.....कमिश्नर

PTC, satish srivastava


बस्ती यूपी
Last Updated : Sep 23, 2019, 7:23 AM IST
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