बस्ती: जिले में स्थापित सीतापुर आई हॉस्पिटल आज उपेक्षा का शिकार है, लेकिन यह कभी बस्ती की शान हुआ करता था. उपेक्षित होने से यह खंडहर में बदल गया है. भवन गिर गया और उपकरण तक गायब हो गए. अब यहां एक नया विवाद शुरू हो गया है. सीतापुर आई हॉस्पिटल की जमीन के तीन दावेदार सामने आ गए हैं. पहला ट्रस्ट है, जिसके कर्मचारी आज भी यहां पर कब्जा जमाए बैठे हैं. दूसरा नगर पालिका और तीसरा जिला पंचायत है.
क्या है विवाद की वजह
दरअसल, विवाद उस वक्त बढ़ गया, जब एक दावेदार नगर पालिका फोर्स के साथ अस्पताल में रह रहे लोगों को हटाने पहुंच गयी. हालांकि विरोध के बाद टीम बिना कब्जा हटाए वापस लौट गई. इसी बीच जिला पंचायत के अपर मुख्य अधिकारी ने डीएम आशुतोष निरंजन को पत्र लिखकर जमीन जिला पंचायत की होने का दावा कर दिया.
ईओ ने अस्पताल की जमीन पर किया दावा
ईओ नगर पालिका अखिलेश त्रिपाठी ने बताया कि सीतापुर आई हॉस्पिटल पर हमारा अधिकार है. पालिका के अभिलेखों में इस अस्पताल की जमीन दर्ज है. अस्पताल के भवन को खाली करने के लिए सभी को पहले ही सूचना दी गयी थी, लेकिन इसके बावजूद लोग भवन खाली करने को तैयार नहीं थे. साथ ही उन्होंने जिला पंचायत के दावे को गलत बताते हुए कहा कि पता नहीं किस आधार पर जमीन को अपना बता रहे हैं. हमारे पास सभी दस्तावेज मौजूद हैं.
जिला पंचायत ने भी ठोका दावा, दी यह दलील
जिला पंचायत के अपर मुख्य अधिकारी विकास मिश्रा ने डीएम आशुतोष निरंजन को पत्र लिखकर सीतापुर आई हॉस्पिटल की जमीन को जिला पंचायत की जमीन बताया है. उन्होंने कहा कि अस्पताल चलाने के लिए यह जमीन सीतापुर आई हॉस्पिटल को दी गई थी, लेकिन अब अस्पताल बन्द हो चुका है. ऐसे में यह जमीन जिला पंचायत की है.
20 फरवरी 1977 को हुआ उद्घाटन
दरअसल, दो अक्तूबर 1975 को गांधी जयंती के दिन बस्ती के तत्कालीन जिलाधिकारी चंद्रभूषण धर द्विवेदी ने इस अस्पताल का शिलान्यास किया था. दो साल बाद 20 फरवरी 1977 को अस्पताल के सामान्य कक्ष का उद्घाटन उत्तर प्रदेश सरकार में स्वास्थ्य और न्याय मंत्री रहे प्रभु नारायण सिंह ने किया था. वहीं धीरे-धीरे जिम्मेदारों की अनदेखी के चलते यह अस्पताल खण्डहर हो गया. इसमें लगे लाखों रुपये के उपकरण गायब हो गए.
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1994 से नहीं मिला वेतन
आर्थिक तंगी से सीतापुर आई हॉस्पिटल में तैनात कर्मचारियों को 1994 से वेतन नहीं मिला. कई तो बिना वेतन के रिटायर हो गए. यहां के कर्मचारी आज भी वेतन मिलने की आस लगाए बैठे हैं.