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बरेली की मीरगंज विधानसभा, जानिए इस सीट का सियासी समीकरण

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और लखनऊ तक पहुंचने के लिए सभी राजनीतिक दल ने जोर-शोर से तैयारियां शुरू कर चुके हैं. बरेली की मीरगंज विधानसभा 119 से भाजपा के डीसी वर्मा विधायक हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में डी.सी. वर्मा ने बसपा के सुल्तान बेग को हराकर सीट पर कब्जा किया था. आइए आज जानते हैं बरेली की मीरगंज विधानसभा सीट का सियासी समीकरण.

बरेली की मीरगंज विधानसभा
बरेली की मीरगंज विधानसभा
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Published : Oct 11, 2021, 9:13 AM IST

बरेली: बरेली की नौ विधानसभाओं में से एक मीरगंज विधानसभा 2008 में अस्तित्व में आई, यहां पहली बार 2012 में सूबे की सोलहवीं विधानसभा के लिए निर्वाचन हुआ था. इससे पहले इस विधानसभा क्षेत्र को कावर विधानसभा के नाम से जाना जाता था. मीरगंज या यूं कहें कि पूर्ववर्ती कावर विधानसभा भी इमरजेंसी से पहले 1974 में बनी थी. फतेहगंज पश्चिमी, शीशगढ़, शेरगढ़, शाही नगर पंचायत और मीरगंज नगरपालिका क्षेत्र से बनी इस विधानसभा क्षेत्र के अन्तर्गत 271 ग्राम पंचायते आती हैं. मूल रूप से आजीविका के लिए यहां के लोग खेती पर निर्भर हैं. यहां गन्ने का उत्पादन अधिक होता है.





समस्याएं और विकास

ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती मीरगंज विधानसभा क्षेत्र में कस्बाई इलाके के विकास तो दिखाई देता है, लेकिन ग्रामीण अंचल के क्षेत्रों में विकास अभी भी कोसों दूर है. कई गांवों के लिए सम्पर्क मार्ग खस्ताहाल हैं, जिससे किसानों को अपने उत्पाद को मंडी तक लाना मुश्किल होता है. बिजली की आपूर्ति नगरीय क्षेत्र में 23 घंटे और गांवों में 12 से 16 घंटे आपूर्ति रहती है. शैक्षणिक संस्थानों के अभाव के कारण स्कूल और कालेज के लिए बच्चे जिला मुख्यालय के लिए रूख करते हैं. राष्ट्रीय राजमार्ग चौबीस से जुड़े होने के कारण हाल ही में कई प्राइवेट इन्जीनियरिंग और मैनेजमेंट कालेज बने हैं, लेकिन मंहगी शिक्षा होने के कारण आम लोगों की पहुंच से दूर हैं.

क्षेत्र में अनाज और गन्ने के भारी उत्पादन के बावजूद यहां कोई बड़ी मंडी विकसित नहीं हो सकी, डॉ. डी.सी. वर्मा ने लंबे समय से खाली पड़ी रबर फैक्ट्री की जमीन पर सिडकुल और टेक्सटाइल पार्क बनाने के लिये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पैरवी की थी, जिससे यहां के युवाओं को रोजगार मिल सके. मीरगंज के गोरा घाट के पुल के लिये वित्त विभाग से 41 करोड़ रुपए रिलीज कराये थे. यही मुद्दे आगामी विधानसभा चुनाव में असर डालेंगें.

राजीतिक परिचय

2008 से अस्तित्व में आयी मीरगंज विधानसभा क्षेत्र को पहले कावर विधानसभा के नाम से जाना जाता था. 1974 से अस्तित्व में आयी कॉवर विधानसभा पर कभी भी एक पार्टी का वर्चस्व नहीं रहा. 1974 के पहले आम चुनाव से कावर विधानसभा लगातार तीन बार कॉग्रेस की झोली में रही. 1974 से 1991 तक यहां इण्डियन नेशनल कॉग्रेस का प्रतिनिधित्व रहा.

1991 में यह सीट भाजपा के कुंअर सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने जीती और बाबरी विध्वंस के बाद सूबे में बदले राजनीतिक समीकरणों ने इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने अपना कब्जा किया और शराफत यार खान यहां सपा के विधायक बने. 1996 के चुनाव में एक बार फिर भाजपा ने यहां तख्तापलट कर कब्जा जमाया. कावर विधानसभा से 2002 और 2007 के चुनाव में समाजवादी पार्टी से सुल्तान बेग ने चुनाव जीतकर यह सीट अपने नाम की. कावर विधानसभा के विलय के बाद बनी नयी विधानसभा मीरगंज पर बसपा के बैनर तले एक बार फिर सुल्तान बेग ने फतेह हासिल की.

2012 के विधानसभा चुनाव में सुल्तान बेग ने भाजपा के डाक्टर डी.सी. वर्मा को आठ हजार वोटों से हराकर यह सीट अपने नाम की. मगर 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी की ऐसी आंधी चली कि सुल्तान वेग का किला ध्वस्त हो गया और भाजपा के डी.सी. वर्मा ने बीएसपी के सुल्तान बेग को हराकर मीरगंज सीट पर कब्जा कर लिया.


मतदाताओ की संख्या

कुल मतदाता 323846
पुरुष मतदाता175562
महिला मतदाता148275
अन्य 04




मीरगंज विधानसभा चुनाव 2017 का परिणाम

डॉ डीसी वर्मा भाजपा 108789
सुल्तान बेग बीएसपी 54289
नरेंद्र सिंह कॉग्रेस 36938
भानु प्रताप सिंह महानदल 2267
शकील अहमद पीस पार्टी 1749
गंगा सिंह राष्ट्रीय लोकदल 1696
चम्पत राम भारतीय सुभाष सेना 1255
लईक अहमदभारतीय ईमानदार पार्टी 1125
अमित सिंह निर्दलीय 746
चंद्र भोज पाठक निर्दलीय 715
नोटा 707




वर्तमान में तीन लाख 23 हजार 846 मतदाताओं वाली इस विधानसभा में मुस्लिम आबादी लगभग 40 प्रतिशत हैं. पिछले परिसीमन में इस क्षेत्र का काफी हिस्सा आंवला विधानसभा में शामिल होने से यहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या घटी है. यहां सभी राजनैतिक दल सम्प्रदायिक समीकरणों के अलावा जातिगत समीकरणों के मद्देनजर भी अपनी रणनीति बनाते हैं. विधानसभा में हिन्दू मतदाताओं में क्षत्रिय, कुर्मी, कायस्थ और अनुसूचित जाति के लोग अपना प्रभुत्व रखते हैं, इस लिहाज से इस बार भी पार्टी इस विधानसभा पर इन्हीं समीकरणों के आधार पर अपना प्रत्याशी उतारने की फिराक में रहेगी. यहां लगभग साठ हजार अनुसूचित जाति के मतदाता हैं, लिहाजा हर पार्टी इस वोट बैंक को लुभाने के लिए प्रयासरत रहती है.

बरेली: बरेली की नौ विधानसभाओं में से एक मीरगंज विधानसभा 2008 में अस्तित्व में आई, यहां पहली बार 2012 में सूबे की सोलहवीं विधानसभा के लिए निर्वाचन हुआ था. इससे पहले इस विधानसभा क्षेत्र को कावर विधानसभा के नाम से जाना जाता था. मीरगंज या यूं कहें कि पूर्ववर्ती कावर विधानसभा भी इमरजेंसी से पहले 1974 में बनी थी. फतेहगंज पश्चिमी, शीशगढ़, शेरगढ़, शाही नगर पंचायत और मीरगंज नगरपालिका क्षेत्र से बनी इस विधानसभा क्षेत्र के अन्तर्गत 271 ग्राम पंचायते आती हैं. मूल रूप से आजीविका के लिए यहां के लोग खेती पर निर्भर हैं. यहां गन्ने का उत्पादन अधिक होता है.





समस्याएं और विकास

ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती मीरगंज विधानसभा क्षेत्र में कस्बाई इलाके के विकास तो दिखाई देता है, लेकिन ग्रामीण अंचल के क्षेत्रों में विकास अभी भी कोसों दूर है. कई गांवों के लिए सम्पर्क मार्ग खस्ताहाल हैं, जिससे किसानों को अपने उत्पाद को मंडी तक लाना मुश्किल होता है. बिजली की आपूर्ति नगरीय क्षेत्र में 23 घंटे और गांवों में 12 से 16 घंटे आपूर्ति रहती है. शैक्षणिक संस्थानों के अभाव के कारण स्कूल और कालेज के लिए बच्चे जिला मुख्यालय के लिए रूख करते हैं. राष्ट्रीय राजमार्ग चौबीस से जुड़े होने के कारण हाल ही में कई प्राइवेट इन्जीनियरिंग और मैनेजमेंट कालेज बने हैं, लेकिन मंहगी शिक्षा होने के कारण आम लोगों की पहुंच से दूर हैं.

क्षेत्र में अनाज और गन्ने के भारी उत्पादन के बावजूद यहां कोई बड़ी मंडी विकसित नहीं हो सकी, डॉ. डी.सी. वर्मा ने लंबे समय से खाली पड़ी रबर फैक्ट्री की जमीन पर सिडकुल और टेक्सटाइल पार्क बनाने के लिये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पैरवी की थी, जिससे यहां के युवाओं को रोजगार मिल सके. मीरगंज के गोरा घाट के पुल के लिये वित्त विभाग से 41 करोड़ रुपए रिलीज कराये थे. यही मुद्दे आगामी विधानसभा चुनाव में असर डालेंगें.

राजीतिक परिचय

2008 से अस्तित्व में आयी मीरगंज विधानसभा क्षेत्र को पहले कावर विधानसभा के नाम से जाना जाता था. 1974 से अस्तित्व में आयी कॉवर विधानसभा पर कभी भी एक पार्टी का वर्चस्व नहीं रहा. 1974 के पहले आम चुनाव से कावर विधानसभा लगातार तीन बार कॉग्रेस की झोली में रही. 1974 से 1991 तक यहां इण्डियन नेशनल कॉग्रेस का प्रतिनिधित्व रहा.

1991 में यह सीट भाजपा के कुंअर सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने जीती और बाबरी विध्वंस के बाद सूबे में बदले राजनीतिक समीकरणों ने इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने अपना कब्जा किया और शराफत यार खान यहां सपा के विधायक बने. 1996 के चुनाव में एक बार फिर भाजपा ने यहां तख्तापलट कर कब्जा जमाया. कावर विधानसभा से 2002 और 2007 के चुनाव में समाजवादी पार्टी से सुल्तान बेग ने चुनाव जीतकर यह सीट अपने नाम की. कावर विधानसभा के विलय के बाद बनी नयी विधानसभा मीरगंज पर बसपा के बैनर तले एक बार फिर सुल्तान बेग ने फतेह हासिल की.

2012 के विधानसभा चुनाव में सुल्तान बेग ने भाजपा के डाक्टर डी.सी. वर्मा को आठ हजार वोटों से हराकर यह सीट अपने नाम की. मगर 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी की ऐसी आंधी चली कि सुल्तान वेग का किला ध्वस्त हो गया और भाजपा के डी.सी. वर्मा ने बीएसपी के सुल्तान बेग को हराकर मीरगंज सीट पर कब्जा कर लिया.


मतदाताओ की संख्या

कुल मतदाता 323846
पुरुष मतदाता175562
महिला मतदाता148275
अन्य 04




मीरगंज विधानसभा चुनाव 2017 का परिणाम

डॉ डीसी वर्मा भाजपा 108789
सुल्तान बेग बीएसपी 54289
नरेंद्र सिंह कॉग्रेस 36938
भानु प्रताप सिंह महानदल 2267
शकील अहमद पीस पार्टी 1749
गंगा सिंह राष्ट्रीय लोकदल 1696
चम्पत राम भारतीय सुभाष सेना 1255
लईक अहमदभारतीय ईमानदार पार्टी 1125
अमित सिंह निर्दलीय 746
चंद्र भोज पाठक निर्दलीय 715
नोटा 707




वर्तमान में तीन लाख 23 हजार 846 मतदाताओं वाली इस विधानसभा में मुस्लिम आबादी लगभग 40 प्रतिशत हैं. पिछले परिसीमन में इस क्षेत्र का काफी हिस्सा आंवला विधानसभा में शामिल होने से यहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या घटी है. यहां सभी राजनैतिक दल सम्प्रदायिक समीकरणों के अलावा जातिगत समीकरणों के मद्देनजर भी अपनी रणनीति बनाते हैं. विधानसभा में हिन्दू मतदाताओं में क्षत्रिय, कुर्मी, कायस्थ और अनुसूचित जाति के लोग अपना प्रभुत्व रखते हैं, इस लिहाज से इस बार भी पार्टी इस विधानसभा पर इन्हीं समीकरणों के आधार पर अपना प्रत्याशी उतारने की फिराक में रहेगी. यहां लगभग साठ हजार अनुसूचित जाति के मतदाता हैं, लिहाजा हर पार्टी इस वोट बैंक को लुभाने के लिए प्रयासरत रहती है.

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