बरेली: विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर राजनीतिक पार्टियां कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहीं. सत्ता पक्ष अपने साथ वादों की पोटली लेकर जगह-जगह घूम कर विकास की बातें कर रहा है, तो विपक्ष लगातार पेट्रोल, डीजल और महंगाई के मुद्दों पर सरकार को घेर रहा है. बरेली जिले में भी राजनीतिक सरगर्मी बढ़ी हुई है, यहां की नौ विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के धर्मपाल सिंह ने सपा के सिद्धराज सिंह को हराकर इस सीट पर कब्जा कर चौथी बार विधायक बने.
आंवला विधानसभा का इतिहास
बरेली का आंवला क्षेत्र पंचाल राज्य का हिस्सा रहा है. उत्खनन में मिले अहिक्षेत्र के किले के अवशेष इस बात की पुष्टि करते हैं कि ये क्षेत्र द्रोपदी का मायका था. जैन धर्म के इष्ट भगवान पार्श्वनाथ की तपस्थली रहा आंवला का रामनगर क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय ख्याति की जगह है. दक्षिण भारतीय और आधुनिक शैली में बनाये गए, श्री अहिछत्र पार्श्वनाथ जैन मन्दिर के दर्शन के लिए देश विदेश से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. आज यह किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण में है.
आंवला में रोहिला साम्राज्य के आधिपत्य के दौरान बनायी गई कई संरचनाऐं भी यहां देखने को मिलती हैं, जिनमें से बेगम मस्जिद एक है. रोहिला साम्राज्य के दौरान भवन निर्माण में लगाई जाने वाली प्रसिद्ध लाखौरी ईंट का भी यहीं बनायी जाती थी. प्रसिद्ध शायर अखलाख मोहम्मद खान उर्फ शहरयार ऑवला में ही जन्में थे. सहकारी क्षेत्र की सबसे बड़ी फर्टिलाइजर यूनिट इफको भी यहीं स्थापित है. इसके अतिरिक्त इण्डियन ऑयल का डिपो प्लॉट भी अब ऑवला की पहचान बन चुका है.
नगर पंचायत सिरौली और बिसारतगंज आंवला नगरपालिका क्षेत्र और इफको टाउनक्षेत्र से बनी ऑवला विधानसभा क्षेत्र में 326 ग्राम पंचायतें आती थीं, परिसीमन में यहां तीन दर्जन से अधिक गांवों को काटकर बिथरी चैनपुर विधानसभा में शामिल कर दिया गया. मूल रूप से आजीविका के लिए यहां के लोग खेती पर निर्भर करते हैं. इस क्षेत्र में मेन्था का उत्पादन का बहुतायत में होता है. वर्तमान में सरकार की कोशिशों से यहां ई-रिक्शे का प्रचलन बढ़ा है, लेकिन अभी सड़कों पर घोड़े-तांगे बहुतायत में देखने को मिलते हैं.
विकास और जनसमस्याएं
आंवला विधानसभा क्षेत्र में आंवला नगरपालिका क्षेत्र के अलावा ज्यादातर इलाका कस्बाई या ग्रामीण परिवेश का है. यहां की मुख्य समस्या सड़कों की बदहाली है. जब विधायक धर्मपाल सिंह के गांव गुलड़िया को जाने वाली सड़क ही खस्ताहाल है तो क्षेत्र के अन्य मार्गों का क्या हाल होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. भमोरा ऑवला, ऑवला सिरौली शाहाबाद और ऑवला बदायूं मार्ग को राज्य सरकार ने हॉटमिक्स करा दिया है, लेकिन गांव को जोड़ने वाले लिंक मार्ग और गांव के अन्दर गलियां, खड़न्जे और नालियां देखने तक को नहीं मिलती, या यूं कहे कि क्षेत्र अभी भी विकास की बाट जोह रहा है.
क्षेत्र में शिक्षा की हालत भी खराब है. आंवला नगर में एक मात्र डिग्री कालेज है और वहां भी स्नातक कोर्स के नाम पर बीए और बीएससी ही संचालित हैं. उच्च शिक्षा के लिए युवा जिला मुख्यालय बरेली का रूख करते हैं. यहां महिलाओं के लिए अलग डिग्री कालेज की मांग लम्बे समय से उठती आ रही है, जिस पर स्थानीय विधायक ने कोई ध्यान नहीं दिया. चिकित्सा सुविधा के नाम पर इस क्षेत्र में सिर्फ एक ही सीएचसी जिस कारण यहां झोलाछाप डाक्टरों की भरमार है. इसके अतिरिक्त तहसील स्तर पर एक न्यायालय और दो थाने खोले जाने की मांग लम्बे समय से चलती आ रही है. पिछले बीस सालों से यहां चीनी मिल की मांग चली आ रही है, लेकिन स्थानीय विधायक और जनप्रतिनिधियों ने कभी इस मांग पर भी गौर नहीं किया. जिस कारण स्थानीय कृषक गन्ना उत्पादन से अपना मुंह मोड़ लिया है.
ऑवला में स्थानीय लोग यहां रोडवेज बस-अड्डा बनाने की भी मांग करते आ रहे हैं, लेकिन उस पर भी स्थानीय विधायक की ओर कोई पहल नहीं हुई. यही क्षेत्रीय मुद्दे जनता को आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी राय बनाने में असर डालेगें. आवला के विधायक धर्मपाल सिंह के गुलरिया गांव में सबसे बड़ी समस्या खुले में शौच जाने की है, यहां पर अधिकतर घरों में शौचालय नहीं है. विधायक जी ने इस और कभी ध्यान नहीं दिया .
1980 में यहां फिर कांग्रेस आई. भाजपा और कांग्रेस की नूराकुश्ती में यहां भाजपा का वोट बैंक मजबूत होता गया और 1985, 89 और 91 में यहां भाजपा के श्यामबिहारी सिंह तीन बार लगातार विधायक निर्वाचित हुए. 1992 में गरमाए अयोध्या मुद्दे के बाद प्रदेश में बदले राजनीतिक हालात ने आंवला विधानसभा पर भी अपना असर डाला और 1993 के चुनाव में यहां से समाजवादी पार्टी ने अपना खाता खोला और महिपाल सिंह यहां पर सपा से विधायक बने और उसक बाद इस सीट पर सपा कभी भी अपना खाता नहीं खोल पाई.
1996 और 2002 में वर्तमान विधायक धर्मपाल सिंह ने भाजपा से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इस दौरान धर्मपाल उत्तर प्रदेश सरकार में पंचायती राज व श्रम मंत्री स्वतन्त्र प्रभार रहे. लेकिन मंत्री रहते हुए क्षेत्र में विकास न कराने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा और आंवला से 2007 में बसपा ने अपना खाता खोला और राधाकृष्ण यहां से विधायक बने. जातिगत समीकरण हावी रहने का एक बार फिर धर्मपाल सिंह को लाभ मिला और उन्होंने भाजपा की ओर से चुनाव लड़कर एक बार फिर जीत हासिल की. धर्मपाल ने समाजवादी पार्टी के अपने निकटतम प्रतिद्वंदी को मात्र चार हजार चार सौ आठ वोटों से हराकर जीत हासिल की.
जातिगत समीकरण
वर्तमान में दो लाख 96 हजार 833 मतदाताओं वाली आंवला विधानसभा में लोधी राजपूत की आबादी ज्यादा है. यहां लगभग पचास हजार मुस्लिम मतदाता हैं और हिन्दू आबादी में राजपूत, मौर्य और वैश्य मतदाता चुनावी समीकरणों को निर्धारित करते हैं. आंवला नगर क्षेत्र में मुस्लिम आबादी लगभग अड़तिस फीसदी तक है, लिहाजा हर पार्टी यहां जातिगत समीकरणों के हिसाब से ही प्रत्याशी मैदान में उतारेगी.
2012 के चुनाव में कुल मतदाताओं में से छियासठ फीसदी मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया और मात्र इकतीस फीसदी वोट पाकर भाजपा के धर्मपाल सिंह ने सपा के महिपाल सिंह यादव को मात्र चार हजार चार सौ आठ वोटों से मात दी थी, वहीं पिछले 2017 के चुनाव में धर्मपाल सिंह ने सपा के सिद्धराज सिंह को हराकर आवला सीट पर भाजपा का परचम लहराया था. योगी सरकार बनने के बाद धर्मपाल सिंह को सिचाई मंत्री बनाया गया था. 2019 में धर्मपाल सिंह से मंत्री पद से इस्तीफा ले लिया गया था.
मतदाताओं की संख्या
कुल मतदाता | पुरुष मतदाता | महिला मतदाता | अन्य |
296833 | 162391 | 134436 | 06 |