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बरेली: तीन हजार साल पुरानी सभ्यता की तलाश में शुरु हुआ खनन - बरेली में शुरू हुई खुदाई

सदियों पुरानी सभ्यताओं के राज खोलने और कुछ नया जानने के लिए पुरातत्व विभाग ने खुदाई का सहारा लिया. ऐसी ही तलाश में रोहिलखंड यूनिवर्सिटी की टीम ने कैलाश नदी के किनारे बसे गजनेरा में डेरा जमा लिया है.

खनन में सदियों पुरानी सभ्यताओं के राज खुलेंगे.
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Published : May 14, 2019, 1:11 PM IST

बरेली : शहर मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर गजनेरा गांव एक विशालकाय टीले पर बसा है. इस गांव में तीन हजार वर्ष पुरानी पेटेंट ग्रेवल कल्चर यानी चित्र धूसर मृदभांड संस्कृति की तलाश में खुदाई की शुरुआत की गई है.

खनन में सदियों पुरानी सभ्यताओं के राज खुलेंगे.

क्या है खनन का उद्देश्य?

  • सालों से बदलते भूगोल से अब कहीं टीला बचा है तो कहीं खत्म हो गया है.
  • काफी प्रयास के बाद अब इस गांव में उत्खनन का काम शुरू हो पाया है.
  • रोहिलखंड यूनिवर्सिटी की टीम इस गांव में खुदाई करने जा रही है.
  • यूनिवर्सिटी के वीसी प्रो. अनिल शुक्ला ने इसका शुभारंभ किया.
  • प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग के प्रोफेसर श्याम बिहारी लाल पूरे अभियान की अगुवाई कर रहे हैं.
  • यहां तीन हजार साल पुराने अवशेषों के मिलने की उम्मीद है.
  • अवशेषों पर शोध करके उस वक्त के पहनावे, खान-पान और दिनचर्या की जानकारी मिल सकती है.

पुरातत्व विभाग की टीम आई हुई है. यहां खुदाई से हमलोग पता करने की कोशिश करेंगे कि उस समय लोग क्या पहनते थे, कैसे रहते थे. साथ ही धूसर मृदभांड संस्कृति के बारे में और जानकारी मिलेगी.
- प्रोफेसर श्याम बिहारी लाल, प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग

बरेली : शहर मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर गजनेरा गांव एक विशालकाय टीले पर बसा है. इस गांव में तीन हजार वर्ष पुरानी पेटेंट ग्रेवल कल्चर यानी चित्र धूसर मृदभांड संस्कृति की तलाश में खुदाई की शुरुआत की गई है.

खनन में सदियों पुरानी सभ्यताओं के राज खुलेंगे.

क्या है खनन का उद्देश्य?

  • सालों से बदलते भूगोल से अब कहीं टीला बचा है तो कहीं खत्म हो गया है.
  • काफी प्रयास के बाद अब इस गांव में उत्खनन का काम शुरू हो पाया है.
  • रोहिलखंड यूनिवर्सिटी की टीम इस गांव में खुदाई करने जा रही है.
  • यूनिवर्सिटी के वीसी प्रो. अनिल शुक्ला ने इसका शुभारंभ किया.
  • प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग के प्रोफेसर श्याम बिहारी लाल पूरे अभियान की अगुवाई कर रहे हैं.
  • यहां तीन हजार साल पुराने अवशेषों के मिलने की उम्मीद है.
  • अवशेषों पर शोध करके उस वक्त के पहनावे, खान-पान और दिनचर्या की जानकारी मिल सकती है.

पुरातत्व विभाग की टीम आई हुई है. यहां खुदाई से हमलोग पता करने की कोशिश करेंगे कि उस समय लोग क्या पहनते थे, कैसे रहते थे. साथ ही धूसर मृदभांड संस्कृति के बारे में और जानकारी मिलेगी.
- प्रोफेसर श्याम बिहारी लाल, प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग

Intro:नदियों के किनारे सभ्यताओं की बसावट हमेशा ही हुई है सदियों बाद उत्खनन ने इस सभ्यताओं के राज खोले हैं, ऐसी ही तलाश में रोहिलखंड यूनिवर्सिटी की टीम ने कैलाश नदी के किनारे बसे गजनेरा में डेरा जमा लिया है तीन हजार वर्ष पुरानी पेटेंट ग्रेवल कल्चर यानी चित्र धूसर मृदभांड संस्कृति की तलाश में खुदाई की शुरुआत हो गई है। Body:Anchor- नदियों के किनारे सभ्यताओं की बसावट हमेशा ही हुई है सदियों बाद उत्खनन ने इस सभ्यताओं के राज खोले हैं, ऐसी ही तलाश में रोहिलखंड यूनिवर्सिटी की टीम ने कैलाश नदी के किनारे बसे गजनेरा में डेरा जमा लिया है तीन हजार वर्ष पुरानी पेटेंट ग्रेवल कल्चर यानी चित्र धूसर मृदभांड संस्कृति की तलाश में खुदाई की शुरुआत हो गई है।

V/O 1- बरेली शहर मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर गजनेर गांव बसा है बरेली बीसलपुर रोड पर स्थित भुता से होते हुए गजनेर का रास्ता है पूरा गांव एक विशालकाय टीले पर बसा है। इतना ही नहीं इस गांव में ब्रिटिश शासन काल के समय से एक काफी उचाई की चिमनी बनी हुई है उसमें अंदर से सुरंग भी है इससे यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि ब्रिटिश सरकार भी यहां पुरानी ऐतिहासिक सभ्यता के बारे में जानकारी रखती थी इसलिए उन्होंने यहां पर शोध करने का प्रयास किया था इसीलिए यहां पर उन्होंने इतनी ऊंची चिमनी बना रखी थी और जब चिमनी पर चढ़कर देखा जाता है तो उसके नीचे सुरंग भी दिखाई देती है। वही बरसो वर्ष के बदलते भूगोल से अब कहीं टीला बचा है तो कहीं खत्म हो गया है। काफी प्रयास के बाद अब इस गांव में उत्खनन का काम शुरू हो पाया है। रोहिलखंड यूनिवर्सिटी के वीसी प्रो अनिल शुक्ला ने इसका शुभारंभ किया प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग के प्रोफ़ेसर श्याम बिहारी लाल पूरे अभियान की अगुवाई कर रहे हैं।



V/O 2- तीन हजार पुराने अवशेषों की उम्मीद है, इसी को लेकर बड़े प्रयासों के बाद गजनेरा में उत्खनन की इजाजत मिली है नदी के किनारे बसे होने के कारण साइड हमेशा से ही खतरे में रही है यहां जो भी पूरक मिलेंगे उससे उनके कालक्रम और संस्कृति के बारे में पता चलेगा यहां तीन हजार से लेकर चार हजार वर्ष पुराने तक के अवशेष मिलने की पूरी उम्मीद है उन पर शोध से उस वक्त के पहनावे खान-पान दिनचर्या जीवन चर्या जैसी उस काल की जानकारी हो सकेगी।

बाइट- प्रोफेसर श्याम बिहारी लाल प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग



बाइट- हिमांशु गंगवार ग्रामीण

बाइट- अनिल कुमार गंगवार ग्रामीण


आदेश तिवारी
संवाददाता
FM न्यूज़ बरेली
9458583525Conclusion:गजनेरा में उत्खनन का काम शुरू होते ही लोगों की उत्सुकता बढ़ गई है हाल में लखनऊ हस्तिनापुर की खुदाई के दौरान काफी प्राचीन चीजें मिली हैं इस कारण भी लोगों में रोमांच है। देखना यह है कि यहां पर प्राचीन काल के क्या सबूत मिलते हैं।

आदेश तिवारी ईटीवी भारत फरीदपुर/ बरेली
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