बरेली: हम 21वीं सदी में कदम रख चुके हैं, जहां आधुनिकता में हम किसी से भी पीछे नही हैं. आज के समय में स्मार्टफोन हर किसी के हाथों में नजर आता है. फिर चाहे वो युवा हों, बुजुर्ग हों या फिर बच्चे हों. वहीं इस आधुनिक जीवन शैली ने हमें नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है. लगातार मोबाइल के इस्तेमाल ने आंखों को नुकसान पहुंचाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है.
करीब 150 मरीज रोज आते हैं अस्पताल
सरकारी अस्पताल में आंखों की परेशानी से जुड़े करीब 150 मरीज रोजाना आ रहे हैं. चौंकाने वाली बात यह कि तीस फीसद की साझेदारी महज युवा वर्ग तक के लोगों की है. यानी रोजाना छोटी उम्र के बच्चों से 30 साल की उम्र के युवा तक के लोग हैं, जिनकी आंखों में दिक्कत आ रही है.
घंटो मोबाइल का उपयोग पहुंचा रहा आंखों को नुकसान
वजह यह है कि घरों में घंटों स्मार्ट फोन का उपयोग करना, एलईडी टीवी के सामने चिपके रहना और घंटों कंप्यूटर की एलईडी स्क्रीन पर काम करना. दिन-प्रतिदिन मोबाइलों का क्रेज बढ़ता जा रहा है, कई तरह के गेम आते जा रहे हैं. लोग घंटो-घंटो मोबाइल पर अपना टाइम बिताने लगे हैं. वहीं इसका बुरा असर हमारी आंखों में पड़ रहा है. ये सभी ब्लू एलईडी से निकलने वाले रेज हैं, जो नजरों को चपेट में ले रहे हैं. इससे रेटिना पर बुरा असर पड़ रहा है. नीली एलईडी लाइट के खौफनाक असर का एक सच यह भी है कि कई युवा उम्र के लोगों का चश्मे का पावर करीब-करीब दोगुना हो रहा है.
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कभी-कभी सिर दर्द करता है और चक्कर भी आते हैं, जिसके कारण मैं अपनी आंखें टेस्ट कराने आई थी. डॉक्टर ने बताया है कि रेटिना छोटा होता जा रहा है. ये लक्षण बहुत देर तक मोबाइल पर काम करने के कारण है, जिससे आंखों पर असर पड़ता है.
-काजल, छात्रामेरी बेटी तीन-तीन घंटे मोबाइल चलाती थी. मना करने पर भी नहीं मानती थी, जिसके कारण उसकी आंखों में प्रॉब्लम हो गई. अब मैं जिला अस्पताल में दिखाने आई हूं. यहां पर डॉक्टर ने कहना है कि यह दिक्कत जल्द से जल्द ठीक हो जाएगी.
-शिखा, बच्ची की मांआंखों के रेटिना के लिए नीली एलईडी ज्यादा नुकसानदायक है. कभी-कभी तो यह न ठीक होने वाला मर्ज देती है. स्मार्ट फोन, टीवी और कंप्यूटर स्क्रीन से पर्याप्त दूरी बनाए रखें. वहीं अगर उपयोग करना जरूरी हो तो बीच-बीच में रुक-रुक कर और रोशनी में ही मोबाइल चलाएं.
-डॉ. सुषमा दीक्षित, मुख्य नेत्र परीक्षण अधिकारी,