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बरेली: बंद हुई कुतुबखाना घंटाघर की 'टिक-टिक' - bareilly updates news

उत्तर प्रदेश के बरेली में ऐतिहासिक इमारतों में से एक घंटाघर की सुइयां अब सात साल से टिक-टिक करना बंद कर दी हैं. नगर निगम प्रशासन न तो इस ओर ध्यान दे रहा है न हीं कोई काम कर रहा है, जिससे इस घंटाघर को नई पहचान मिल सके.

कुतुबखाना घंटाघर की बंद हुई 'टिकटिक'.
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Published : Nov 4, 2019, 10:33 PM IST

बरेली: जिले का घंटाघर चुनिंदा ऐतिहासिक इमारतों में से एक है, जो बरेली की पहचान को दर्शाता है, लेकिन अब समय के साथ-साथ लोगों की यादों से दूर होता जा रहा है. नई पीढ़ी को तो शहर के इस घंटाघर के इतिहास के बारे में कुछ भी पता नहीं है कि किस तरह इस घंटाघर का निर्माण हुआ. बदहाली का आलम इस तरह है कि सात साल से बंद पड़े इस घंटाघर में लगी घड़ी की सुइयां तक हिली नहीं हैं. नगर निगम प्रशासन न तो इस ओर ध्यान दे रहा है और न ही इस पर कोई काम कर रहा है, जिससे इस घंटाघर को नई पहचान मिल सके.

कुतुबखाना घंटाघर की बंद हुई 'टिकटिक'.
आजादी से पहले हुआ करती थी कुतुबखाना लाइब्रेरी
आजादी से पहले इस जगह पर कुतुबखाना लाइब्रेरी हुआ करती थी, लेकिन वक्त के साथ-साथ लाइब्रेरी की इमारत खंडहर में बदल गई और इस जगह पर घंटाघर का निर्माण हो गया. धीरे-धीरे यह घंटाघर शहर की पहचान बन गया.

शहर के अधिकतर लोग अपने घड़ी का समय इसी घंटाघर को देखकर मिलाते थे. तब से इस जगह का नाम कुतुबखाना घंटाघर पड़ गया, लेकिन समय के साथ-साथ इस इमारत की देख-रेख नहीं होने के कारण इसकी सुइयों ने चलना बंद कर दिया. वहीं प्रशासन की अनदेखी के कारण लोग अब इस घंटाघर की तरफ देखते भी नहीं है, जहां पहले लोग घंटाघर को देख कर टाइम बताते थे, वहीं अब लोग इस घंटाघर को भूल गए हैं.

क्या फिर कभी दौड़ेंगी घंटाघर की सुइयां
सात साल से बंद पड़े बरेली के घंटाघर की सुइयां अब देखना है कब दौड़ेगी. कब लोग फिर से अपनी घड़ी इसको देखकर मिलाएंगे. नगर निगम के अधिकारी इस घंटाघर पर कब मेहरबान होते हैं. किस तरह का सौंदर्यीकरण करते हैं. यह तो कोई नहीं जानता क्योंकि 7 साल से जनता को केवल नगर निगम की तरफ से आश्वासन ही मिला है कि जल्द इस घंटाघर की सुइयां फिर से दौड़ेंगी, लेकिन आज तक इसकी सुइयां धीमी पड़ी हैं.

इस घंटाघर को जल्द से जल्द चालू कराया जाएगा. इसका सौंदर्यीकरण कराया जाएगा, जिससे इसकी नई पहचान दोबारा लोगों के दिलो में जिंदा हो सके. साथ ही साथ जो इस घड़ी को सही करने वाला था, उसके पुराने बिल क्लियर कराए जाएंगे और नया टेंडर खोला जाएगा. इससे फिर से इसकी सुइयां चल सकें. शहर की जो पहचान है वह पहचान बरेली को फिर से दी जाएगी.
-उमेश गौतम, मेयर बरेली

बरेली: जिले का घंटाघर चुनिंदा ऐतिहासिक इमारतों में से एक है, जो बरेली की पहचान को दर्शाता है, लेकिन अब समय के साथ-साथ लोगों की यादों से दूर होता जा रहा है. नई पीढ़ी को तो शहर के इस घंटाघर के इतिहास के बारे में कुछ भी पता नहीं है कि किस तरह इस घंटाघर का निर्माण हुआ. बदहाली का आलम इस तरह है कि सात साल से बंद पड़े इस घंटाघर में लगी घड़ी की सुइयां तक हिली नहीं हैं. नगर निगम प्रशासन न तो इस ओर ध्यान दे रहा है और न ही इस पर कोई काम कर रहा है, जिससे इस घंटाघर को नई पहचान मिल सके.

कुतुबखाना घंटाघर की बंद हुई 'टिकटिक'.
आजादी से पहले हुआ करती थी कुतुबखाना लाइब्रेरी
आजादी से पहले इस जगह पर कुतुबखाना लाइब्रेरी हुआ करती थी, लेकिन वक्त के साथ-साथ लाइब्रेरी की इमारत खंडहर में बदल गई और इस जगह पर घंटाघर का निर्माण हो गया. धीरे-धीरे यह घंटाघर शहर की पहचान बन गया.

शहर के अधिकतर लोग अपने घड़ी का समय इसी घंटाघर को देखकर मिलाते थे. तब से इस जगह का नाम कुतुबखाना घंटाघर पड़ गया, लेकिन समय के साथ-साथ इस इमारत की देख-रेख नहीं होने के कारण इसकी सुइयों ने चलना बंद कर दिया. वहीं प्रशासन की अनदेखी के कारण लोग अब इस घंटाघर की तरफ देखते भी नहीं है, जहां पहले लोग घंटाघर को देख कर टाइम बताते थे, वहीं अब लोग इस घंटाघर को भूल गए हैं.

क्या फिर कभी दौड़ेंगी घंटाघर की सुइयां
सात साल से बंद पड़े बरेली के घंटाघर की सुइयां अब देखना है कब दौड़ेगी. कब लोग फिर से अपनी घड़ी इसको देखकर मिलाएंगे. नगर निगम के अधिकारी इस घंटाघर पर कब मेहरबान होते हैं. किस तरह का सौंदर्यीकरण करते हैं. यह तो कोई नहीं जानता क्योंकि 7 साल से जनता को केवल नगर निगम की तरफ से आश्वासन ही मिला है कि जल्द इस घंटाघर की सुइयां फिर से दौड़ेंगी, लेकिन आज तक इसकी सुइयां धीमी पड़ी हैं.

इस घंटाघर को जल्द से जल्द चालू कराया जाएगा. इसका सौंदर्यीकरण कराया जाएगा, जिससे इसकी नई पहचान दोबारा लोगों के दिलो में जिंदा हो सके. साथ ही साथ जो इस घड़ी को सही करने वाला था, उसके पुराने बिल क्लियर कराए जाएंगे और नया टेंडर खोला जाएगा. इससे फिर से इसकी सुइयां चल सकें. शहर की जो पहचान है वह पहचान बरेली को फिर से दी जाएगी.
-उमेश गौतम, मेयर बरेली

Intro:एंकर:-बरेली का घंटाघर चुनिंदा ऐतिहासिक इमारतों में से एक है जो बरेली की पहचान को दर्शाती है। इस घंटाघर की पहचान चुनिंदा ऐतिहासिक इमारतों में से हुआ करती थी जो अब समय के साथ-साथ लोगों की यादों से दूर होती जा रही है नई पीढ़ी को तो शहर के इस घंटाघर के इतिहास के बारे में भी कुछ पता नहीं है कि किस तरह इस घंटाघर का निर्माण हुआ। बदहाली का आलम इस तरह है कि 7 साल से बंद पड़े इस घंटा घर की सुइयां तक हिली नहीं है। नगर निगम प्रशासन ना तो इस और ध्यान दे रहा है नाही कोई काम कर रहा है जिससे इस घंटाघर को नई पहचान मिल सके।


Body:Vo1:- बात करें तो आजादी से पहले इस जगह पर कुतुब खाना लाइब्रेरी हुआ करती थी लेकिन वक्त के साथ साथ लाइब्रेरी की इमारत खंडहर में बदल गई और इस जगह पर घंटाघर का निर्माण हो गया जो शहर की पहचान बन गया शहर के अधिकतर लोग अपनी घड़ी इसी घंटा घर को देखकर टाइम मिलाते थे तब से इस जगह का नाम कुतुब खाना घंटाघर पड़ गया लेकिन समय के साथ-साथ इस इमारत की देखरेख नहीं होने के कारण इसकी सुइयों ने चलना बंद कर दिया वहीं प्रशासन की अनदेखी के कारण लोग अब इस घंटा घर की तरफ देखते भी नहीं है जहां पहले लोग घंटाघर को देख कर टाइम बताते थे वहीं अब लोग इस घंटाघर को भूल गए हैं।


बाइट:- उमेश गौतम मेयर बरेली


Vo2:- बरेली के मेयर उमेश गौतम ने उम्मीद जताई है कि इस घंटाघर को जल्द से जल्द चालू कराया जाएगा  इसका सौंदर्यकरण कराया जाएगा। जिससे इसकी नई पहचान दोबारा लोगों के दिलों में जिंदा हो सके। साथ ही साथ जो इस घड़ी को सही करने वाला था उसके पुराने बिल क्लियर कराए जाएंगे और  नया टेंडर खोला जाएगा जिससे फिर से इसकी सुईया चल सके शहर की जो पहचान है घंटाघर वह पहचान बरेली को फिर से दी जाएगी।

बाइट:-नईम दुकानदार
बाइट:-सुरेश कुमार यादव


Conclusion:Fvo:- 7 साल से बंद पड़े बरेली के घंटाघर किया की सुइयां अब देखना है कब दौड़ेगी कब लोग फिर से अपना अपनी घड़ी इसको देखकर मिलाएंगे। नगर निगम के अधिकारी इस घंटा घर पर कब मेहरबान होते हैं। किस तरह का सौंदर्य करण करते हैं यह तो कोई नहीं जानता क्योंकि 7 साल से जनता को केवल नगर निगम की तरफ से आश्वासन ही मिला है कि जल्द इस घंटाघर की सुइयां फिर से दौड़ेगी लेकिन आज तक इसकी सुईया धमी पड़ी है।


रंजीत शर्मा

9536666643

ईटीवी भारत,बरेली।

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