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बाराबंकी : गांव में बिजली तो आ गई लेकिन रोशन करने को घर नहीं मिले

ये रामनगर विधानसभा क्षेत्र का नारायनापुर गांव है. यहां के लोग आज भी कच्ची सड़क और पत्तों की झोपड़ी में जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं. चुनाव के मौसम में नेताओं ने वादे तो इनसे भी कई किए, लेकिन यहां के लोग यह समझ चुके हैं कि यह वादे केवल चुनावी जुमले हैं. चुनाव जीतने के बाद नेताओं को यह वादे याद भी नहीं रहते हैं.

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Published : Apr 5, 2019, 6:20 PM IST

इन गांवों में पूरे नहीं हुए नेताओं के वादे

बाराबंकी: चुनावी मौसम में चारों ओर नेतागण तोहफे और घोषणाएं बांटने में लगे हैं. ऐसे समय में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो गन्ने के सूखे पत्तों से अपनी छत बनाने को मजबूर हैं. इनके गांव में बिजली पहुंच गई है, लेकिन इससे रोशन करने वाला आशियाना ही यहां नदारद है. इनका कहना है कि नेता बड़े-बड़े वादे तो करते हैं, लेकिन सिर्फ तब तक जब तक वे जीत नहीं जाते. जीतने के बाद उन्हें ये वादे याद नहीं रहते.

इन गांवों में पूरे नहीं हुए नेताओं के वादे

लोकसभा चुनाव के इस दंगल में सभी नेता वादों का दांव खेलने में लगे हैं, लेकिन जनता इन वादों की सच्चाई को भलीभांति जानती है. इन्हीं वादों की पड़ताल के लिए ईटीवी की टीम पहुंची रामनगर विधानसभा क्षेत्र में स्थित गांव नारायनापुर. इस गांव की सड़क पर हमें ईंट या गिट्टी नहीं मिली. चलते-चलते हमारी टीम गांव के भीतर पहुंची, जहां ग्रामीण सुभाष चंद्रा गन्ने के सूखे पत्तों से अपना आशियाना तैयार करने में लगे थे.

जब संवाददाता ने उनसे गांव में हुए विकास को लेकर सवाल किए तो उन्होंने बड़ी बेबाकी से कहा कि साहब विकास तो केवल चुनावी जुमला है. जब तक नेता चुनाव जीत नहीं जाते तब तक इसको रटते रहते हैं. फिर चुनाव जीतने के बाद सब भूल जाते हैं. उन्होंने बताया कि उनके गांव में आजतक किसी नेता ने खड़ंजे वाली सड़क तक नहीं बनवाई है. सड़क के नाम पर मिट्टी भर दी गई, लेकिन उसपर ईंट या गिट्टी डालना किसी ने मुनासिब नहीं समझा. गांव में बिजली तो आ गई, लेकिन जब घर ही नहीं है तो रोशनी कहां जलाएं.

सुभाष आगे कहते हैं कि मोदी सरकार के प्रधानमंत्री आवास योजना से घर मिलने की बड़ी आशा थी, लेकिन वह भी नहीं मिला. अब रहना और जीना तो है ही इसलिए हर बार की तरह इस बार भी वह गन्ने के सूखे पत्ते से सत्ता की बेशर्म हकीकत को बुनने में लग गए हैं. उन्हें मालूम है कि नेताओं के किए गए वादे बस चुनाव जीतने के लिए उपयोग में लाए गए शिगूफे हैं.

बाराबंकी: चुनावी मौसम में चारों ओर नेतागण तोहफे और घोषणाएं बांटने में लगे हैं. ऐसे समय में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो गन्ने के सूखे पत्तों से अपनी छत बनाने को मजबूर हैं. इनके गांव में बिजली पहुंच गई है, लेकिन इससे रोशन करने वाला आशियाना ही यहां नदारद है. इनका कहना है कि नेता बड़े-बड़े वादे तो करते हैं, लेकिन सिर्फ तब तक जब तक वे जीत नहीं जाते. जीतने के बाद उन्हें ये वादे याद नहीं रहते.

इन गांवों में पूरे नहीं हुए नेताओं के वादे

लोकसभा चुनाव के इस दंगल में सभी नेता वादों का दांव खेलने में लगे हैं, लेकिन जनता इन वादों की सच्चाई को भलीभांति जानती है. इन्हीं वादों की पड़ताल के लिए ईटीवी की टीम पहुंची रामनगर विधानसभा क्षेत्र में स्थित गांव नारायनापुर. इस गांव की सड़क पर हमें ईंट या गिट्टी नहीं मिली. चलते-चलते हमारी टीम गांव के भीतर पहुंची, जहां ग्रामीण सुभाष चंद्रा गन्ने के सूखे पत्तों से अपना आशियाना तैयार करने में लगे थे.

जब संवाददाता ने उनसे गांव में हुए विकास को लेकर सवाल किए तो उन्होंने बड़ी बेबाकी से कहा कि साहब विकास तो केवल चुनावी जुमला है. जब तक नेता चुनाव जीत नहीं जाते तब तक इसको रटते रहते हैं. फिर चुनाव जीतने के बाद सब भूल जाते हैं. उन्होंने बताया कि उनके गांव में आजतक किसी नेता ने खड़ंजे वाली सड़क तक नहीं बनवाई है. सड़क के नाम पर मिट्टी भर दी गई, लेकिन उसपर ईंट या गिट्टी डालना किसी ने मुनासिब नहीं समझा. गांव में बिजली तो आ गई, लेकिन जब घर ही नहीं है तो रोशनी कहां जलाएं.

सुभाष आगे कहते हैं कि मोदी सरकार के प्रधानमंत्री आवास योजना से घर मिलने की बड़ी आशा थी, लेकिन वह भी नहीं मिला. अब रहना और जीना तो है ही इसलिए हर बार की तरह इस बार भी वह गन्ने के सूखे पत्ते से सत्ता की बेशर्म हकीकत को बुनने में लग गए हैं. उन्हें मालूम है कि नेताओं के किए गए वादे बस चुनाव जीतने के लिए उपयोग में लाए गए शिगूफे हैं.

Intro: बाराबंकी, 05 अप्रैल। चुनावी मौसम में गन्ने के पत्ते से सत्ता की खबर रखने वाले सुभाष का कहना है कि विकास केवल चुनावी जुमला है. नेता केवल चुनावों तक ही अपने वादे याद रखते हैं फिर भूल जाते हैं. सड़क के नाम पर मिट्टी से जोड़कर सड़क बना दी गई, जिसके ऊपर ईंट या गिट्टी डालना मुनासिब नहीं समझा गया. गांव में बिजली तो आ गई लेकिन साहब घर नहीं है.


Body:चुनाव का मौसम है नेता वादों की झड़ी लगा रहे हैं और इन्हीं वादों की पड़ताल करने हम बाराबंकी के रामनगर विधानसभा के एक छोटे से गांव नारायनापुर में पहुंचे ,जहां हम किसी तरह मिट्टी के सड़कों से गड्ढों के बीच से जा ही रहे थे, कि हमें सुभाष चंद्र नाम के व्यक्ति गन्ने के सूखे पत्ते से अपनी मड़ईया तैयार करते हुए दिख गए. जब हमने उनसे विकास योजनाओं के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि, विकास केवल चुनावी जुमला है नेता जब तक चुनाव नहीं जीतते इसको रटते रहते हैं .जब वह चुनाव जीत जाते हैं तो इसे भूल जाते हैं. इनके गांव में पहुंचने के लिए कच्ची सड़के बरसात और पानी लगने से खराब हो चुकी हैं. मोदी सरकार से बड़ी आशा थी की प्रधानमंत्री आवास योजना से घर मिलेगा लेकिन वह भी नहीं मिला. लेकिन रहना और जीना तो है इसलिए हर बार की तरह इस बार भी वह गन्ने के सूखे पत्ते से सत्ता की बेशर्म हकीकत को बुनने में लग गए. क्योंकि उन्हें मालूम है कि नेताओं के द्वारा किए गए वादे बस चुनाव जीतने के लिए उपयोग में लाए गए शिगूफे हैं. नेताओं को इन गरीबों की ओर एक बार जरूर देखना चाहिए ताकि वह अपने द्वारा किए गए वादों को ध्यान से स्मरण में ला पाएं.


Conclusion:कहते हैं सत्ता का मिजाज क्रूरता से मिलता जुलता है, सत्ता अगर कड़क ना हो जो चीजें हाथ से निकल जाती है ,और प्रशासनिक व्यवस्था फेल हो जाती है. लेकिन साहब यह लोकतंत्र है यहां पर वेलफेयर स्टेट का कॉन्सेप्ट है .इसके केंद्र में गरीब और गरीबों का विकास है .जब इन्हीं का विकास नहीं होता है तो देश में बराबरी कायम करने के सभी दावे हवा हवाई ही साबित होते हैं . जनता इस पर ज्यादा दिन तक विश्वास नहीं करती है.फिर यही हाल हो जाता है जैसा सुभाष चंद्र के बातों में सा झलकता है. इसलिए लोकतंत्र की विजय और राष्ट्र निर्माण के निर्माण के लिए, राजनीतिक दलों को अपने द्वारा किए गए वादों पर अमन लाने की जरूरत है.



bite-

सुभाष चंद्र ,रामनगर ,बाराबंकी.


report Alok Kumar Shukla reporter Barabanki 9627 6907
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