बाराबंकी: कोरोना काल में अनाथ हुए बच्चों के नाम और पहचान कुछ लोगों द्वारा सार्वजनिक किए जाने को राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने गम्भीरता से लिया है. आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी ने बताया कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत यह कानूनन अपराध है. कहीं से ये जानकारी आई तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य शुक्रवार को बाराबंकी में महिला और बाल अधिकारों से जुड़ी योजनाओं की समीक्षा करने आई थी.
मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना
कोविड महामारी के दौरान कोरोना संक्रमण की चपेट में आकर जीरो से लगाकर 18 वर्ष के तमाम बच्चों के सिर से माता या पिता या फिर दोनों का साया छिन गया है. मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना के तहत सूबे की योगी सरकार ऐसे निराश्रित बच्चों के पालन पोषण से लगाकर उनके पढ़ाने लिखाने का जिम्मा उठाएगी. इसके लिए हर जिले में ऐसे बच्चों को चिन्हित कर उनका डेटा एनसीपीसीआर के बाल स्वराज पोर्टल पर अपलोड किया जा रहा है. इस पोर्टल के जरिए कुछ लोगों द्वारा इन बच्चों की पहचान मीडिया में जाने की शिकायत राज्य बाल संरक्षण आयोग को मिली थी. जिसको लेकर सूबे में गाइडलाइंस जारी हुई है.
कोविड काल में प्रभावित हुए बच्चों की पहचान उजागर करना अपराध
राज्य बाल संरक्षण आयोग की सदस्य ने बताया कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत ऐसे नाबालिग बच्चों की पहचान उजागर करना अपराध है. उन्होंने कहा कि जेजे एक्ट की धारा 74 के अंतर्गत सजा का प्रवधान है. उन्होंने कहा कि ऐसे बच्चों की पहचान करने से असमाजिक तत्व इसका बेजा फायदा उठा सकते हैं.
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जिले में 30 बच्चे किए गए चिन्हित
सदस्य ने बताया कि बाराबंकी में कोविड-19 के चलते 30 बच्चे अनाथ या बेसहारा हो गए हैं. जिन्हें एनसीपीसीआर पोर्टल पर अपलोड किया गया है. उन्होंने बताया कि वेरिफिकेशन के बाद 30 में से 24 बच्चे मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना के पात्र पाए गए हैं, जिन्हें इस योजना का लाभ दिया जाएगा.
पीकू वार्ड का भी किया निरीक्षणरा
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य ने बताया कि कोविड-19 की तीसरी लहर की संभावना के मद्देनजर जिले में 40 बेड का पीकू वार्ड बनकर तैयार है.