बाराबंकी: जिले के छोटे से इलाके के किसानों की समस्याओं को लेकर संघर्षरत राजनीति के राष्ट्रीय क्षितिज पर छा जाने वाले दिग्गज नेता बेनी बाबू यानी बेनी प्रसाद वर्मा का आज जन्मदिन है. बेनी बाबू की तमाम ऐसी बातें हैं जो उन्हें एक कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में दर्शाती हैं.
बेनी प्रसाद वर्मा का जन्म 11 फरवरी 1941 को दरियाबाद विधानसभा क्षेत्र के सिरौली गांव में एक किसान परिवार में हुआ था. उनके पिता मोहनलाल वर्मा इलाके के बड़े गन्ना किसान थे. इलाके के गन्ना किसानों की समस्याओं को देखते हुए उन्होंने उनके लिए संघर्ष शुरू कर दिया. बस यहीं से जो उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ तो फिर उनके कदम पीछे नहीं हुए. बेनी वर्मा वर्ष 1970 में बुढ़वल केन यूनियन के संचालक और उपसभापति निर्वाचित हुए.
साल 1974 में भारतीय लोकदल के टिकट पर पहली बार वह दरियाबाद विधानसभा से विधायक बने. वर्ष 1977 में उनके राजनीतिक कौशल का लोग लोहा मानने लगे. जब उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस के दिग्गज नेता मोहसिना किदवई को मसौली विधानसभा सीट से करारी शिकस्त दी. इसका नतीजा ये हुआ कि बेनी बाबू को गन्ना विकास और कारागार सुधार मंत्री बनाया गया. हालांकि 1980 में मसौली विधानसभा सीट पर मोहसिना किदवई खेमे के रिजवानुर्रहमान किदवई से उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा. इसी दौरान उनकी नजदीकियां मुलायम सिंह यादव से हुईं. वर्ष 1989 में जब मुलायम के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी तो उन्हें 'नेक्स्ट टू चीफ मिनिस्टर' माना जाने लगा .
वर्ष 1992 में समाजवादी पार्टी के गठन में बेनी बाबू का अहम रोल था. वर्ष 1993 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर बेनी बाबू एक बार फिर मसौली विधानसभा से विधायक बने और लोक निर्माण विभाग समेत संसदीय कार्य मंत्री बनाए गए. इस दौरान उन्होंने जिले में सड़कों का जाल बिछा दिया. बेनी बाबू की पहचान सूबे के कुर्मी नेता के तौर पर होने लगी.
वर्ष 1996 में पहली बार बेनी वर्मा कैसरगंज लोकसभा सीट से सांसद चुने गए और 1996 से 1998 तक देवगौड़ा सरकार में संचार मंत्री रहे. वर्ष 1998, 1999 और 2004 में वो सांसद रहे. अमर सिंह की पार्टी में बढ़ रही दखलंदाजी के चलते बेनी और मुलायम के रिश्तों में खटास पैदा होने लगी और वर्ष 2006 में बेनी ने पार्टी से किनारा कर लिया. बेनी ने अपनी एक अलग पार्टी 'समाजवादी क्रांति दल' बनाई. वर्ष 2007 में बेनी ने अपनी पार्टी समाजवादी क्रांति दल से अयोध्या लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन बुरी तरह हार गए.
2007 में हार मिलने के बाद बेनी बुरी तरह टूट गए, लेकिन इसी बीच उनको कांग्रेस ने सहारा दिया. दरअसल हाशिये पर जा चुकी कांग्रेस को यूपी में बेनी एक पिछड़ों के नेता के रूप में नजर आए. लिहाजा कांग्रेस ने उनको ऑफर दिया. बेनी 2008 में कांग्रेस में शामिल हो गए. वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में बेनी गोंडा लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े और जीते. कांग्रेस ने इनका कद बढ़ाते हुए इन्हें इस्पात मंत्री बनाया. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में जब बेनी का जादू नहीं चला तो कांग्रेस का इनसे मोह भंग होने लगा.
सपा में वापसी
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जब बेनी बाबू गोंडा से चुनाव हार गए तब कांग्रेस इनसे कन्नी काटने लगी. इस हार ने बेनी बाबू को तोड़कर रख दिया. सपा ने इसका फायदा उठाया और बेनी वर्मा से फिर नजदीकियां बढ़ाईं. जितने दिन बेनी सपा से दूर रहे उन्होंने मुलायम और अखिलेश के खिलाफ एक शब्द भी नही बोला था. जिसका फायदा उन्हें मिला और इस तरह वर्ष 2016 में बेनी बाबू एक बार फिर से अपने पुराने घर लौट आये. सपा ने उन्हें राज्यसभा सदस्य बनवाया.
शतरंज के बेहतरीन खिलाड़ी
बेनी बाबू शतरंज के बेहतरीन खिलाड़ी थे. शायद यही वजह रही कि राजनीति में भी उन्हें शतरंज का खिलाड़ी कहा जाता था. राजनीति में अपने विरोधियों को कैसे मात देनी है इसका उनमें खास हुनर था. प्रदेश सरकार से लेकर केंद्र की सरकार में वे कई विभागों के मंत्री रहे लेकिन कभी भी उन पर बेईमानी और भ्रष्टाचार के दाग नहीं लगे.
प्रतिद्वंदियों से रहा मतभेद, मनभेद नहीं
बेनी प्रसाद ने राजनीति में अपने विरोधियों से मतभेद तो रखा लेकिन कभी मनभेद नहीं रखा. उनकी इसी खूबी ने उन्हें हर दल और दिल में मकबूल बना दिया. उनके अंदर कभी भी किसी से बदला लेने की भावना कभी नहीं रही. चाहे वो राजनीतिक प्रतिद्वंदी हो या कोई अधिकारी या कर्मचारी ही क्यों ना हो.
नहीं छोड़ा साथ
विभिन्न दलों में रहने के बावजूद भी बेनी बाबू के चाहने वालों ने उनका साथ नहीं छोड़ा. यह उनकी कार्यप्रणाली, साफगोई और लोकप्रियता ही थी कि लोग उनसे जुड़े रहे, चाहे वो सपा में रहे हों या कांग्रेस में रहें हों या जब अपनी पार्टी बनाई हो तब. राजनीति में अपनी अलग छाप छोड़ने वाले बेनी प्रसाद की मृत्यु 27 मार्च 2020 लखनऊ के वेदांता लंबी बीमारी के बाद हो गई.