बाराबंकी: सतरिख कस्बा उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में स्थित है. यहीं से लखनऊ जाने के मार्ग पर सप्तऋषि आश्रम स्थित है, जो बाराबंकी जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर है. इन दिनों आश्रम में चहल पहल बढ़ गई है. जैसे-जैसे अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की घड़ी नजदीक आती जा रही है, यहां के लोगों में उत्साह बढ़ता जा रहा है. दरअसल इस आश्रम से भगवान राम का गहरा नाता रहा है.
मान्यता है कि भगवान राम ने अपने तीनो भाइयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के साथ इसी गुरुकुल में रहकर काफी वक्त गुजारा था. यहीं रहकर उन्होंने गुरु वशिष्ठ से शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की थी. पिछले कई वर्षों से आश्रम की देखरेख कर रहे महंत नानक शरण दास उदासीन मुनि ने बताया कि उनके गुरु बताया करते थे कि सदियों पहले यह सप्तऋषियों का गुरुकुल आश्रम था. यहां दूर दराज से विद्यार्थी आकर शिक्षा-दीक्षा लेते थे.
यही नहीं तमाम राजा-महाराजाओं के पुत्र और पौत्र भी यहीं से शिक्षा ग्रहण करते थे. तमाम ऋषि मुनि यहां निवास करते थे लेकिन, कालांतर में कुछ विदेशी आक्रमणकारियों ने यहां की गुरुकुल परम्परा को नष्ट कर दिया. लखौरी ईंटों से बना यह आश्रम काफी पुराना है. प्रवेश द्वार से पहले एक बरगद का विशाल वृक्ष है. बाएं एक कुआं है जिसके पानी का प्रयोग उस वक्त होता था.
आश्रम के विद्यार्थी और यहां निवास करने वाले ऋषि मुनि इसी कुएं के पानी से स्नान करते थे और भोजन बनाते थे. लेकिन, अब यह कुआं बेकार हो चुका है. आश्रम में प्रवेश करते ही आंगन है और फिर बाईं ओर बड़ा सा बरामदा है. सामने एक बड़ा सा हॉल है. जहां एक बड़ी सी प्रतिमा है और पास में ही राम लक्ष्मण और सीता की अष्ट धातु की प्राचीन मूर्तियां हैं. आश्रम पर मौजूद राम, लक्ष्मण और सीता की प्राचीन मूर्तियों का रोजाना तिलकोत्सव किया जाता है और पूजा अर्चना की जाती है. आश्रम की बाहरी दीवारों की बनावट और उस पर चित्रकारी आज भी इस आश्रम के प्राचीन होने की गवाही देती हैं.
वरिष्ठ साहित्यकार अजय गुरु बताते हैं कि अयोध्या राज्य से महज 10 योजन यानी तकरीबन 110 किलोमीटर दूर स्थित इसी स्थान पर महर्षि वशिष्ठ के आश्रम होने का उल्लेख कई ग्रन्थों में मिलता है. यह उस काल खंड का सबसे बड़ा शिक्षा का केंद्र था. महर्षि वशिष्ठ यहां 100 से अधिक ऋषि पुत्रों के साथ रहते थे. यहीं पर उन्होंने भगवान राम और उनके भाइयों को शास्त्र और शस्त्र की शिक्षा दीक्षा दी थी.
ऋषियों मुनियों के इस आश्रम में निवास करने के चलते ही इस आश्रम को सप्तऋषि आश्रम कहा जाता था. बाद में इधर से गुजरते हुए विदेशी आक्रमणकारी महमूद गजनवी के बहनोई द्वारा इसे नष्ट कर दिया गया. बहरहाल अयोध्या में रामलला के विराजमान होने के साथ ही यहां के लोगों में भी आस जगी है कि अब इस आश्रम का भी कायाकल्प होगा.