बाराबंकी: काला सोना यानी अफीम के उत्पादन में कभी बाराबंकी का खासा नाम था. लेकिन हाई रिस्क और लाइसेंस के लिए बनी सख्त नीतियों से इधर कुछ वर्षों से किसानों का मोह भंग होता जा रहा है. अब किसानों का रुझान मेंथा, केला और आलू जैसी दूसरी नकदी फसलों की ओर हो रहा है. अफीम की हो रही तौल के दौरान तो कुछ ऐसा ही समाने आया है. दरअसल, इस साल के लिए जारी हुए 1200 लाइसेंसों में महज 600 किसान ही अफीम की तौल कराने पहुंचे. बाकी 600 ने अपनी फ़सल को नष्ट करवा देने की गुहार लगाई है.
किसानों का दर्द : अपनी अफीम की तौल कराने आये किसानों का मानना है कि पोस्ते की खेती में रिस्क बहुत है. फसल बोने से लेकर कटने तक लगातार निगरानी करनी पड़ती है. जानवरों और चोरों से बचाने की चुनौती अलग रहती है. कम रकबे का लाइसेंस मिलता है और मेहनत ज्यादा है. फिर खराब मौसम से फसल बेकार हो जाती है. यही नहीं, अफीम का जो मूल्य वर्षों पहले था वही आज भी है. बढ़ती महंगाई और वक्त के साथ भी इसका मूल्य नहीं बढ़ा.
पहली बार नई पहल : भारत सरकार (government of india) के वित्त मंत्रालय (ministry of finance) ने सत्र 2021-22 के लिए पोस्ता खेती की नीति में पहली बार बड़े बदलाव करते हुए. पोस्ता की खेती करने वाले किसानों को पहली बार दो प्रकार के लाइसेंस (license)जारी किए थे. पहली प्रकार के वे लाइसेंस जिसके तहत किसान पोस्ता में चीरा लगाकर अफीम(opium) निकाल सकेंगे और उसे सरकार को जमा करेंगे. वहीं, दूसरे प्रकार के लाइसेंस के तहत किसानों से सरकार बगैर रस निकले सीधे इस डोडा को खरीद करेगी.
अफीम का विकल्प होगा डोडा : दरअसल, पोस्ता के पौधे में निकले फल से निकलने वाला दूध जब जमकर पेस्ट बन जाता है तो उसे अफीम कहते हैं. अभी तक अफीम में कुछ रसायन मिलाकर उससे परंपरागत ढंग से एल्केलाइड्स (alkaloids) निकाले जाते हैं जिनसे जीवन रक्षक दवाइयां (life saving drugs) बनाई जाती हैं. अब नई तकनीक के आ जाने से डोडा यानी पॉपीस्ट्रा (poppy straw) से एल्केलाइड्स निकाल लिए जाएंगे. इसके लिए अफीम की आवश्यकता नहीं होगी.
तस्करी पर लगेगी लगाम : विभागीय अधिकारियों का कहना है कि इस नई नीति से अफीम या उससे जुड़े उत्पादों जैसे हेरोइन (heroine), मार्फीन (morphine) और निकोटीन (nicotine) की तस्करी (smuggling) रुकेगी. साथ ही ये किसानों के लिए भी आसान होगा. उन्हें अफीम की रखवाली का जोखिम भी नहीं उठाना होगा.अधिकारियों का कहना है कि नई तकनीक के जरिये डोडा से एल्केलाइड्स निकालने में आसानी के साथ खर्च भी कम आएगा.जिससे जीवन रक्षक दवाइयां सस्ती होंगी.
सूबे के केवल 9 जिलों में होती है अफीम की खेती : पोस्ता की खेती के लिए सूबे में 9 जिले प्रमुख हैं जिनमे पश्चिम के तीन जिलों के लाइसेंस बरेली यूनिट से जारी किए जाते हैं जबकि पूर्वी उत्तरप्रदेश के 6 जिलों के लिए लाइसेंस बाराबंकी यूनिट से जारी होते हैं. उत्तरप्रदेश के 9 जिलों बरेली, बंदायू, शाहजहांपुर, लखनऊ, बाराबंकी, फैजाबाद, रायबरेली, मऊ और गाजीपुर में ही पोस्ता की खेती की जाती है. इसमें बदायूं, बरेली और शाहजहांपुर जिलों के किसानों को बरेली यूनिट लाइसेंस जारी करती है जबकि लखनऊ, बाराबंकी, फैज़ाबाद, रायबरेली, मऊ और गाजीपुर जिलों के किसानों को बाराबंकी कार्यालय लाइसेंस जारी करता है. बाराबंकी प्रभाग ने इस बार 1200 किसानों को लाइसेंस जारी किए थे जिनको कि अफीम देनी थी. इसके अलावा 200 लाइसेंस उन किसानों को जारी किए थे जिन्हें अफीम नही निकालनी थी उन्हें केवल डोडा देना था.
डोडा देने वाले किसानों के लिए शर्तें : ऐसे किसान जिनको अफीम नही निकालनी है उनको विभाग को तने के साथ 08 इंच का डोडा जमा करना है. पके हुए फल को तोड़ना नही है उसमें छेद करके पोस्ता दाना किसान निकाल लेंगे और सूखा डोडा विभाग में जमा करेंगे. अगर फल में एक भी चीरा लगा होगा तो ये माना जायेगा कि किसान ने अफीम निकाली है लिहाजा उस पर विभागीय कार्यवाही होगी.
पिछले आंकड़े जितने किसानों ने अफीम जमा की
वर्ष लाइसेंसअफीम जमा किया
2019 3657 1443
2020 1953 27
2021 1800 785
2022 1200 600
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